कभी पढ़ना सपने से कम नहीं था अब मरीजों की रोशनी बढ़ाने में मदद करती हैं इस गाँव की लड़कियाँ

Ambika Tripathi | Oct 12, 2023, 10:25 IST
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर के गाँवों की जिन लड़कियों के लिए कल तक पढ़ाई पहाड़ से कम नहीं थी वो आज न सिर्फ बेहतर ज़िंदगी जी रही हैं पैरामेडिकल की ट्रेनिंग लेकर दूसरों की भी मदद कर रही हैं।
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लखीमपुर जिले के एक छोटे से गाँव की रहने वाली दिव्या बाजपेयी को लगा था कि शायद दूसरी लड़कियों की तरह उन्हें भी बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ जाए, लेकिन आज वो एक बेहतर संस्थान में पढ़ रहीं हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 130 किलोमीटर दूर लखीमपुर के मोहम्मदी गाँव की दिव्या के माता-पिता बचपन में ही गुज़र गए थे, नाना नानी के साथ रहकर किसी तरह 12वीं और उसके बाद बीए में एडमिशन लिया। लेकिन पढ़ाई का सही माहौल नहीं मिल पा रहा था।

तब उन्हें डॉ श्रॉफ चैरिटी आई हॉस्पिटल के बारे में पता चला कि वहाँ पर लड़कियों की फ्री में पढ़ाई होती और बाद में नौकरी भी लग जाती है।

19 साल की दिव्या गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "मुझे मेरी मौसी ने इसके बारे में बताया था कि यहाँ लड़कियों से कोई फीस नहीं ली जाती है, रहने और खाने की सुविधा है और नौकरी भी लग जाती है।"

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वो आगे कहती हैं, "मैं यहाँ 2022 में आयी हूँ, पहले मैं बहुत शान्त रहती थी, लेकिन यहाँ पर आने के बाद मैं पढ़ाई तो कर ही रही हूँ साथ ही मुझे एक्ट्रा बहुत सारी चीजें सीखने को मिल रही हैं। पहले घर पर रहते थे तो बहुत परेशान से रहते थे लेकिन अब मुझमें काफी कॉन्फिडेंस आया हैं।"

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डॉ श्राफ चैरिटी आई हॉस्पिटल के अलग-अलग केन्दों में 500 लड़कियों को मुफ़्त में पढ़ाया जाता है। दिव्या लखीमपुर जिले के मोहम्मदी की ब्रांच में एमआरए की पढ़ाई कर रहीं हैं, जिससें उन्हें रजिट्रेशन, एप्वाइनमेंट, ओपीडी मैनेजमेंट, कम्यूनिकेशन स्किल, पेशेंट फीडबैक मैनेजमेंट जैसी चीजें सिखाई जाती हैं।

डॉ श्राफ चैरिटी आई हॉस्पिटल की दिल्ली, राजस्थान और यूपी के कई जिलों में शाखाएँ हैं।

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संस्थान की मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ पारुल दत्त, पिछले 20 साल से इस काम में लगी हैं। पारुल गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "साल 2014 में हमने पैरामेडिकल में लड़कियों को ट्रेनिंग देने की शुरुआत की थी। हम ऐसी लड़कियों को एडमिशन देते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती है।"

वो आगे कहती हैं, "दो साल की ट्रेनिंग के बाद उन्हें अपने या किसी दूसरे हॉस्पिटल में नौकरी दिलवाई जाती है। ये ट्रेनिंग पूरी तरह से फ्री होती है, उनके लिए हॉस्टल की भी सुविधा दी गई है।"

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संस्थान में ज़्यादातर गाँव की लड़कियाँ ही हैं, कई लड़कियाँ तो ऐसी हैं जो पहली बार अपने गाँव से निकली हैं। डॉ पारुल आगे बताती हैं, "मैं एक महिला हूँ, इसलिए मुझे पता है कि महिलाएँ किसी काम को बहुत ज़िम्मेदारी से करती हैं। यही नहीं हमारे समाज में लड़के और लड़की में अंतर रखा जाता है, इसलिए लड़कों को पढ़ने के तो बहुत सारे मौके मिल जाते हैं, लेकिन लड़कियों को नहीं मिल पाते हैं। इसलिए हम यहाँ पर सिर्फ लड़कियों का ही एडमिशन लेते हैं।"

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यहाँ पर 17 से 21 साल की लड़कियों का ही एडमिशन होता है, जिसके लिए उनका एंट्रेंस एग्जाम भी होता है। लखीमपुर के मोहम्मदी के पास के गाँव तुरकाटा की रहने वाली 21 साल की सलोनी सिंह भी यहाँ पढ़ती हैं। सलोनी अपने ताऊ जी के पास रहती हैं और यहाँ वीटी डिपार्टमेंट का कोर्स कर रहीं हैं, जिसमें उन्हें एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, आँखों के रोग, आँखों की देखभाल जैसी चीजें सिखायी जाती हैं।

सलोनी गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "मेरी एक दोस्त यहाँ पर पढ़ाई कर रही थी तो मैंने भी यहाँ एडमिशन ले लिया। अब इस बात का डर नहीं है कि यहाँ से जाने के बाद नौकरी मिलेगी या नहीं, क्योंकि यहाँ पर तो नौकरी मिल ही जाती है।"

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साल 2014 में 50 बच्चियों के साथ पहला बैच शुरू हुआ था और अब 500 बच्चियाँ एक बैच में पढ़ाई करती हैं, पैरामेडिकल कोर्स के साथ ही कम्युनिकेशन स्किल और इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स भी कराया जाता है।

"दो साल की पढ़ाई के बाद 10 से 15 हज़ार वेतन के साथ नौकरी की शुरुआत हो जाती है जो आगे बढ़ती जाती है। " सलोनी ने गाँव कनेक्शन से कहा।

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