0

World Diabetes day : वायु प्रदूषण से भी बढ़ रहा है मधुमेह

गाँव कनेक्शन | Sep 18, 2018, 12:07 IST
भारत में होने वाली कुल मौतों में से लगभग एक चौथाई वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। प्रदूषित हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोन से कम आकार के महीन कण या पीएम-2.5 के संपर्क में आने से ये मौतें होती हैं।
#air pollution
रघु मुर्तुगुड्डे

मुंबई। मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों संबंधी रिपोर्टें समय-समय पर सामने आती रहती हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में होने वाली कुल मौतों में से लगभग एक चौथाई वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। प्रदूषित हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोन से कम आकार के महीन कण या पीएम-2.5 के संपर्क में आने से ये मौतें होती हैं।

हाल ही में लेंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित अमेरिका के रोग विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में पता चला है कि पीएम-2.५ मधुमेह की बीमारी को भी प्रभावित करता है।

भारत में वर्ष 2017में मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या 7.2 करोड़ आंकी गई थी, जो विश्व के कुल मधुमेह रोगियों के लगभग आधे के बराबर है। यह संख्या वर्ष 2025 तक दोगुनी हो सकती है। भारत में मधुमेह के इलाज की अनुमानित सालाना लागत 15अरब डॉलर से अधिक है। पंजाब, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे उच्च प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों में मधुमेह रोगियों की संख्या अधिक पायी गई है। जीवनशैली और भोजन संबंधी आदतों में बदलाव के कारण शहरी गरीबों में भी मधुमेह के अधिक मामले देखे गए हैं। 25 वर्ष से कम आयु के चार भारतीय व्यस्कों में से एक वयस्कमें शुरुआती मधुमेह पाया गया है। दक्षिण एशियाई लोग भी आनुवंशिक रूप से मधुमेह के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं।



विकासशील देशों में वायु प्रदूषण न केवल मृत्यु का एक प्रमुख कारण है, बल्कि हृदय संबंधी एवं श्वसन रोगों के साथ-साथ संज्ञानात्मक व्यवहार में कमी और डिमेंशिया जैसी विकृतियों कोबढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। मैक्सिको सिटी मेंतो वायु प्रदूषण के कारण कुत्तों में भी मस्तिष्क के क्षतिग्रस्त होने के मामले सामने आए हैं। स्पष्ट है कि भारत में उन आवारा घूमने वाले कुत्तों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य पाए जा सकते हैजो जहरीली हवा में सांस लेते हैं।

पीएम 2.5 से मधुमेह को जोड़ने वाले इस नए शोध में 17 लाख उन अमेरिकी लोगों पर अध्ययन किए गए थे, जो पिछले साढ़े आठ सालों से मधुमेह से ग्रस्त हैं, जबकि उनका मधुमेह संबंधी कोई भी पूर्व इतिहास नहीं था। इन लोगों को ऐसी हवा में रखा गया गया, जहां परिवेशी वायु में प्रारंभिक और द्वितियक स्तर पर पीएम 2.5 की मात्रा 5 से 22 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के बीच थी। यह पाया गया कि हवा में पीएम 2.5 जब 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर को पार करने लगता है तब मधुमेह का खतरा अधिक बढ़ता है और 22 माइक्रोग्राम पर वह स्थिरहो जाता है। इस तरह मधुमेह के लिए हवा में पीएम 2.5 का अनुशंसित सुरक्षित स्तर 10माइक्रोग्राम माना गया है। दिल्ली और कानपुर में मापी गई वायु गुणवत्ताओं में इसके स्तर क्रमश: 143और 17 ३ माइक्रोग्राम मिले हैं।
पीएम 2.५ और मधुमेह के बीच इस तरह के संबंध के आधार पर किए गए अध्ययन ने भारत के लिए एक शोचनीय स्थिति पैदा कर दी है। वर्ष 2016 में पीएम 2.5 के कारणहुईं मौतों की संख्या लगभग छहलाख थी। हालांकि, यह मधुमेह ग्रसित लोगों की कुल संख्या की तुलना में काफी कम लग सकती है, लेकिन यहां यह ध्यान देने की बात है कि उसी वर्ष भारत में दुनिया के सबसे अधिक मधुमेह के कारण होने वाली अक्षमताओं से पीड़ित 16 लाख से अधिक लोग पाए गए थे। असामयिक मौतों की संख्या लगभग सात लाख थी, जबकि अक्षमता के कारण नौ लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। मधुमेह के लिए की जाने वाली देखभाल पर आने वाली लागत, इससे संबंधित नुकसानऔर जीवन की गुणवत्ता पर पड़ने वाले पीएम 2.5के कुल प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

चूहों पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि पीएम 2.5 पतली कोशिका झिल्लियों से होकर नाक से मस्तिष्क तक पहुंच सकता है। यह माना जा रहा है कि पीएम 2.5 रक्त प्रवाह में भी मिलकर यकृत को क्षति पहुंचा सकता है,जिससे मधुमेह होने का खतरा बढ़ता है। अब यह अच्छी तरह समझा जा चुका है कि वायु प्रदूषण ऑक्सीकारक तनाव पैदा कर सकता है। इसका मतलब है कि यह शरीर की प्रदूषक विषाक्तता से लड़ने की क्षमता को कम कर सकता है और कोशिकीय संरचना और डीएनए को क्षति पहुंचा सकता है। पीएम 2.5जैसे छोटे प्रदूषकों से अधिक ऑक्सीकारक तनाव पैदा होता है।

अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के राजेश कुमार के नेतृत्व में काम कर रहे शोधार्थियों की टीम ने शोध पत्रिका नेचर के 6 सितंबर के अंक में प्रकाशित अपने लेख में सुझाव दिया है कि कंप्यूटर मॉडलिंग और व्याख्या के साथ-साथ वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता के पूर्वानुमान के व्यापक प्रसार के अलावा वायु प्रदूषण के निगरानी स्टेशनों का एक वैश्विक नेटवर्क होना चाहिए। शोधकर्ताओं ने वायु गुणवत्ता मापों, जलवायु परिवर्तन और वायु गुणवत्ता के पूर्वानुमानों के उपयोग हेतु प्रशिक्षण और शिक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान के महत्व पर भी प्रकाश डाला है। भारत इस तरह के वैश्विक नेटवर्क कास्थायी सदस्य होने का लाभ उठाने के लिए तत्पर होगा क्योंकि यहां विभिन्न क्षेत्रों की हवा में फैले वायु-कणों का मौसमी मानसून परिसंचरण से गहरा संबंध है।

कोलंबिया में खेल और व्यायाम संबंधी अधिकार और चिली में उच्च प्रदूषण वाले दिनों में ड्राइविंग और उद्योगों पर प्रतिबंध जैसे कई उपायों के अपनाए जाने के बाद से प्रदूषण के कारणहोने वाली मौतों और विकृतियों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा हैं। प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए दिल्ली में अपनाए गए वाहन प्रतिबंध वाले उपायों की विफलता की जांच क्षेत्रीय मानसून और बाहरी लोगों की आवाजाही को ध्यान में रखते हुए किए जाने की जरूरत है। यह देखते हुए कि पूरे भारत में वाहनों की संख्या काफी बढ़ती जा रही है, ऐसे में बेहतर सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं, बाइक साझाकरण कार्यक्रम, निकास फिल्टर, नो-ड्राइविंग वालेदिनों के निर्धारण जैसीपहल को प्रोत्साहित करना होगा। (इंडिया साइंस वायर)

(लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में वायुमंडलीय एवं महासागर विज्ञान और पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के प्रोफेसर हैं। वर्तमान में आईआईटी, मुंबई में अतिथि प्रोफेसर हैं।)

Tags:
  • air pollution
  • diabetes
  • particulate matter 2.5
  • air quality monitoring
  • डायबिटीज
  • मधुमेह
  • वायु प्रदूषण

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.