#SwayamProject मदरसे में दूर की गईं छात्राओं की माहवारी से जुड़ी भ्रांतियां

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   5 April 2017 12:55 PM GMT

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#SwayamProject मदरसे में दूर की गईं छात्राओं की माहवारी से जुड़ी भ्रांतियांलड़कियों ने खुलकर की अपनी समस्याओं पर बात। फोटो- अश्वनी

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। भारतीय समाज में आज भी महिलाएं स्वास्थ्य और शारीरिक परिवर्तन पर खुल कर बोलने संकोच करती है लेकिन धीरे-धीरे इस परम्परा में बदलाव की आहट सुनाई पड़ने लगी है अगर इन्हें सही ढंग से समझाया जाए, तो थोड़ी हिचक के साथ ही सही महिलाएं आगे आएंगी।

लखनऊ जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर की दूरी पर सरावां गाँव है। इस गाँव के जामिया तयब्बा लील बनाद में आज गाँव कनेक्शन के 'स्वयं प्रोजेक्ट' के तहत खेल प्रोजेक्ट संस्था के सहयोग से किशोरी स्वास्थ्य और चाइल्ड एब्यूज पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में महिलाओं को माहवारी के बारे में, सेनेटरी पैड का सही प्रयोग कैसे करे ये भी बताया गया। इसके साथ ही सैनेटरी पैड वितरित भी किये गए।

खेल प्रोजेक्ट संस्था के सहयोग से किशोरी स्वास्थ्य और चाइल्ड एब्यूज पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के दौरान मदरसे की किशोरियों ने बताया की माहवारी के दौरान 'नापाक' होने के कारण हम लोग न तो नमाज अदा करते है और न ही इन दिनों रोजे रख सकते है। कक्षा आठ में पढ़ने वाली उजमा बताती हैं, “इन सब बारे में हम लोग कभी बात नही कर सकते और करे भी किससे अम्मी को भी इतनी जानकारी नही है।”

स्वयं प्रोजेक्ट कार्यक्रम में लड़कियों को अंगना ने किया जागरुक।

माहवारी को लेकर भ्रांतिया के बारे में खेल प्रोजेक्ट संस्था की ट्रेनर अंगना प्रसाद ने बताया, “माहवरी को लेकर हर धर्म में भ्रांतिया व्याप्त है जिनमे कोई वैज्ञानिक लॉजिक नही है जैसे माहवारी के दिनों में आचार नही छू सकते, रसोई में जाना मना है, मंदिर ,मस्जिद नहीं जा सकते, नमाज में हिस्सा नहीं ले सकते, बाल नहीं धुल सकते, जबकि मुस्लिम माहवारी के दिनों में भी बाल धुलती है तो ये हर जगह अलग-अलग परम्पराएं हैं जो चली आ रही है।”

स्वयं प्रोजेक्ट की टीम और खेल प्रोजेक्ट की टीम से अपनी समस्याएं बतातीं छात्राएँ।

नाम न छापने की बात पर विद्यालय के शिक्षक ने बताया, “बालक और बालिकाओं की सयुक्त कक्षा में मैं ही नही अमूनन शिक्षक किशोरी स्वास्थ्य,और शारीरिक सरंचना के पन्ने लपेट देते है संकोच के कारण पढ़ा ही नहीं पाते ।”

मदरसे के प्राचार्य डॉ नियामत अली ने बताया, “ज्यादातर मदरसो में इस प्रकार के आयोजन नही कराये जाते, ख़ास कर मुस्लिम बच्चियां शिक्षा से दूर है। गाँव कनेक्शन अखबार के द्वारा यह आयोजन हुआ। मैं चाहता हूं कि मुस्लिम बच्चों को आधुनिक शिक्षा भी दी जाए उनके एक हाथ में कुरान हदीस हो तो दूसरे हाथ में कम्प्यूटर भी होना चाहिए।”

     

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