डायरिया से अपने बच्चे को रखें सुरक्षित, इन लक्षणों को न करें अनदेखा
Chandrakant Mishra | May 18, 2019, 13:07 IST
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जिंक घोल 5 साल से कम उम्र के बच्चों में डायरिया के कारण होने वाली गंभीरता के साथ इसके अंतराल भी में कमी लाता है और 90 प्रतिशत डायरिया मामलों में ओआरएस घोल कारगर भी होता है
लखनऊ। बदलते मौसम में डायरिया से पीड़ित बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। डायरिया के कारण बच्चों में अत्यधिक निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) होने से समस्याएं बढ़ जाती हैं एवं कुशल प्रबंधन के आभाव में यह जानलेवा भी हो जाता है। शिशु मृत्यु दर के कारणों में डायरिया भी एक प्रमुख कारण है। इसके लिए डायरिया के लक्षणों के प्रति सतर्कता एवं सही समय पर उचित प्रबंधन कर बच्चों को डायरिया जैसे गंभीर रोग से आसानी से सुरक्षित किया जा सकता है।
लखनऊ के राममनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ओमकार यादव ने बताया, " दस्त में खून आना जैसे लक्षणों के आधार पर डायरिया की पहचान आसानी से की जा सकती है। ओआरएस एवं जिंक घोल निर्जलीकरण से करता है बचाव। लगातार दस्त होने से बच्चों में निर्जलीकरण की समस्या बढ़ जाती है। दस्त के कारण पानी के साथ जरूरी एल्क्ट्रोलाइट्स( सोडियम, पोटैशियम, क्लोराइड एवं बाईकार्बोनेट) का तेजी से ह्रास होता है। बच्चों में इसकी कमी को दूर करने के लिए ओरल रीहाइड्रेशन सलूशन(ओआरएस) एवं जिंक घोल दिया जाता है। इससे डायरिया के साथ डिहाइड्रेशन से भी बचाव होता है।"
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प्रतीकात्मक तस्वीर साभार: इंटरनेट
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बच्चों में 24 घंटे के दौरान तीन या उससे अधिक बार पानी जैसा दस्त आना डायरिया है। लेकिन यदि तीन या इससे अधिक बार पतले दस्त की जगह सामान्य दस्त हो तो उसे डायरिया नहीं समझा जाता है। डायरिया मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। पहला एक्यूट वाटरी डायरिया जिसमें दस्त काफ़ी पतला होता है एवं यह कुछ घंटों या कुछ दिनों तक ही होता है। इससे निर्जलीकरण(डिहाइड्रेशन) एवं अचानक वजन में गिरावट होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
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दूसरा एक्यूट ब्लडी डायरिया जिसे शूल के नाम से भी जाना जाता है। इससे आंत में संक्रमण एवं कुपोषण का खतरा बढ़ जाता है। तीसरा परसिस्टेंट डायरिया जो 14 दिन या इससे अधिक समय तक रहता है। इसके कारण बच्चों में कुपोषण एवं गैर-आंत के संक्रमण फ़ैलने की संभावना बढ़ जाती है। चौथा अति कुपोषित बच्चों में होने वाला डायरिया होता है जो गंभीर डायरिया की श्रेणी में आता है। इससे व्यवस्थित संक्रमण, निर्जलीकरण, ह्रदय संबंधित समस्या, विटामिन एवं जरुरी खनिज लवण की कमी हो जाती है।
अररिया के सदर अस्पताल के जिला सिविल सर्जन डॉ. रामाधार चौधरी ने बताया," 6 माह से कम उम्र के बच्चों को डायरिया होने पर स्तनपान को बढ़ा देना चाहिए। अधिक से अधिक बार स्तनपान कराने से शिशु डिहाइड्रेशन से बचा रहता है एवं इससे डायरिया से बचाव भी होता है।"
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जिंक घोल 5 साल से कम उम्र के बच्चों में डायरिया के कारण होने वाली गंभीरता के साथ इसके अंतराल भी में कमी लाता है एवं 90 प्रतिशत डायरिया केसेस में ओआरएस घोल कारगर भी होता है। डायरिया होने पर शुरूआती 4 घंटों में उम्र के मुताबिक ही ओआरएस घोल देना चाहिए। 4 महीने से कम उम्र के शिशुओं को 200 मिलीलीटर, 4 से 11 महीने के बच्चों को 400 से 600 मिलीलीटर, 12 से 23 महीने के बच्चों को 600 से 800 मिलीलीटर, 2 से 4 वर्ष के बच्चों को 800 से 1200 मिलीलीटर एवं 5 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को 1200 से 2200 मिलीलीटर ओआरएस घोल देना चाहिए।
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लखनऊ के राममनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ओमकार यादव ने बताया, " दस्त में खून आना जैसे लक्षणों के आधार पर डायरिया की पहचान आसानी से की जा सकती है। ओआरएस एवं जिंक घोल निर्जलीकरण से करता है बचाव। लगातार दस्त होने से बच्चों में निर्जलीकरण की समस्या बढ़ जाती है। दस्त के कारण पानी के साथ जरूरी एल्क्ट्रोलाइट्स( सोडियम, पोटैशियम, क्लोराइड एवं बाईकार्बोनेट) का तेजी से ह्रास होता है। बच्चों में इसकी कमी को दूर करने के लिए ओरल रीहाइड्रेशन सलूशन(ओआरएस) एवं जिंक घोल दिया जाता है। इससे डायरिया के साथ डिहाइड्रेशन से भी बचाव होता है।"
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बच्चों में 24 घंटे के दौरान तीन या उससे अधिक बार पानी जैसा दस्त आना डायरिया है। लेकिन यदि तीन या इससे अधिक बार पतले दस्त की जगह सामान्य दस्त हो तो उसे डायरिया नहीं समझा जाता है। डायरिया मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। पहला एक्यूट वाटरी डायरिया जिसमें दस्त काफ़ी पतला होता है एवं यह कुछ घंटों या कुछ दिनों तक ही होता है। इससे निर्जलीकरण(डिहाइड्रेशन) एवं अचानक वजन में गिरावट होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
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दूसरा एक्यूट ब्लडी डायरिया जिसे शूल के नाम से भी जाना जाता है। इससे आंत में संक्रमण एवं कुपोषण का खतरा बढ़ जाता है। तीसरा परसिस्टेंट डायरिया जो 14 दिन या इससे अधिक समय तक रहता है। इसके कारण बच्चों में कुपोषण एवं गैर-आंत के संक्रमण फ़ैलने की संभावना बढ़ जाती है। चौथा अति कुपोषित बच्चों में होने वाला डायरिया होता है जो गंभीर डायरिया की श्रेणी में आता है। इससे व्यवस्थित संक्रमण, निर्जलीकरण, ह्रदय संबंधित समस्या, विटामिन एवं जरुरी खनिज लवण की कमी हो जाती है।
अररिया के सदर अस्पताल के जिला सिविल सर्जन डॉ. रामाधार चौधरी ने बताया," 6 माह से कम उम्र के बच्चों को डायरिया होने पर स्तनपान को बढ़ा देना चाहिए। अधिक से अधिक बार स्तनपान कराने से शिशु डिहाइड्रेशन से बचा रहता है एवं इससे डायरिया से बचाव भी होता है।"
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जिंक घोल 5 साल से कम उम्र के बच्चों में डायरिया के कारण होने वाली गंभीरता के साथ इसके अंतराल भी में कमी लाता है एवं 90 प्रतिशत डायरिया केसेस में ओआरएस घोल कारगर भी होता है। डायरिया होने पर शुरूआती 4 घंटों में उम्र के मुताबिक ही ओआरएस घोल देना चाहिए। 4 महीने से कम उम्र के शिशुओं को 200 मिलीलीटर, 4 से 11 महीने के बच्चों को 400 से 600 मिलीलीटर, 12 से 23 महीने के बच्चों को 600 से 800 मिलीलीटर, 2 से 4 वर्ष के बच्चों को 800 से 1200 मिलीलीटर एवं 5 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को 1200 से 2200 मिलीलीटर ओआरएस घोल देना चाहिए।
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