प्रदेश में 7 हज़ार डॉक्टर्स की कमी, सरकारी अस्पतालों की संख्या में भी गिरावट

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   3 May 2017 5:41 PM GMT

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प्रदेश में 7 हज़ार डॉक्टर्स की कमी, सरकारी अस्पतालों की संख्या में  भी गिरावटप्रदेश में सरकारी अस्पतालों की कमी होने के कारण मरीजों को परेशानी उठानी पड़ती है। (फोटो-विनय गुप्ता)

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। इलाज के कारण प्रदेश में लोगों की बदहाली का मुख्य कारण सरकारी अस्पतालों की कमी होना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 15 वर्षों से 2015 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में आठ फीसदी की गिरावट हुई है। ऐसे में राजधानी के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में ग्रामीणों से आए मरीजों की भारी भीड़ एकत्र होती है।

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केजीएमयू सीएमएस उदय भास्कर मिश्रा बताते हैं, “केजीएमयू में प्रदेश के सभी जिले से मरीज आते हैं। जब मरीज़ को कहीं और से फायदा नहीं होता है तब वो यहां पर आते है। प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सेवा के लिए ज्यादा से ज्यादा अस्पताल बनवाने की ज़रूरत है। इण्डिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में पिछले 15 वर्षों में पीएचसी की संख्या (जो सरकारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा है) में आठ फीसदी की गिरावट हुई है। इस अवधि के दौरान राज्य की जनसंख्या में 25 फीसदी की वृद्धि हुई है। पिछले 25 वर्षों से 2015 तक, छोटे उप केन्द्रों, (सार्वजनिक संपर्क का पहला बिंदु) की संख्या में 2 फीसदी से अधिक की वृद्धि नहीं हुई है।

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इण्डिया स्पेंड की ही एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आधी से ज्यादा ग्रामीण आबादी निजी स्वास्थ्य सेवा का उपयोग करती है। निजी स्वास्थ्य सेवा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की तुलना में चार गुना अधिक महंगा है। निजी स्वास्थ्य सेवा भारत की 20 फीसदी सबसे ज्यादा गरीब आबादी पर उनके औसत मासिक खर्च पर 15 गुना ज्यादा बोझ डालता है। पिछले एक दशक के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर डाक्टरों की कमी में 200 फीसदी की वृद्धि हुई है। यहां तक कि मुंबई जैसे महानगरों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के स्टाफ को दोगुना करने की जरूरत है।

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मरीजों की तुलना में डॉक्टर्स और नर्सें बहुत कम

लोग आरोप लगाते हैं कि सरकारी अस्पतालों में लम्बे इंतजार के कारण लोग प्राइवेट अस्पताल में चले जाते हैं। प्राइवेट अस्पताल में भी लोगों को ज्यादा पैसे खर्च करना पड़ता है। उदय भास्कर मिश्रा इस आरोप पर कहते हैं कि सरकारी अस्पतालों में भीड़ ज्यादा आती है। हमारे ही अस्पताल में रोजाना पांच हज़ार से ज्यादा मरीज ओपीडी इलाज के लिए आते हैं।

तकरीबन 300 से 400 के बीच में रोजाना मरीजों की भर्ती होती है। जिसमें से 150 मरीज ट्रामा सेंटर में भर्ती होते हैं। यह कहना गलत होगा कि मरीजों को मौका नहीं मिलता है। यहाँ जितनी सुविधाएँ है उससे ज्यादा यहाँ मरीजों का आना-जाना होता है। यहाँ डॉक्टर्स और नर्सों मरीजों की तुलना में बहुत कम है। क्वीन मैरी अस्पताल में तो एक समय में ऐसी स्थिति बन जाती है कि प्रेग्नेट महिलाओं को एक ही बेड पर सुलाना पड़ता है।

इलाज के लिए कई सरकारी योजनाएं

केजीएमयू के सीएमएस उदय भास्कर मिश्रा बताते हैं, “ऐसा नहीं है, सरकार लोगों की सहायता के लिए बहुत सारे कार्यक्रम चला रही है। बीपीएल परिवार के लोगों को सरकार की तरफ से मुफ्त इलाज दिया जा रहा है और जो व्यक्ति बीपीएल से नहीं है, उसको अगर कोई असाध्य रोग, जैसे कैंसर या कोई और गंभीर बीमारी होने पर भी सरकार मुफ्त इलाज देती है। इन दोनों कैटेगरी में जो व्यक्ति नहीं आता और वो इलाज कराने में सक्षम नहीं होता है तो उसे बिपन के जरिये मुफ्त इलाज दिया जाता है। बिपन कार्ड दो डॉक्टर्स मरीज़ की स्थिति और आर्थिक स्थिति देखकर बनाते हैं।

प्रदेश में 7 हज़ार डॉक्टर्स की कमी

अकेले यूपी में ही 7 हज़ार डॉक्टरों की कमी है। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिदार्थनाथ सिंह के अनुसार, प्रदेश में 7 हज़ार डॉक्टरों कमी है। स्वास्थ्य मंत्री बताते हैं कि इस कमी को जल्द से जल्द पूरा तो नहीं किया जा सकता है, इसके लिए सरकार टेक्नोलॉजी का सहारा लेगी। लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सरकार सौ दिन में स्वास्थ्य नीति लाएगी।

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