जानें, मणिपुर के छोटे से गांव की मीराबाई चानू ने कैसे जीता गोल्ड मेडल, देनी पड़ी कितनी कुर्बानियां

Kushal Mishra | Apr 06, 2018, 16:34 IST
Commonwealth Games 2018
यह फाइनल लिफ्ट थी, पिछले दो लिफ्ट में मीराबाई चानू ने अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे, और अब यह आखिरी था। वह मैदान में आईं, पाउडर से अपने हाथों की नमी को साफ किया, धरती को चूमा और आंख बंद कर गहरी सांस ली। अगले पल जो हुआ, वह हैरत करने वाला रहा।

मणिपुर के एक छोटे से गांव की मीराबाई चानू ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में भारोत्तोलन में 196 किलो वजन उठाकर भारत के लिए गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया था। तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज रहा था और हजारों की संख्या में खेल प्रेमी खड़े होकर मीराबाई चानू का अभिवादन कर रहे थे, मगर मीरा की आंखों से निकलते आंसू उस दर्द के गवाह थे, जो वह 2016 से झेल रही थीं।

सिर्फ 23 साल और 4 फीट 11 इंच की मीराबाई चानू मणिपुर के इंफाल से 200 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव से हैं और ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने यह गोल्ड मेडल गुरुवार को 48 किलोवर्ग के भारोत्तोलन में जीता है।

टीवी में स्टार वेटलिफ्टर खिलाड़ी कुंजुरानी को देखकर एक दिन खुद भी चैंपियन बनने का सपना संजोए मीराबाई चानू के गांव में वेटलिफ्टिंग के लिए कोई ट्रेनिंग सेंटर नहीं था। मगर अपने सपने को पूरा करने के लिए मीरा ने कभी कोई भी समस्या बाधा नहीं बनने दी।

प्रैक्टिस के लिए 50-60 किलोमीटर रोजाना सफर



प्रैक्टिस के लिए मीरा अपने गांव से रोज 50 से 60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग स्कूल जाया करती थीं। एक इंटरव्यू में मीराबाई बताती हैं, “मणिपुर में बहुत क्राइम होता था, डर भी रहता था, मगर फिर भी मैं प्रैक्टिस के लिए जाया करती थी।“

मीरा हर दिन प्रैक्टिस के लिए न सिर्फ इतना लंबा सफर तय करती थीं, बल्कि एक ही दिन में तीन टाइम उनकी ट्रेनिंग होती थी। सुबह 6.30 बजे से मीरा अपनी प्रैक्टिस भी शुरू कर देती थीं।

मगर एक खिलाड़ी के तौर पर मीरा को अच्छी डाइट की भी जरूरत थी, लेकिन एक गरीब परिवार से होने के कारण मीरा के लिए अच्छी डाइट मुमकिन नहीं थी। उनको डाइट में रोजाना दूध और चिकन चाहिए था, इसके बावजूद मीरा ने इसे बाधा नहीं बनने दिया।

यही कारण रहा कि मीराबाई चानू मात्र 11 साल में वो अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन। एक-एक कर मीरा ने कई रिकॉर्ड अपने नाम किए। अपनी आइडल कुंजुरानी के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने वर्ष 2016 में 192 किलोग्राम वजन उठाकर तोड़ दिया।

तब थम सा गया जीत का पड़ाव



मगर एक समय ऐसा भी आया, जब मीरा की जीत का यह पड़ाव ठहर गया। 2016 में मीरा के साथ रियो ओलंपिक में ऐसा ही हुआ। ओलंपिक में एक खिलाड़ी के तौर पर अपना खेल ही पूरा नहीं कर सकी थीं। किसी खिलाड़ी से हारना अलग बात होती है, मगर खेल ही पूरा न कर पाने की वजह से मीरा को बड़ा झटका लगा था। जो वजन वह आराम से उठा लेती थीं, वह ओलंपिक में उठा नहीं सकीं। ओलंपिक में मीरा ऐसी खिलाड़ी थीं, जिनके नाम के आगे लिखा था… ‘डिड नॉट फिनिश’।

निराशा के इस पड़ाव में मीरा अंदर तक टूट चुकी थीं। इसके बाद वह डिप्रेशन का शिकार हो गईं और उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के पास इलाज के लिए जाना पड़ा। मगर कुछ समय बाद उन्होंने एक बार फिर मैदान में उतरने की ठानी और नये सिरे से तैयारी करना शुरू किया।

बड़ी बहन की शादी में नहीं हो सकी शामिल

पिछले साल वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में 48 किलोग्राम में चार गुना वजन यानि 194 किलोग्राम (85 किलो स्नैच और 109 किलो क्लीन एंड जर्क) वजन उठाकर एक बार फिर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इस गोल्ड मेडल को हासिल करने के लिए मीरा अपनी सगी बड़ी बहन की शादी में भी शामिल नहीं हो सकीं। मगर उन्होंने इस गोल्ड मेडल को अपनी बड़ी बहन के लिए शादी का गिफ्ट बताया।



मीरा ने 5 अप्रैल को ऑस्ट्रेलिया में कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में 48 किलोग्राम भार वर्ग में न सिर्फ गोल्ड मेडल जीता, बल्कि अपने पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। मीरा ने स्नैच में 86 का स्कोर किया और क्लीन एंड जर्क में 110 स्कोर करते हुए कुल 196 स्कोर के साथ गोल्ड मेडल अपने नाम किया। दोनों में मीराबाई चानू का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।

कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतने के बाद एक इंटरव्यू के दौरान मीरा ने कहा, “यह मेडल मैं अपने कोच विजय सर, अपने परिजनों और मणिपुर के लोगों को समर्पित करती हूं।“ मीरा का अगला पड़ाव इस साल अगस्त में होने वाले एशियन गेम्स हैं और उसके बाद 2020 में टोक्यो ओलंपिक।

स्कीइंग में इतिहास रचनेवाली इस लड़की को भरोसा ही नहीं हो रहा था कि उसे प्रधानमंत्री मोदी ने बधाई दी है

Tags:
  • Commonwealth Games 2018

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.