इन लड़कियों की जि़ंदगी के दो साल समाज के नाम 

Kishan KumarKishan Kumar   15 April 2017 10:55 AM GMT

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इन लड़कियों की जि़ंदगी के दो साल समाज के नाम गाँवों के स्वास्थ्य केन्द्रों में निस्वार्थ भाव से काम करती अग्रिमाएं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

रायबरेली। अचानक गाँव के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में कुछ लड़कियां पहुंचती हैं और बाथरूम से लेकर परिसर की सफाई में जुट जाती हैं। कुछ ही देर में ये पूरे स्वास्थ्य केंद्र को चकाचक कर देती हैं। अग्रिमा समूह की इन लड़कियों ने अपनी जिंदगी के दो साल समाज के नाम कर दिए हैं।

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ग्रामीण अस्पतालों में सुविधाजनक इलाज और प्रसूताओं की बेहतर तरीके से देखभाल करने के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग की मदद लड़कियों का एक समूह कर रहा है, इस समूह को लोग अग्रिमा के नाम से जानते हैं। अग्रिमा सरकारी अस्पतालों में निस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं दे रही हैं। अग्रिमा नवजात शिशु और उसकी मां की देखभाल करने वाली की देखरेख करने से लेकर समुदाय का हर वह कार्य खुशी-खुशी करती हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र शिवगढ़ में मंगलवार को सफाई और स्वच्छता कार्यक्रम के तहत इन अग्रिमाओं ने परिसर से लेकर शौचालय तक की साफ-सफाई तो की ही, दीवारों पर पुट्टी लगाने से लेकर रंगरोगन करने तक का कार्य किया।

अग्रिमा परिवार की 22 वर्षीय सदस्या अमृता डीह ब्लॉक की रहने वाली हैं और पिछले दो वर्षों से सक्षम संस्था में काम रही थीं और अब अग्रिमा परिवार की सदस्य हैं। अग्रिमा परिवार की जानकारी देते हुए संगठन की संचालिका आरती बताती हैं, “अग्रिमा कार्यक्रम जनवरी-2017 से शुरू किया गया और यह गैर सरकारी संस्था ‘सक्षम’ द्वारा चलाया जा रहा कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम में 19 से 24 वर्ष तक की अविवाहित युवतियां शामिल हैं, जिन्होंने यह तय किया है कि वह अपनी जिन्दगी के दो साल समाज को समर्पित कर देंगी और इस दौरान वह शादी भी नहीं करेंगी।’’

कंगारू मदर केयर में दे रहीं सहयोग

अग्रिमाएं इन दिनों राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत चलाये जा रहे प्रोग्राम “कंगारू मदर केयर“ में अहम जिम्मेदारी निभा रही हैं। कंगारू मदर केयर की जानकारी देते हुये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के रायबरेली जिले में नोडल डॉ. एसके चक ने बताया,’’ मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में 50 केएमसी (कंगारू मदर केयर) यूनिट खोली जा चुकी है, जहां नवजात शिशु को बॉडी थेरेपी के ज़रिए स्वस्थ्य रखने की कोशिश की जाती है, जिसमें ये अग्रिमाएं निस्वार्थ भाव से अपनी सेवायें देती हैं।’’

अग्रिमा समुदाय की महिलाएं अस्पतालों में काम काज संभालने के साथ साथ ड्राइविंग, कम्प्यूटर, बागवानी, स्वास्थ्य सेवा के साथ-साथ रंगरोगन दीवार पर पुट्टी लगाने का काम करती हैं। अग्रिमा संगठन में शामिल होने की खुशी जताते हुए सतांव निवासी 20 वर्षीय रानी बताती हैं, “जब मैं पहली बार यहां आयी तो मेरी आरती उतारी गई। मुझे परात में खड़ाकर के सबने बारी-बारी मेरे पैर धोये, रोली चन्दन का टीका किया। इतना आदर सम्मान तो कभी मुझे मेरे घर में भी नही मिला था।” ये बोलते-बोलते उसका गला रुंध जाता है और आंखें भर आती हैं।’’

रायबरेली जिला अस्पताल के अतिरिक्त शिवगढ़ और बछरावाँ सीएचसी पर भी ये अग्रिमायें अपनी सेवायें दे रही हैं। मौजूदा समय में रायबरेली में कुल 22 अग्रिमाएं हैं। प्रक्रिया की जानकारी देते हुए कोआडिर्नेटर आरती बताती हैं कि हर सप्ताह हम 50 युवतियों से मिलते हैं फिर उनमें से चयन करते हैं कि कौन अग्रिमा बन सकती है फिर उसे आगे बढ़ाते हैं।भविष्य की योजना बताते हुये कोआर्डिनेटर आरती ने आगे बताती हैं, ‘’हमारा एक डायग्नोस्टिक लैब बनकर तैयार है, जहां बच्चों की सभी जांचें अग्रिमा ही करेंगी।

यह लैब पूरी तरह अग्रिमाओं द्वारा संचालित होगा। इसके साथ-साथ ट्रांसपोर्ट का मैनेजमेंट फोटोग्राफी और वीडियो मीटिंग के साथ-साथ एक ऑयल फैक्ट्री भी लगायी जा रही है, जिसमें बेबी मसाज ऑयल बनाया जाएगा और यह सारा कार्य अग्रिमायें ही सम्भालेंगी। शिवगढ़ और बछरावां सीएससी ही नहीं बल्कि आसपास के गाँवों में भी ये सफेद साड़ी और लाल बार्डर वाली अग्रिमाएं चर्चा का केन्द्र बनती जा रही हैं।

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