कभी माता-पिता ने खेलने से रोका था, घर से एक मौका मिला, और अब छा गई बिहार की खुशबू

Mithilesh DharMithilesh Dhar   22 Sep 2017 4:04 PM GMT

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कभी माता-पिता ने खेलने से रोका था, घर से एक मौका मिला, और अब छा गई बिहार की खुशबूतिरंगे के साथ खुशबू।

लखनऊ । कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो ... इस पंक्ति को हकीकत में बिहार की एक बेटी ने बदला है। बिहार महिला हैंडबाल की कप्तान खुशबू उज्बेकिस्तान के ताशकंद में होने वाले एशियन विमन क्लब लीग हैंडबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लेने जा रही है। प्रतियोगिता 23 सितंबर से 2 अक्टूबर तक होगी।

ताशकंद में तिरंगा को फहराकर देश का नाम रोशन करने वाली इस बेटी को कई सालों तक सामाजिक और पारिवारिक बन्धनों का सामना करना पड़ा ....लेकिन मजबूत इरादे के आगे जल्द ही बंधनों की हर एक गांठें खुलने लगीं। एक रोज ऐसा भी आया जब तमाम सड़ी-गली सामाजिक और सांस्कृतिक बंधन धीरे-धीरे कमजोर होकर टूटने लगीं और खुशबू घर, परिवार, समाज और देश के वातावरण में अपने नाम के मुताबिक खुशबू फैलाने लगी।

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बिहार महिला हैंडबॉल टीम की कैप्टन खुशबू ने खेलने पर परिवारवालों द्वारा बंदिश लगाये जाने के बाद कई दिन तक खाना नहीं खाया। लगातार रोती थीं, अपने अन्य साथी खिलाड़ी को खेलने जाते देखती तो मन काफी अशांत हो जाता। बिहार के नवादा जिले के नारदीगंज प्रखंड के भदौर गांव की रहने वाली खुशबू के माता-पिता पटेल नगर में रहते हैं। पिता अनिल कुमार आटा चक्की चलाते हैं और इसी से परिवार का गुजारा चलता है। खुशबू की एक बहन बीएसएफ़ में एसआई है और एक भाई विद्युत विभाग में काम करता है।

खुशबू भारतीय हैंडबॉल महिला टीम में बिहार की इकलौती खिलाड़ी हैं। खेल की प्रैक्टिस की वजह से कभी-कभी देर रात घर पहुंचती थीं। कोई अन्य लड़की यह खेल खेलती नहीं थी, ऐसे में प्रैक्टिस लड़कों के साथ होती थी। पड़ोसी देखते तो मम्मी-पापा को ताने मारते। पड़ोसियों के नुक्ताचीनी के बाद घरवालों ने खुशबू के खेलने पर रोक लगा दी। एक महीने तक तो खुशबू को घर से ही नहीं निकलने दिया गया। वह मान चुकी थी कि अब आगे नहीं खेल पायेगी।

खुशबू हताश हो चुकी थीं कि उसी बीच बारहवें सैफ खेलों के लिए उसके चयन होने का पत्र इंडिया कैंप से आया। खुशबू ने घरवालों को विश्वास दिलाया, उन्हें मनाया, एक मौका मांगा। पापा ने साथ नहीं किया लेकिन मां ने मदद की। किसी तरह घरवाले एक मौका देने के लिए तैयार हुए। इसके बाद खुशबू का आत्मविश्वास काफी बढ़ चुका था। 2015 में बांग्लादेश के चटगांव में आयोजित सैफ खेलों में शामिल हुईं और बेहतरीन प्रदर्शन किया। 2016 में वियतनाम में आयोजित पांचवें एशियन गेम्स में भी हिस्सा लिया। अब वह बिहार पुलिस में नौकरी कर रही हैं।

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पहले भले ही माता-पिता ने खुशबू के खेलने पर रोक लगायी थी, मगर अब उन्हें अपनी बेटी पर नाज है। खुशबू की मां प्रभा देवी कहती हैं कि हमारे यहा लड़कियां कम खेलती थीं। लोग बोलते थे तो हमने इसका खेल छुड़वा दिया। सैफ खेलों के लिए उसका चयन होने पर खुशबू ने कहा कि एक मौका दे दो। खुशबू जब बांग्लादेश में अच्छा प्रदर्शन करके लौटीं तो सभी ने उनका जोरदार स्वागत किया। घर के बाहर ढोल बजाते हुए भीड़ लगी रही, पहले लगा कि किसी की शादी होगी, मगर बाहर तो मेरी खुशबू फूलमालाओं से लदी थीं। अब माहौल बदल गया है लोग कहने लगे हैं कि आपकी बेटी नाम कर रही है।

खुशबू के पापा भी बेटी के आगे बढ़ने से खुश हैं, कहते हैं कि लोग बोलते थे कि आपकी बेटी लड़कों के साथ खेलती है। बुरा लगता था, हम छोटे आदमी हैं। हमें लगता था कि ऐसी बात फैल जाएगी तो उसकी शादी में दिक्कत होगी। मगर आज हम बाजार से निकलते हैं तो लोग बहुत इज्जत देते हैं। मगर खुशबू के दादा आज भी नाराज हैं। वो जल्द से जल्द खुशबू की शादी करवाना चाहते हैं। उन्होंने आज तक खुशबू की सफलताओं पर कभी भी शुभकामनाएं नहीं दी हैं।

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2008 में नवादा में 54वें नेशनल स्कूल गेम्स का आयोजन के समय प्रोजेक्ट स्कूल की आठवीं की छात्रा खुशबू को टीम में शामिल किया गया और इस टीम ने जीत हासिल की। इसके बाद उन्हें कैप्टन बनाया गया। हैंडबॉल के जानकर खुशबू के खेलने की शैली के मुरीद हैं। वह लगातार बिहार की बेस्ट खिलाड़ी के खुशबू से नवाज़ी जाती रहीं हैं। बिहार हैंडबॉल पुरुष टीम के कप्तान कनक कुमार के अनुसार खुशबू का फ़ेकिंग स्टाइल बहुत अच्छा है। अकेला डिफेंडर उसे रोक नही पाता। इसके लिए दो खिलाड़ियों की जरूरत पड़ती है। दूसरी खासियत है उसका बॉल दागने का अंदाज, जिससे गोलकीपर धोखा खा जाता है।

भारतीय हैंडबॉल गर्ल्स टीम के मुख्य कोच शिवाजी सिंधु के अनुसार वह एशियन चैम्पियनशिप में पहली बार मेरे साथ जा रही है, मगर इसके पहले एशियन बीच गेम में गई थी और काफी बढ़िया खेली थी। उसमें काफी इंप्रूवमेंट भी है। वह काफी मेहनत करती है और आनेवाले समय में काफी बेहतर करेगी।

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खुशबू 2008 से लगातार बिहार की हैंडबॉल महिला टीम की कैप्टन हैं। बेस्ट खिलाड़ी का अवॉर्ड भी जीत चुकी हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह कई मेडल और प्रशस्ति पत्र हासिल कर चुकी हैं। मगर खुशबू को सरकार से ख़ास सहयोग नहीं मिल रहा। खुशबू के भाई अभिषेक दीपक कहते हैं कि दीदी नवादा और बिहार का नाम रोशन कर रही हैं, मगर खेल कोटे से आजतक उन्हें कुछ नहीं मिला। बिहार पुलिस में भी वह अपने बूते नौकरी कर रही हैं। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए। बिहार राज्य हैंडबॉल एसोसिएसन के महासचिव ब्रजकिशोर भी सरकार की अनदेखी स्वीकारते करते हुए कहते हैं कि बिहार के बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है, मगर सरकार उदासीन है।

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