कोरोना काल में अपने घर पर लगाए आरोग्य वाटिका, ये 15 पौधे सेहतमंद रखने में होंगे मददगार

कोरोना काल में सबको अच्छे खाने, पोषण और अपना इम्युनिटी पावर यानि रोग प्रतिरोधक क्षमता का महत्व सबको समझ में आया। गिलोय, अश्वगंधा, सर्पगंधा, आंवला, लेमनग्रास आदि औषधीय गुण वाले पेड़-पौधें और जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल से लोगों को काफी फायदा हुआ। कृषि विज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक डॉ. दीपाली चौहान बता रही हैं घर पर कैसे से पौधे उगाए जाएं।

Dr.Deepali ChauhanDr.Deepali Chauhan   8 Sep 2021 10:27 AM GMT

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कोरोना काल में अपने घर पर लगाए आरोग्य वाटिका, ये 15 पौधे सेहतमंद रखने में होंगे मददगार

वर्तमान में भारत ही नहीं, पूरा विश्व कोरोना महामारी के कहर से अस्त-व्यस्त हो चुका है। हमारी जीवनशैली पूरी तरीके से बदल गई है। हमारे खान-पान और रहन-सहन में भी बदलाव आया है। कोरोना ने लोगों को पर्यावरण के प्रति सोचने पर मजबूर किया है तो लोगों ने घरों के आसपास पेड़ लगाने शुरु किए हैं, बहुत सारे लोग अपने घरों में औषधीय गुण वाले पौधें (जड़ी-बूटी) लगाने लगे हैं। क्योंकि ये पेड़-पौधे कई बीमारियों का इलाज भी हैं।

कोरोना ने समझाया पेड़ पौधों का औषधीय महत्व

कोरोना के दौरान सबसे कारगर रहा है अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना। हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में अच्छे खान-पान के साथ-साथ जड़ी बूटियों का भी बहुत अधिक योगदान होता है। कोरोना में हम सबने देखा कि किस तरह गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, लौंग, दालचीनी आदि के काढ़े ने लोगों को मदद की है। गांव में तो गिलोय होती है कि शहरों में भी लोगों ने अपने घरों में गिलोय की बेल लगाई। हमें चाहिए कि अपने घर के आसपास की खाली जमीन पर रासायनिक खादों से मुक्त जैविक सब्जियां उगाने के सथ ही कई तरह के औषधीय पौधे लगाने चाहिए। ये आरोग्य वाटिका आपके के कई काम आ सकती है।

आइए जानते कुछ खास जड़ी बूटियों के बारे में, जिन्हे अपनी गृह वाटिका में लगाकर हम रख सकते पूरे परिवार को रोगमुक्त रखने के प्रयास कर सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां चिकित्सीय साधन बहुत अधिक दूरी पर होते हैं इस तरह की आरोग्य वाटिका का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इन्हीं कुछ आसानी से लगाए जाने वाले औषधीय पौधों की खूबियां ये हैं।


1.गिलोय: गिलोय को अमृता भी कहते हैं। इसका औषधीय नाम टाइनोस्पोरा कार्डिफोलिया है। रोपाई या बुवाई का समय मई-जून है। यह लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। पौधों से पौधों के बीच की दूरी 60 गुणा 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। यह पान के जैसे पत्तों वाली बेल है। तने के टुकड़ों से ही नया पौधा बन जाता है।

औषधीय लाभ: गिलोय के तने का लगभग 6 इंच का टुकड़ा कूटकर 1 लीटर पानी में 10 से 15 मिनट उबालकर पीने से बुधार (Fever), मधुमेह यकृत, किडनी (गुर्दा) रोगों में लाभ होता है। इसके अतिरिक्त यह गठिया, पीलिया, कुष्ठ, बवासीर और त्वचा जोर में लाभकारी है।


2.एलोवेरा: एलोवेरा (Aloe vera) को घृत कुमारी या ग्वारपाठा के नाम से भी जानते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम एलो बर्बदेंसिस है (BARBADENSIS) है। यह लैमिसी कुल का पौधा है। इसकी बुवाई या रोपाई का समय फरवरी-मार्च और अगस्त-सितंबर है। पौधे से पौधे के बीच की दूरी 90 गुणा 60 सेंटीमीटर और 60 गुणा 45सेंटी तक रखी जानी चाहिए। यह एक छोटा पौधा है, जिसका मुख्य उपयोगी भाग इसकी मांसल पत्तियां हैं। मातृ पौधे के पास से निकले शिशु पौधे से ही इसका नया पौधा बनता है।

औषधीय लाभ: एलोवेरा (ग्वारपाठा) की पत्ती का गूदा निकालकर प्रतिदिन सेवन करने से मधुमेह और पेट (उदर) संबंधी रोगों में लाभ होता है। इसके अतिरिक्त इसकी पत्तियों के गूदे का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन (कॉस्मेटिक), जोड़ों के दर्द एवं जले कटे स्थानों पर लगाने में भी होता है।

3.अश्वगंधा: अश्वगंधा एक झाड़ी नुमापौधा है और बीज से नया पौधा तैयार होता है। यह सोलेनेसी कुल का पौधा है, इसका वानस्पतिक नाम विथैनिया सोमनीफेरा है। बीज बुवई का समय है जुलाई-अगस्त है। पौधे से पौधे की दूरी 30 गुणा 40 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। अश्वगंधा की जड़ मुख्य रूप से औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। जड़ प्राप्त करने के लिए अक्टूबर-नवंबर के बाद पौधे से पत्ते झड़ जाने पर पौधा जमीन से उखाड़ कर अलग कर लिया जाता है।

औषधीय लाभ: अश्वगंधा की जड़ का पाउडर दूध के साथ सेवन करने से थकान एकमजोरी व जोड़ों के दर्द में लाभ होता है। अश्वगंधा और सतावर जड़ का पाउडर समान भाग में दूध के साथ लेने से और अधिक लाभकारी होता है अश्वगंधा के पत्ते को फोड़े फुंसी पर लगाने से लाभ मिलता है।


4.तुलसी: बीज से तैयार होने वाला ये झाड़ीनुमा पौधा है। इसका औषधीय ओसिमम बेसिलिकम है। यह लैमिसी कुल का पौधा है। इसकी बुवाई या रोपाई का समय फरवरी से लेकर मई तक है। पौधे से पौधे के बीच की दूरी 60 गुणा 40 सेंटीमीटर होनी चाहिए। तुलसी के असंख्य औषधीय गुणों के कारण इसे पर्यावरण सुधारक पौधा भी कहते हैं।

औषधीय लाभ: तुलसी के पत्तियों का काढ़ा जुखाम, बुखार में लाभकारी होता है। तो इसकी पत्तियों का रस कान दर्द, पेट दर्द, त्वचा रोग, बालों की सफेदी, पेशाब में जलन, मासिक धर्म विकार (पीरिड्यस), बांझपन, खांसी-जुखाम और ब्लड प्रेसर (रक्तचाप) में लाभकारी होता है।

5.अडूसा: अडूसा झाड़ी नुमा बड़े पत्तों वाला पौधा है, जिसे कलम द्वारा लगाया जा सकता है। इसमें सफेद रंग के पुष्प निकलते हैं।

औषधीय लाभ: अडूसा के 4 पत्तों को आधा लीटर पानी में 10 से 15 मिनट तक उबालकर छानने के बाद ठंडा होने पर दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार पीने से पुराना कफ खांसी व दमा आदि में फायदा मिलता है।


6.नीम: नीम का पौधा बीज द्वारा लगाया जाता है। नीम के पौधे का हर हिस्सा औषधीय रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

औषधीय लाभ: नीम की छाल टहनी से दांतों की सफाई के लिए एवं पत्तियां मधुमेह, ज्वर, उदर रोग में लाभकारी होती हैं। सूखी पत्तियों का धुआं मच्छर भगाने में भी उपयोगी होता है। निमोली का पाउडर नीम खली बगीचे की भूमि मिलाने से दीमक व चीटियों से भी बचाव होता है।

7.आंवला: यह एक वृक्ष है तथा इसका प्रवर्धन भी कलम द्वारा होता है। आंवले को अमृत फल भी कहा जाता है ।

औषधीय लाभ: आंवले के फल का रस का सेवन करने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। विटामिन सी की खान आंवले के फल नियमित सेवन आंख, मस्तिष्क, हृदय आदि अंगों को सुचारू रूप से कार्य करने में सहायक होता है।

8.अनार: अनार को दाड़िम या पोमेग्रेनेट कहा जाता है। इसे बीज और कलम दोनों तरीके से तैयार किया जा सकता है। अनार के पौधे की जड़ की छाल, फल, फल का छिलका व फल का रस औषधीय रूप में अत्यंत उपयोगी होता है।

औषधीय लाभ: अनार की जड़ की छाल को पानी में उबालकर दिन में 4-6 बार पीने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं। अनार के फल का रस रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ा देता है। साथ ही हृदय रोग में भी लाभकारी होता है। फल के छिलके का काढ़ा अतिसार और उदर रोगों में आराम पहुंचाता है।


9.पुदीना: पुदीना एक सगंधीय पौधे के रूप में जाना जाता है। इसे आसानी से गमलें में लगाया जा सकता है। इसकी हर शाखा एक पौधा बन सकती है। इसके पत्तों का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है।

औषधीय लाभ: पुदीना के पत्तों को पीसकर सेवन करने से से अतिसार में आराम मिलता है। पत्तों का स्वरस व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से बुखार, पेट का दर्द, भूख ना लगना आदि में लाभ होता है।

10. सदाबहार: सदाबहार का वानस्पतिक नाम केथारेन्थस रोजस है। इसका नया पौधा बीज और कटिंग दोनों से बनता है। मार्च-अप्रैल में नर्सरी द्वारा व जून-जुलाई में रोपाई द्वारा इसकी बुवाई की जाती है। पौधे से पौधे के दूर बीच की दूरी 30 गुणा 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

औषधीय लाभ: सदाबहार के पौधे की पत्तियों का रस कैंसर रोधी, मधुमेह नाशक, कृमि विवेचक एवं अवसादक होता है।


11. लेमन ग्रास: लेमन ग्रास को जाराकुश, मालाबार या नींबू घास भी कहते हैं। इसकी पत्तियों का स्वाद नींबू जैसा होता है। लेमन ग्रास का वानस्पतिक नाम सिंबोपोगों फ्लेक्स है। इसके लिए गर्म वा आर्द जलवायु उपयुक्त होती है। इसकी रोपाई व बुवाई फरवरी-मार्च में होती है। पौधों से पौधों की दूरी 60 गुणा 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

औषधीय लाभ: लेमनग्रास का प्रयोग विटामिन-ए के रूप में, श्रृंगार सामग्री, सुगंध एवं साबुन आदि बनाने में किया जाता है।

12.सफेद मूसली: सफेद मूसली का वानस्पतिक नाम क्लोरोफिटम बोरोबिलएनम है। यह लिलिएसी कुल (Lilies) का पौधा है। इसकी नई पौध बीज या कंद से होती है। सफेद मूसली ऐसी जगह लगानी चाहिए जहां पानी न रुकता यानि पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। इसके साथ ही मिट्टी रेतीली और कार्बनिक तत्तों से भरपूर होनी चाहिए। फसल वृद्धि के दौरान मृदा में नमी होना आवश्यक होता है। बीज बुवाई या कंद रोपाई का समय मई-जून है। पौधों से पौधों के बीच की दूरी 30 से 15 सेंटीमीटर के बीच रखनी चाहिए।

औषधीय लाभ: यह सामान्य कमजोरी, जोड़ों के दर्द एवं मधुमेह रोग में लाभकारी होती है।


13. मुलेठी: मुलेठी का वानस्पतिक नाम ग्लिसराइड लेब्रा है। मुलेठी पैपिलियोनेसी कुल का पौधा है। मुलेठी के लिए उष्ण-कटिबंधीय जलवायु और दोमट मृदा सर्वोत्तम होती है। मुलेठी का प्रर्वधन कटिंग द्वारा होता है। मार्च-अप्रैल महीने में इसकी रोपाई की जाती है। पौधे से पौधे के बीच की दूरी 30 गुणा 30 सेंटीमीटर होती है।

औषधीय लाभ: मुलेठी के तने का प्रयोग गला एवं दंत रोगों में अत्यंत उपयोगी होता है।

14.मीठी तुलसी: मीठी तुलसी को स्टीविया भी कहते हैं। स्टीविया का वानस्पतिक नाम स्टीविया रिबाउडियाना है। यह कंपोजिटी कुल का पौधा है। इसके लिए रेतीली दोमट मिट्टी तथा लाल मिट्टी, जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही मिट्टी का पीएच 6 से 8 के बीच होना चाहिए। स्टीविया को 150 गुणा 180 सेंटीमीटर वर्षा वाले स्थानों और 15 गुणा 30 डिग्री तापमान पर उगाया जा सकता है। इसका प्रवर्धन कटिंग द्वारा होता है। फरवरी-मार्च और सितंबर-नवंबर रोपाई की जाती है। पौधों से पौधों के बीच की दूरी 45 गुणा 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

औषधीय लाभ: मधुमेह, उच्च रक्तचाप, चर्म विकार एवं दंत रोगों में मीठी तुलसी स्टीविया अत्यंत लाभदायक होती है।

15. सर्पगंधा: सर्पगंधा का वानस्पतिक नाम रावोल्फिया सरपेंटाइना (Rauvolfia serpentine) है यह एपोसायनेसी कुल का पौधा है। इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी में जलनिकासी की व्यवस्था हो और जीवाणु की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए। इसका प्रवर्धन बीज व जल एवं तने द्वारा होता है। पौधे से पौधे की दूरी 60 गुणआ 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

औषधीय लाभ: सर्पगंधा की पत्तियों का रस उच्च रक्तचाप, अनिद्रा, और हिस्टीरिया आदि रोगों में लाभकारी है।

(लेखिका- डॉ. दीपाली चौहान, चंद्र शेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर से संबद्ध कृषि विज्ञान केंद्र रायबरेली में गृह वैज्ञानिक हैं।)

नोट- उपरोक्त औषधीय पौधे के गुणों के बारे में जानकारी आप के सामान्य ज्ञान के लिए कृपया इनका उपयोग करने से पहले चिकित्सक की सलाह जरुर लें।

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