कहीं आपका बच्चा हिंसात्मक तो नहीं हो रहा, ऐसे रखें नजर

Mithilesh Dhar | Nov 11, 2017, 15:53 IST
अपराध
लखनऊ। क्या स्कूली बच्चे हिंसात्मक होते जा रहे हैं ? पिछले कुछ सालों से ऐसी घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं, जो ये बताती हैं कि बच्चों के स्वभाव में तेजी से बदलाव आ रहा है। मध्य प्रदेश से लेकर यूपी, हरियाणा, मध्य प्रदेश तक ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं जब छात्रों ने स्कूल के दूसरे छात्र या फिर किसी अन्य पर हमला किया। सवाल ये है कि नई पीढ़ी में इतनी दिशाहीनता और आक्रामकता आ कहां से रही है ?

छोटी गलतियों को नजरअंदाज न करें

बाल मनोवैज्ञानिक डॉ कुमुद श्रीवास्तव कहती हैं "आज बढ़ते एकल परिवारों में कामकाजी मां-बाप बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। उनकी गतिविधियों पर ज्यादा ध्यान न देने से वे स्वतंत्र हो जाते हैं। आज टीवी, इंटरनेट पर उपलब्ध हिंसक सामग्री और वीडियोज उनमें हिंसा बढ़ा रहे हैं। पहले बच्चों को मौत का मतलब अच्छे से नहीं पता होता था। आज वे मौत को किसी समस्या के उपाय की तरह देखने लगे हैं।

मन का न होने पर आवेश में वे मौत की राह चुन लेते हैं। इसलिए बच्चों पर पर्याप्त ध्यान देना बेहद जरूरी है। बच्चे टीवी या मोबाइल पर कुछ देख रहे हैं तो वो माता-पिता की निगरानी में होना चाहिए। और सबसे ज्यादा खतरनाक है ट्रांसलेटेड कार्टून या वीडियो देखना। ऐसे में वीडियोज में हिंसक शब्दों और गतिविधयां ज्यादा होती हैं, और बच्चों के लिए बेहद खतरना है।"

बढ़ रहे हैं हत्या के मामले

जुलाई, 2017 जोधपुर के रतकुडिय़ां गांव में 15 साल का एक छात्र वीरेंद्र जब स्कूल से काफी देर तक घर नहीं आया, तो उसके मां-बाप सहपाठी के घर पहुंचे। वहां सहपाठी और उसके मां-बाप उनके मृत बेटे को घर से बाहर फेंक रहे थे। तीनों उन्हें देखकर फरार हो गए। 4 अगस्त, 2017 मध्य प्रदेश के एक हायर सेकंडरी स्कूल के सामने 12वीं कक्षा के एक छात्र ने अपने सहपाठी अभय की चाकू मार कर हत्या कर दी। कुछ दिनों से दोनों के बीच कोई मामूली-सा विवाद चल रहा था। सितंबर, 2017 छत्तीसगढ़ के कांकेर के भानुप्रतापपुर इलाके में एक स्कूल के हॉस्टल में एक छात्र को उसके सीनियर छात्रों ने इतनी बेरहमी से पीटा कि उसकी जान पर बन आई। उसका इलाज करवाना पड़ा।

बच्चों को सबकुछ दे देने की प्रवृत्ति

अक्सर ऐसा देखा जाता है कि हम बच्चों के लिए सबकुछ कर देना चाहते हैं। उनकी हर जिद पूरी कर देना चाहते हैं, और परेशानी यहीं से शुरू हो जाती है। इस बारे में डॉ कुमुद कहती हैं " हमें इससे बचना होगा। कोई भी जिद पूरी करने से पहले ये सोचना होगा कि उसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे। जब बच्चों को हां की आदत पड़ जाती है तो वे ना नहीं सुनना चाहते। और न सुनते ही वे हिंसक हो जाते हैं। हमें बचपन से ही इस पर लगाम लगानी चाहिए।"

अभिभावक बच्चों को समय दें

डॉ राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ देवाशीष कहते हैं " मां-बाप के पास इतना समय नहीं कि वे अपने बच्चे में अवसाद के लक्षणों को पहचान उन्हें डील करें। अवसाद ही अपराधों को बढ़ावा देता है। इससे निपटने के लिए अभिभावकों को खुद को शिक्षित करना होगा। यह भी ध्यान रखना होगा कि बच्चों की तुलना किसी से न करें और उनकी अपेक्षाओं को समझें। उनकी हर जिद को पूरी करने की भूल न करें।"

अकेलापन है हानिकारक

अकेलापन मानसिक अवसाद को तेजी से बढ़ाता है। ऐसे में बच्चों को पर्याप्त समय देते हुए उनकी समस्याओं को सुन कर ऐसे हादसों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। इस बारे में डॉ देवाशीष कहते हैं "पहले हम संयुक्त परिवार में रहते थे। कोई न कोई बच्चों पर ध्यान देता था। अब एकल परिवार में किसी के पास समय ही नहीं है। बच्चा मेड के सहारे रहता है। बच्चों में अच्छे-बुरे की समझ खत्म हो जाती है। इसलिए हमें बच्चों के साथ इमोशनली और फिजिकली, दोनों रूप से जुड़ना पड़ेगा।"

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