नीलेश मिसरा की मंडली की सदस्या शिखा द्विवेदी की कहानी पढ़िए: 'प्यार की उम्र'

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नीलेश मिसरा की मंडली की सदस्या शिखा द्विवेदी की  कहानी पढ़िए: प्यार की उम्रपढ़िए कहानी प्यार की उम्र।

वो कहानियां तो आज तक आप किस्सागो नीलेश मिसरा की आवाज़ में रेडियो और ऐप पर सुनते थे अब गांव कनेक्शन में पढ़ भी सकेंगे। #कहानीकापन्ना में इस बार पढ़िए नीलेश मिसरा की मंडली की सदस्या शिखा द्विवेदी की लिखी कहानी 'प्यार की उम्र'

म्यूज़िक की तेज़ आवाज़ से घर की खिड़कियों के शीशे हिल रहे थे, सिर्फ घर के शीशे ही नहीं, मेज़ पर रखा पानी का ग्लास, अलमारियों पर रखा समान, सब अपनी जगह से ऐसे हिल रहे थे जैसे भूकंप के झटके उन्हें डरा रहे हों।

और महक म्यूजिक में पूरी तरह खोई झाड़ू लगाने में व्यस्त थी, उसे देखकर ये कहना मुश्किल था कि वो झाड़ू लगा रही थी या फिर कोई नया डांस स्टेप ईजाद कर रही थी। 25 साल की महक पिछले पांच वर्षों से किराए के उस फ्लैट में अकेली रह रही थी। डांस और म्यूज़िक उसके शौक थे और पैसे कमाने का ज़रिया भी। उसके दिन की शुरुआत रोज इसी धूम-धड़ाके वाले शोर से होती थी। वो दिन भी वैसा ही था।

तभी महक के दरवाज़े की घंटी बजी। महक को शायद सुनाई नहीं दी। डोरबेल फिर से बजी। म्यूज़िक बंद हो गया शायद घंटी की आवाज़ महक के कानों तक पहुंच गई थी। "कौन सुबह-सुबह डिस्टर्ब करने चला आया," महक बड़बड़ाते हुए दरवाज़े तक गई, झाडू अभी भी उसके हाथ में थी।

दरवाज़ा खोला तो सामने आठ-दस साल का बच्चा खड़ा था। क्या है, महक ने दरवाज़ा खोलकर गुस्सा से पूछा। महक के हाथ में झाडू देखकर वो बच्चा पहले दो कदम पीछे हो गया फिर धीरे से बोला "आंटी, प्लीज़ म्यूज़िक का वॉल्यूम थोड़ा कम कर लीजिए।" उस बच्चे ने बस उतना ही कहा और बड़ी तेज़ी से उल्टे पांव सीढि़यों से नीचे उतर गया।

"क्या बोला, आंटी, मैं तुम्हें आंटी नज़र आती हूं।" वो बच्चा तब तक नीचे जा चुका था। महक चिढ़ती हुई अंदर आई और म्यूज़िक फिर से ऑन करके वापस झाड़ू लगाने लगी। करीब पांच मिनट बाद दरवाज़े की घंटी फिर से बजी।

"लगता है आज सारी दुनिया की नींद खराब हो रही है मेरे म्यूज़िक से, रोज तो किसी को तकलीफ नहीं होती थी। " महक ने झटके से दरवाज़ा खोला।

दरवाज़ा खोला तो सामने आठ-दस साल का बच्चा खड़ा था। क्या है, महक ने दरवाज़ा खोलकर गुस्सा से पूछा। महक के हाथ में झाडू देखकर वो बच्चा पहले दो कदम पीछे हो गया फिर धीरे से बोला "आंटी, प्लीज़ म्यूज़िक का वॉल्यूम थोड़ा कम कर लीजिए।"

दरवाज़े के साथ-साथ उसका मुंह और आंखें भी थोड़ी देर के लिए खुले ही रह गए। "जी, मैं कल रात ही नीचे वाले फ्लोर पर शिफ्ट हुआ हूं।

पूरी रात समान एडजेस्ट करने में बीत गई और अभी आंख लगी। लेकिन, आपको नहीं लगता कि इतने तेज़ म्यूज़िक से किसी को दिक्कत हो सकती है। तो अगर आपको कोई तकलीफ न हो तो वॉल्यूम थोड़ा कम करके म्यूज़िक सुनिए। प्लीज़।"

काले बालों के बीच से चमकते कुछ सफेद बाल, चेहरे पर हल्की दाढ़ी, नरमी की चादर ओढ़े भारी आवाज़ और आंखों में डूबो लेने वाली गहराई, 40-42 की उम्र का वो शख्स अपनी पूरी बात कह कर चला गया और महक वहीं दरवाज़े पर बुत बनी खड़ी रही।

महक ने म्यूजिक बंद किया और चुपचाप सोफे पर बैठ गई, उस शख़्स की वो आवाज़ अभी तक उसके कानों में गूंज रही थी। महक आंखें बंद करके अभी अभी गुज़रे पल का रीकैप देखने की कोशिश करने लगी। आंखें बंद थीं उसकी और होंठ मुस्कुरा रहे थे।

फिर झट से महक ने अपनी आंखें खोलीं और दोनों हाथों से अपने गालों को थपथपाने लगी, क्या, क्या सोच रही हूं मैं, कुछ भी, इतने काम बाकी हैं, एकेडमी जाना है। महक खुद से ही खुश हो रही थी और खुद से ही नाराज़, कुछ तो था जो उसके मन में खिलने की कोशिश कर रहा था।

ख़ैर महक ने अपने मन के घोड़ों को बांधा फिर जल्दी जल्दी अपना काम निपटाया, तैयार हुई और एकेडमी जाने के लिए निकल गई, सीढ़ियां उतरते महक के पैरों की रफ़्तार नीचे वाले फ्लोर पर आते ही रूक गई, वही शख्स फिर से सामने-अपने दरवाज़े को लॉक कर रहा था।

तेज़ म्यूज़िक की वजह से आपकी नींद डिस्टर्ब हुई, उसके लिए सॉरी, एक्चुली मुझे पता नहीं चला कि इस फ्लोर पर कोई रहने आया है। आगे से ध्यान रखूंगी। अपनी बात कहकर महक वहीं खड़ी रही शायद जवाब के इंतज़ार में।

"अरे। सुनिए तो… आपका न न नाम" ये कहते कहते मुंह पर हाथ रख लिया था महक ने। लेकिन आवाज़ उस अजनबी शख्स तक पहुंच गई थी। वो बिना रुके सीढि़यां उतरता गया। हां, नाम जरूर बता गया था अपना, मयंक।

"जी, शुक्रिया," जवाब बस इतना सा आया और वो अजनबी सीढ़ियां उतरने लगा।

"अरे। सुनिए तो… आपका न न नाम" ये कहते कहते मुंह पर हाथ रख लिया था महक ने। लेकिन आवाज़ उस अजनबी शख्स तक पहुंच गई थी। वो बिना रुके सीढि़यां उतरता गया। हां, नाम जरूर बता गया था अपना, मयंक।

"कितना अजीब सा इंसान है। मैं इतने प्यार से बात कर रही हूं, और वो है, मेरी ही गलती है, पता नहीं क्यों उसे देखते ही शराफत की सारी नदियां मेरे अंदर से बहकर बाहर आने की कोशिश करने लगीं। अब से कोई दुआ-सलाम नहीं।" ये इंसानी फितरत है। हम अगर किसी को तवज्जो देते हैं तो वापस उसी की उम्मीद करते हैं और उम्मीद तो उम्मीद है। कब दगा दे जाए, किसे पता।

जान-पहचान बढ़ाने की महक की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया था। महक अपनी एकेडमी चली गई।

पूरा दिन बीत गया। शाम को महक घर लौटी तो घर के सामने बच्चों की टोली खेलने और हुड़दंग मचाने में लगी थी। महक कानों में ईयनफोन लगाए गाने सुनते हुए अपने घर के गेट तक पहुंची ही थी कि एक बॉल तेज़ी से आई और उसके हाथ पर लगी। उसका मोबाइल फोन नीचे गिर गया। और दो तीन टुकड़ों में बिखर गया। उसके हाल ए दिल को समझता प्यार भरा एक गाना उस फोन के टूटते ही बंद हो गया था।

महक एक हाथ में अपना टूटा हुआ मोबाइल फ़ोन और एक हाथ में बॉल लेकर जब बच्चों की तरफ मुड़ी तब तक सब रफूचक्कर हो चुके थे।

शिखा द्विवेदी की लिखी कहानी पढ़िए।

बस एक छोटा बच्चा हाथ में बैट लिए घबराया सा वहां अकेले खड़ा था। "क्यों कहां गए तुम्हारे बाकी के दोस्त, और तुम-तुम वही हो न जो सुबह सुबह मेरे घर आए थे। चलो बताओ कहां है तुम्हारा घर, अभी तुम्हारी मम्मी से शिकायत करती हूं…, चलो, बताओ।" महक ने उस बच्चे का हाथ पकड़ा और उसके घर ले जाने लगी। अभी तक डरा, सहमा सा खड़ा बच्चा अचानक रोने लगा। उसने बैट वहीं ज़मीन पर फेंका और रोते हुए वहां से भाग गया। "अरे-अरे, सुनो तो," महक पीछे से रोकती रही पर उस बच्चे ने पलटकर नहीं देखा।

वो बच्चा दौड़ता हुआ उसी बिल्डिंग में दाखिल हुआ जहां महक रहती थी। महक भी उसके पीछे-पीछे गई।

जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़कर महक पहले माले पर पहुंची तो देखा वो बच्चा मयंक के दरवाज़े के पास खड़ा होकर रो रहा था।

महक ने उसे पीछे से पकड़कर अपनी ओर घुमाया। "तुम यहां क्या कर रहे हो। और रो मत चुप हो जाओ" महक के इतना कहते ही वो बच्चा और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। तभी मयंक के घर का दरवाज़ा खुला, दरवाज़ा मयंक ने ही खोला था। वो बच्चा दौड़कर मयंक से लिपट गया।

"शौर्य बेटा क्या हुआ, चोट लग गई या किसी ने कुछ कहा। अरे बताओ तो" मयंक से लिपटा शौर्य बस रोता ही जा रहा था।

मयंक के बार-बार पूछने पर उसने महक की ओर इशारा किया। तब मयंक का भी ध्यान दरवाज़े पर खड़ी महक की ओर गया "माफ करिएगा मैंने आपको देखा नहीं। क्या आप जानती हैं हुआ क्या हैं।" मयंक ने महक से सवाल पूछा पर महक तो कहीं और ही खोई थी उस वक्त, शायद अपने दिल को कोस रही थी जो बिना जाने समझे एक ऐसे शख्स की ओर खिंचा जा रहा था। जो एक बच्चे का पिता था। और ज़ाहिर है किसी का पति भी।

"शौर्य अंदर चलो और फिर बताओ हुआ क्या है।" मयंक ने शौर्य को अंदर ले जाकर सोफे पर बिठाया। महक दरवाज़े पर ही खड़ी रही।

"माफ कीजिएगा। गलती किसी की भी रही हो नुकसान तो आपका हो गया। क्या मैं देख सकता हूं आपका मोबाइल शायद ठीक हो सके।" मयंक ने महक का मोबाइल मांगा और उसे जोड़ने की कोशिश करने लगा।

"आप भी आइए प्लीज़" मयंक के बुलाने पर अपने दिल को कोसना बंद करके महक अंदर आ गई।

अंदर शौर्य ने बताया कि वो नीचे बच्चों के साथ खेल रहा था और बॉल महक के फोन पर जाकर लग गई। फोन गिरकर टूट गया। उसकी कोई गलती नहीं थी क्योंकि न तो वो बैंटिग कर रहा था और न बॉलिंग। फिर सब बच्चे बैट उसके हाथ में थमाकर भाग गए और वो फंस गया।

शौर्य की बातें सुनकर महक को हंसी आ गई। मयंक के चेहरे पर भी हल्की मुस्कान झांक गई थी। हालांकि मयंक ने पूरी कोशिश की थी उस मुस्कान को छिपाने की।

"माफ कीजिएगा। गलती किसी की भी रही हो नुकसान तो आपका हो गया। क्या मैं देख सकता हूं आपका मोबाइल शायद ठीक हो सके।" मयंक ने महक का मोबाइल मांगा और उसे जोड़ने की कोशिश करने लगा।

और महक। वो ड्रॉइंगरूम की दीवारों पर सजी तस्वीरों के जरिए मयंक की ज़िंदगी को और नज़दीक से पढ़ने की कोशिश में लग गई। दीवारों पर ज़्यादातर तस्वीरें मयंक और शौर्य की ही थीं।

"शौर्य आपका बेटा है न" महक ने एक जाना समझा सवाल पूछा था जिसके जवाब में मयंक ने बस धीरे से सिर हिला दिया था। "और आपकी वाइफ" महक ने काफी संकोच के साथ पूछा था ये सवाल।

"नहीं हैं" बस इन दो शब्दों में समेट दिया था मयंक ने जवाब।

"आई एम सॉरी। वैसे क्या हुआ था उन्हें" महक मयंक की ज़िंदगी की किताब के पन्ने पलटने की कोशिश कर रही थी।

"नहीं, नहीं। आप जो समझ रही हैं वैसा नहीं है" मयंक ने महक की सोच के दौड़ते घोड़ों को वहीं रोक दिया।

ओह, माफ कीजिएगा। मुझे कुछ और ही लगा। अच्छा तो मायके गई हैं, महक बस जान लेना चाहती थी सबकुछ मयंक के बारे में। पर क्यों, ये वो खुद भी नहीं समझ पा रही थी।

लेकिन मयंक नहीं चाहता था महक से कुछ भी साझा करना।

"बन नहीं पाएगा। लगता है मोबाइल रिपेयरिंग शॉप पर ले जाना होगा। आप चाहें तो मैं कल बनवा दूंगा आपका फ़ोन। तब तक मेरे पास एक एक्स्ट्रा सेट है आप वो इस्तेमाल कर सकती हैं। आप बैठिए। मैं आपके लिए चाय लेकर आता हूं और फ़ोन भी।"

मयंक ने फोन लाकर महक को दिया फिर चाय बनाने के लिए किचन की ओर जाने लगा। पर महक ने उसे रोक दिया।

"जी फ़ोन के लिए शुक्रिया, पर, माफ करिएगा, चाय मैं सिर्फ अपने हाथों की ही बनी पीती हूं"।

शायद महक को एहसास हो गया था कि उसकी मौजूदगी और सवालों से मयंक कुछ असहज हो रहा था।

इसलिए वो फोन लेकर दरवाज़े की ओर बढ़ गई, फिर भी कदम साथ नहीं दे रहे थे उसके। महक का दिमाग उसे सही-ग़लत समझाने में लगा था, पर उसका दिल न जाने क्यों मयंक की ओर खींचा जा रहा था। बस एक दिन और सिर्फ तीन मुलाक़ातों में क्यों एक अनजान शख़्स महक को सदियों से जाना हुआ लग रहा था। इस खिंचाव को रोकने का इस वक्त महक के पास बस एक ही तरीका था कि, वो वहां से चली जाए।

महक ने जल्दी से दरवाज़ा खोला और बिना एक बार भी पीछे मुड़े, सीधे ऊपर की सीढ़ियां चढ़ गई।

महक उस रात काफी देर तक मयंक के बारे में ही सोचती रही। ये जानते हुए भी कि मयंक शादीशुदा था महक उसके ख़्याल को अपने मन से मिटा नहीं पा रही थी। महक समझती थी कि वो वक्त और अपनी भावनाएं दोनों ज़ाया कर रही थी।

लेकिन कई बार कुछ लम्हें दिल और दिमाग दोनों को बहा ले जाते हैं। महक भी सही-ग़लत सोचना छोड़कर बस उन लम्हों के साथ हो ली थी।

महक की रात तो आंखों में ही बीत गई थी। पर सुबह वो देर तक सोती रही। और उसकी नींद टूटी डोरबेल से। महक जल्दी से उठी और दरवाज़ा खोला तो सामने मयंक था। मयंक को देखते ही महक की अलसाई अधखुली सी आंखों में चमक आ गई। अरे, आप, गुडमॉर्निंग, आइए।

अंदर आइए, महक दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गई और ड्रॉइंगरूम के सोफों पर बिखरे पड़े कपड़े और टेबल पर फैली किताबों को समेटने लगी।

माफ करिएगा। वो ये सब बिखरा हुआ। आप आइए न। मयंक अभी तक दरवाज़े पर ही खड़े थे। महक के बार-बार कहने पर अंदर आए पर बैठे नहीं। वो मैं आपका फ़ोन लौटाने आया हूं। मयंक ने महक का मोबाइल वहीं टेबल पर रख दिया।

"थैंक्यू, पर इतने सवेरे कौन सी दुकान खुली मिल गई आपको" महक ने फोन उठाया और उलट-पलट कर उसे देखने लगी।

"वो, रात को मैंने कोशिश की तो मुझसे ही बन गया। अब चलता हूं, दरअसल शौर्य के लिए एक ट्यूशन टीचर की तलाश करनी है फिर ऑफिस भी जाना है।" मयंक जाने लगा। अगर मैं आपकी एक प्रॉब्लम सॉल्व कर दूं तो, महक ने जाते हुए मयंक को रोक लिया।

मैं, कुछ समझा नहीं, मयंक वापस अंदर आ गया। अगर आप चाहें तो मैं शौर्य को ट्यूशन दे सकती हूं। मैं अपनी डांस एकेडमी से शाम 5 बजे तक आ जाती हूं। उसके बाद पढ़ा सकती हूं। अगर आप ठीक समझें तो। महक अब मयंक के जवाब का इंतज़ार कर रही थी।

"ठीक हैं, मैं शौर्य से कह दूंगा। वो शाम को आ जाएगा।" मयंक ने कुछ सोचने के बाद जवाब दिया और फिर दरवाज़े की ओर मुड़ गया।

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"अरे, रुकिए, एक कप चाय तो पीकर जाइए।" महक ने पीछे से मयंक को रोका।

"जी शुक्रिया पर इसे इत्तेफ़ाक कहिए या कुछ और, पर चाय तो मुझे भी सिर्फ अपने हाथों से बनी ही पसंद है।"

बस इतना कहकर मयंक चला गया। उसी शाम से शौर्य रोज़ महक के घर ट्यूशन के लिए आने लगा। धीरे-धीरे महक और शौर्य एक दूसरे से काफी घुलमिल गए। इतना कि शौर्य अब ज्यादा समय महक के घर ही बिताता था। शौर्य ने महक को बताया कि उसने कभी अपनी मां को नहीं देखा और न ही किसी दूसरे रिश्तेदार को।

उस रात मयंक घर की चाबी ऑफिस में भूल गया था। घर लौटा तो काफी देर तक डोरबेल बजाने के बाद भी शौर्य ने दरवाज़ा नहीं खोला। मयंक ने महक को फोन किया तो पता चला शौर्य उसके घर पर सो गया था। दूसरी चाबी जो शौर्य के पास थी वो घर के अंदर रह गई थी और मेनडोर बाहर से लॉक हो गया था।

हां, बताना चाहता हूं, वो सब जो शायद आप जानना चाहती हैं, मयंक वहीं टेरिस की ज़मीन पर बैठ गया। महक भी मयंक के पास लेकिन कुछ दूरी बनाकर बैठ गई। "मुझसे उम्र में बड़ी थी वो, प्यार कब हुआ, पता ही नहीं चला, घर और घरवालों से दूर हो गए हम, शादी कर ली, सब कुछ ठीक था, लेकिन जब शौर्य आने वाला था, तब अचानक से सब कुछ बदल गया।

"महक, मैं शौर्य को लेने आ रहा हूं। हम आज रात किसी होटल में रुक जाएंगे" मयंक शौर्य को लेने महक के फ्लोर पर आ गया।

शौर्य गहरी नींद में था। मयंक के जगाने पर नहीं उठा।

"यहीं सोने दीजिए इसे, महक ने शौर्य को जगाने की कोशिश करते मयंक का हाथ पकड़ लिया।

"ठीक है। मैं टेरिस पर सो जाऊंगा। वैसे भी ज्यादा ठंड नहीं है" मयंक ने धीरे से हाथ छुड़ाया और टेरिस पर चला गया।

मयंक को नींद नहीं आ रही थी। वो टेरिस पर टहल रहा था। अचानक उसके कदम रुक गए सामने महक खड़ी थी। उसके हाथ में चादर थी।

"ठंड इतनी भी कम नहीं है… इसकी ज़रूरत पड़ेगी" महक ने चादर मयंक की ओर बढ़ा दी और वापस जाने लगी।

"वो मुझे छोड़कर जा चुकी है" मयंक खुद से कुछ कह रहा था या महक से ये समझ नहीं आया।

आपने मुझसे कुछ कहा, टेरिस से नीच जाती महक रुक गई। हां, बताना चाहता हूं, वो सब जो शायद आप जानना चाहती हैं, मयंक वहीं टेरिस की ज़मीन पर बैठ गया। महक भी मयंक के पास लेकिन कुछ दूरी बनाकर बैठ गई। "मुझसे उम्र में बड़ी थी वो, प्यार कब हुआ, पता ही नहीं चला, घर और घरवालों से दूर हो गए हम, शादी कर ली, सब कुछ ठीक था, लेकिन जब शौर्य आने वाला था, तब अचानक से सब कुछ बदल गया।

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वो तैयार नहीं थी इस सब के लिए, मैंने भरोसा दिलाया था उसे कि मैं सबकुछ संभाल लूंगा, पर शायद मैं नाकाम रहा। ज़िंदगी उसे क़ैद लगने लगी थी, कोशिश की थी मैंने उसे रोकने की। बहुत कोशिश, पर वो चली गई एक ख़त छोड़कर। ख़त में लिखा था, हमारी उम्र का अंतर हमारे प्यार पर भारी पड़ा।" अपने मन की किताब महक के सामने खोल कर मयंक चुप हो गया।

रात का वो सन्नाटा जैसे और गहरा हो गया था। हिम्मत करके महक मयंक के थोड़ा नज़दीक आ गई, फिर धीरे से मयंक के कंधे पर हाथ रखा। शायद वो प्यार रहा ही न हो, क्योंकि जहां प्यार होता है। वहां उम्र बस एक गिनती होती है, इतना कहकर महक ख़ामोश हो गई।

कुछ पलों की चुप्पी महक ने ही तोड़ी, रात के साथ ठंड बढ़ रही है, मेरे हाथों की चाय पीएंगें? अब रोज चलेगी वो चाय, मयंक ने महक के हाथों पर अपना हाथ रख दिया था।

      

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