धूम्रपान नहीं करने वाली ग्रामीण महिलाएं तेजी से हो रही सांस की बीमारी का शिकार

Chandrakant Mishra | Mar 14, 2019, 13:30 IST
क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज अभी तक स्मोकिंग करने वालों में ही ज्यादातर देखने को मिलती थी लेकिन अब ये बीमारी उन लोगों में भी तेजी से हो रही जो स्मोकिंग नहीं करते
#COPD
लखनऊ। अगर आप धूम्रपान नहीं करते हैं सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज़) के शिकार हो सकते हैं। सीओपीडी धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों के लिए भी जानलेवा साबित हो रहा है। एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला आंकड़ा निकलकर आया है, जिसमें एक-चौथाई ऐसे मरीज सीओपीडी से ग्रस्त हैं, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है। इसमें ग्रामीण महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है।

सीओपीडी फेफड़े से जुड़ी बीमारी होती है जो सांसों को अवरुद्ध करता है और इससे सांस लेने में मुश्किल होती है। क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज अभी तक स्मोकिंग करने वालों में ही ज्यादातर देखने को मिलती थी लेकिन अब ये बीमारी उन लोगों में भी तेजी से हो रही जो स्मोकिंग नहीं करते। इसके पीछे सिर्फ खतरनाक होता प्रदूषण और स्मॉग है।

ये भी पढ़ें: मास्क छोड़िए , गाँव का गमछा प्रदूषण से आपको बचाएगा ...

RDESController-1909
RDESController-1909
प्रतीकात्मक तस्वीर साभार: इंटरनेट

देवरिया जिले के ब्लॉक रामपुर कारखाना निवासी राजमती (45वर्ष) सीओपीडी से पीड़ित है। राजमती के पति किशुन ने बताया, " कुछ दिनों से मेरी पत्नी के सीने में दर्द हो रहा था। उसे खासी भी आ रही थी। अस्पताल ले गया, जहां जांच के बाद पता चला कि पत्नी को सीओपीडी है। डॉक्टर ने कहा है, लकड़ी और कंडे पर खाना मत पकाए। उसी के धुएं से यह बीमारी हुई है।"

यह बीमारी सिर्फ राजमती को नहीं बल्कि देश की लाखों महिलाओं को अपने गिरफ्त में ले रही है जो गांवों में रहती हैं और चूल्हे पर खाना पकाती हैं। ज्यादा जानकारी और जागरुकता न होने से यह और गंभीर होती जा रही है।

ये भी पढ़ें: Air Pollution: 'इस हवा में सांस ली तो हो जाएंगे सांस के मरीज'

किसी आम चूल्हे पर खाना पकाने की अपेक्षा मिटटी के चूल्हे पर खाना पकाने वाली महिलाओं को फेफड़े की समस्या ज़्यादा होती है। चूल्हों से निकलने वाला धुवां सीधे महिलाओं के संपर्क में रहता है, इसलिए खांसी होने का खतरा ज़्यादा होता है और ध्यान न दिया जाए तो यह टीबी जैसी खतरनाक बीमारी की शक्ल भी ले सकता है।

RDESController-1910
RDESController-1910
नेशनल चेस्ट सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राजेंद्र प्रसाद। साभार: इंटरनेट

नेशनल चेस्ट सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राजेंद्र प्रसाद बताते हैं, " भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी ज्यादातर महिलाएं चूल्हे पर खाना पकाती हैं, जिसमें वे लकड़ी और कंडे का प्रयोग करती हैं। इससे निकलने वाला धुआं सीओपीडी की सबसे बड़ी वजह है। यह धूआं सिगरेट से निकलने वाले धूएं के बराबर ही हानिकारक होता है।"

विकासशील देशों में सीओपीडी से होने वाली करीब 50 प्रतिशत मौतें बायोमास के धुएं के कारण होती हैं, जिसमें से 75 प्रतिशत महिलाएं हैं। बायोमास ईंधन लकड़ी, पशुओं का गोबर, फसल के अवशेष, धूम्रपान करने जितना ही जोखिम पैदा करते हैं। इसीलिए महिलाओं में सीओपीडी की करीब तीन गुना बढ़ोतरी देखी गई है। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं और लड़कियां रसोईघर में अधिक समय बिताती हैं।

ये भी पढ़ें: विशेष : घुटने वाली हैं सांसें, भारत में एक व्यक्ति के लिए सिर्फ 28 पेड़ बचे

RDESController-1911
RDESController-1911
साभार: इंटरनेट

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के श्वसन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्यकांत बताते हैं, " भारतीय महिलाओं में सीओपीडी के मामलों में करीब तीन गुना बढ़ोतरी देखी गई है। हमारे देश में रहन सहन का कम स्तर होने के कारण सही समय पर रोग की पहचान और उसका उपचार नहीं हो पाता। खासकर जब मरीज धूम्रपान नहीं करता है, तो बीमारी का पता लगने में लंबा समय लगता है। बायोमास ईंधन के अलावा वायु प्रदूषण की मौजूदा स्थिति ने भी शहरी इलाकों में सीओपीडी को चिंता का सबब बना दिया है।"



वायु प्रदूषण की दृष्टि से दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 10 भारत में हैं। हवा में सूक्ष्म कणों की मौजूदगी के साथ हमारे फेफड़ों की क्षमता पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है। शहरी क्षेत्रों में इस रहन सहन की शैली के साथ श्वसन संबंधी रोग चिंता का विषय है। भारत के ग्रामीण इलाकों के श्वसन संबंधी रोगों से ग्रस्त 300 से अधिक मरीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि अपनी स्थिति के लिए उचित इलाज नहीं लेने वाले और लंबी अवधि तक अकेले ब्रोंकोडायलेटर्स पर रहने वाले 75 प्रतिशत दमाग्रस्त मरीजों में सीओपीडी जैसे लक्षण उभरे।

RDESController-1912
RDESController-1912
साभार: इंटरनेट

क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के लक्षण

- लम्बे समय से बनी हुई खांसी

- कफ आना

- सांस लेने में दिक्कत आना

- सांस लेने पर आवाज होना

- छाती में जकड़न

- होंठों या नाखूनों में नीलापन

- बार-बार श्वसन तंत्र का इंफेक्शन

- अचानक से वजन कम होना

ये भी पढ़ें: सांस के मरीजों के लिए मददगार साबित हो सकता है डिजिटल पॉलेन काउंट मॉनिटर



2017 में, हृदय रोग के बाद'क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज' (सीओपीडी) भारत में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण था। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी, 2018 के अनुसार 2017 में लगभग 10 लाख (958,000) भारतीयों की मृत्यु इस रोग के कारण हुई है। भारत में होने वाली कुल मौतों में से 13 फीसदी सीओपीडी के कारण हुई है और 2016 में 75 लाख लोगों को बीमारी का खतरा था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2018 में बताया है।

पश्चिम में सीओपीडी के अधिकांश मामले तम्बाकू के सेवन या धूम्रपान के कारण होते हैं, लेकिन भारत सहित विकासशील देशों में, अधिकांश सीओपीडी इनडोर और बाहरी वायु प्रदूषण से होते हैं, विशेष रूप से जलने वाले बायोमास, लकड़ी और गोबर से निकलने वाले प्रदूषण से।

इनपुट: इंडिया स्पेंड

ये भी पढ़ें: हो जाएं सावधान, कई बीमारियां दे रहा है जलवायु परिवर्तन

Tags:
  • COPD
  • Chronic Obstructive Pulmonary Disease
  • rural women

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.