सिर्फ माउथ फ्रेशनर नहीं, औषधि भी हैं अजवायन, सौंफ

डॉ दीपक आचार्य | Sep 16, 2016, 16:28 IST
India
आमतौर पर डायनिंग टेबल पर मुखवास में अजवायन, सौंफ और अलसी के बीजों का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है। इन तीनों में औषधीय गुण होते हैं। कई गुणों को आप सभी जानते होंगे और ऐसे कई पारंपरिक नुस्खे हैं जिनकी जानकारी शायद बहुत से पाठकों को नहीं होगी। इस सप्ताह इन्हीं तीनों के खास गुणों की जानकारी दी जा रही है।

अजवायन


आदिवासी इलाकों में अजवायन को अनेक हर्बल नुस्खों में अपनाया जाता है। पान के पत्ते के साथ अजवायन के बीजों को चबाया जाए तो गैस, पेट मे मरोड़ और एसीडिटी से निजात मिल जाती है। माना जाता है कि भुनी हुई अजवायन की करीब 1 ग्राम मात्रा को पान में डालकर चबाया जाए तो बदहजमी में तुरंत आराम मिल जाता है। पेट दर्द होने पर अजवायन के दाने 10 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम और काला नमक 2 ग्राम को अच्छी तरह मिलाया जाए और फिर रोगी को इस मिश्रण का 3 ग्राम गुनगुने पानी के साथ दिन में 4.5 बार दिया जाए तो आराम मिलता है।

अस्थमा के रोगी को यदि अजवायन के बीज और लौंग की समान मात्रा का 5 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन दिया जाए तो काफी फायदा होता है। अजवायन को किसी मिट्टी के बर्तन में जलाकर उसका धुंआ भी दिया जाए तो अस्थमा के रोगी को सांस लेने में राहत मिलती है। यदि बीजों को भूनकर एक सूती कपड़े मे लपेट लिया जाए और रात में तकिए के नजदीक रखा जाए तो दमा, सर्दी, खांसी के रोगियों को रात को नींद में सांस लेने मे तकलीफ नही होती है।

माइग्रेन के रोगियों को पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार अजवायन का धुंआ लेने की सलाह देते हैं। वैसे अजवायन की पीस लिया जाए और नारियल तेल में इसके चूर्ण को मिलाकर ललाट पर लगाया जाए तो सर दर्द में आराम मिलता है।

डाँग, गुजरात के आदिवासी अजवायन, इमली के बीज और गुड़ की समान मात्रा लेकर घी में अच्छी तरह भून लेते है और फिर इसकी कुछ मात्रा प्रतिदिन नपुंसकता से ग्रसित व्यक्ति को देते हैं, इन आदिवासियों के अनुसार ये मिश्रण पौरुषत्व बढ़ाने के साथ-साथ शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में भी मदद करता है। कुंदरू के फल, अजवायन, अदरख और कपूर की समान मात्रा लेकर कूट लिया जाए और एक सूती कपड़े में लपेटकर हल्का-हल्का गर्म करके सूजन वाले भागों धीमे-धीमे सेंकाई की जाए तो सूजन मिट जाती है। जिन्हें रात को अधिक खांसी चलती हो उन्हे पान में अजवायन डालकर खाना चाहिए। अदरख का रस तैयार कर इसमें थोड़ा सा चूर्ण अजवायन का मिलाकार लिया जाए तो खांसी में तुरंत आराम मिल जाता है।

सौंफ

सौंफ गजब के औषधीय गुणों वाली होती है। सौंफ को लगभग हर भारतीय घरों में किचन में मसाले की तरह और पानदान मुखवास की तरह देखा जा सकता है। सौंफ में कैल्शियम, सोडियम, फास्फोरस, आयरन और पोटेशियम जैसे कई अहम तत्व पाए जाते हैं। आदिवासियों का मानना है कि सौंफ के निरन्तर उपयोग से आंखों की रोशनी बढ़ती है और मोतियाबिन्द की शिकायत नहीं होती।

प्रतिदिन दिन में तीन से चार बार सौंफ के बीजों की कुछ मात्रा चबाने से खून साफ होता है और त्वचा का रंग भी साफ हो जाता है। डाँग गुजरात के अनुसार सौंफ के नित सेवन से शरीर पर चर्बी नहीं चढ़ती और कोलेस्ट्राल भी काफी हद तक काबू किया जा सकता है और इस बात की प्रमाणिकता आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है।

आधा चम्मच सौंफ लेकर एक कप खौलते पानी में डाल दी जाए और 10 मिनट तक इसे ढांककर रखा जाए और बाद में ठंडा होने पर पी लिया जाए। ऐसा तीन माह तक लगातार किया जाना चाहिए, वजन कम होने लगता है। अपचन और खांसी होने की दशा में एक कप पानी में एक चम्मच सौंफ को उबालकर दिन में 3 से 4 बार पिया जाए तो समस्या समाप्त हो जाती है। हाथ-पांव में जलन की शिकायत होने पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया के बीजों और मिश्री को कूट कर खाना खाने के पश्चात 5-6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता है।

अलसी

डायबिटीज नियंत्रण के लिए अलसी को बेहद कारगर माना गया है और आधुनिक शोध परिणाम भी इस सोच को सटीक ठहराते हैं। एक चम्मच अलसी के बीजों को अच्छी तरह से चबाकर खाइए और दो गिलास पानी पीजिए। ऐसा प्रतिदिन सुबह खाली पेट और रात को सोने से पहले करना चाहिए। कई इलाकों में अलसी के बीजों को हल्का सा भून लिया जाता है और इस पर थोड़ा सा काला नमक का छिड़काव भी किया जाता है।

प्रतिदिन खाना खाने के बाद इसका सेवन इंसुलिन के स्तर को सामान्य बनाए रखने में मददगार होता है। अलसी भोजन पचाने में भी बेहद मददगार होता है। अलसी के बीजों को कच्चा चबाते रहने से दस्त में काफी आराम मिलता है। करीब 3 ग्राम अलसी के कच्चे बीजों को दिन में 5-6 बार चबाया जाना चाहिए।

माना जाता है कि दस्त और हैजा जैसी समास्याओं के निवारण के लिए यह काफी कारगर है। अलसी और कद्दू के बीजों की समान मात्रा (करीब 2 ग्राम प्रत्येक) प्रतिदिन एक बार ली जाए तो माना जाता है कि यकृत की कमजोरी और हृदय की समस्याओं के निपटारे के लिए अतिकारगर होते हैं। जर्नल ऑफ फूड केमिस्ट्री एंड टोक्सिकोलोजी में प्रकाशित 2008 की एक शोध रिपोर्ट भी इस तरह के दावों को सही ठहराती है।

Tags:
  • India

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.