तेल के बाद मेंथा की जड़ें बेचकर लाखों रुपये कमाते हैं बाराबंकी के किसान, अब लगाइए नर्सरी

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तेल के बाद मेंथा की जड़ें बेचकर लाखों रुपये कमाते हैं बाराबंकी के किसान, अब लगाइए नर्सरीबाराबंकी के एक खेत से मेंथा की जड़े ले जाते कारोबारी। फोटो वीरेंद्र

वीरेन्द्र सिंह, स्वयं कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

बेलहरा (बाराबंकी)। मेंथा के गढ़ बाराबंकी में इस बार भी बड़े पैमाने पर पिपरमेंट लगाने की तैयारी शुरु हो गई है। आलू, सरसों और मसूर आदि फसलों की कटाई के बाद किसान मेंथा लगाएंगे। बाराबंकी के किसान मेंथा से दो तरह से कमाई करते हैं, फसल का तेल निकालने से पहले नर्सरी के लिए वो इस मौसम में लाखों रुपये की जड़ें बेच लेते हैं।

बाराबंकी, सीतापुर, फैजाबाद, बहराइच और लखीमपुर समेत यूपी के कई जिलों में मेंथा की खेती होती है। बाराबंकी के किसान गर्मी और बरसात के सीजन में मेंथा काटने के बाद खेत जड़ों के लिए छोड़ देते हैं, जो इस मौसम में बीज के लिए तैयार हो जाती है। बाराबंकी में पैदा हुई जड़ें आसपास के कई जिलों में जाती हैं।

जड़ों से हमें दोहरी कमाई हो जाती है। जुलाई में रोपाई करने के बाद जनवरी में मेंथा जड़ तैयार हो जाती है, एक एकड़ में करीब 50 कुंटल तक जड़ें होती है, जिससे करीब 70-80 हजार रुपये की कमाई होती है। यहां से कन्नौज, उरई समेत कई जिलों के किसान जड़ें ले जाते हैं।
अवधेश कुमार, निवासी बड़केपुरवा, बाराबंकी

जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर सूरतगंज और फतेहपुर ब्लॉक में इस दौरान बड़े पैमाने पर जड़ों की खुदाई हो रही है। इससे किसानों को बहुत कम लगात में 70-80 हजार की कमाई हो जाती है। फतेहपुर ब्लॉक के बड़केपुरवा निवासी किसान अवधेश कुमार बताते हैं, “जड की खेती के लिए मेथा की रोपाई जुलाई माह में कर दी जाती है जो जनवरी में तैयार हो जाती है। एक एकड 18 से 20 हजार की लागत आती है। जबकि 50 कुंटल तक जड़ निकल जाती है, इस बार करीब 2000 रुपये कुंटल का भाव है, यानि 70-80 हजार प्रति एकड़ की आसानी से आमदनी हो जाएगी।” किसान अपने खेतों में नई फसल के लिए जड़े दूसरे जिलों को भेज देते हैं। यहां से कन्नौज, उरई, अकबरपुर, बहराइच समेत कई दर्जन जिलों के किसान खरीदारी के लिए आते हैं। जिले के लकौड़ा समेत कई गांवों के किसान जड़ों के लिए पूरे साल सिर्फ मेंथा की खेती करते हैं।

मेंथा की नर्सरी तैयार करता किसान।

वर्ष 2014-15 जिले में 70% क्षेत्रफल में मेथा की खेती हुई थी जो 2016 में घटकर 60% क्षेत्रफल रह गई थी, इस बार किसान बड़े पैमाने पर नर्सरी कर रहे हैं, ऐसे में उम्मीद है कि क्षेत्रफल बढ़ सकता है।
जयकरण सिंह, जिला उद्यान अधिकारी, बाराबंकी

जिला उद्यान अधिकारी जय करण सिंह बताते हैं, “वर्ष 2014-15 जिले में 70% क्षेत्रफल में मेथा की खेती हुई थी जो 2016 में घटकर 60% क्षेत्रफल रह गई थी, इस बार किसान बड़े पैमाने पर नर्सरी कर रहे हैं, ऐसे में उम्मीद है कि क्षेत्रफल बढ़ सकता है।” यूपी के कुल उत्पादन का करीब 70 फीसदी मेंथा बाराबंकी में होता है। जिले की कृषि योग्य भूमि के 60-70 फीसदी में इस सीजन में मेंथा लगता है।

सूरतगंज ब्लॉक में लालापुर के जर्नादन वर्मा बताते हैं, “अगैती मेंथा के लिए जनवरी के अंत में नर्सरी करना उत्तम होता है, एक एकड़ के लिए करीब 40 किलो जड़ की जरुरत होती है, जो 40-45 दिन में तैयार हो जाती है।” मौसम के अनुकूल फरवरी के आखिर से मार्च तक रोपाई करने से अच्छा तेल (उत्पादन) निकलता है। आने वाले एक महीने में आलू और सरसों के खेत खाली हो जाएंगे, जिसमें किसान अगैती मेंथा लगाएंगे तो कुछ किसान गेहूं और गन्ना आदि काटने के बाद बरसात से से पहले एक फसल लेंते हैं।

खेत से निकाली गई मेंथा की जड़ें, जिनसे अब नई फसल के लिए नर्सरी बननी है।

बेलहरा के किसान रमेश चंद्र मौर्य बताते हैं, “जिले की मिट्टी और जलवायु इसके अनुकूल है। एक एकड़ में 50-60 किलो तेल निकलता है। फिलहाल बाजार में 800-1000 रेट चलता है ऐसे में किसानों को प्रति एकड़ दूसरी फसलों के मुकाबले अच्छी आमदनी हो जाती है।”

किसानों की किसानों को सलाह

मेंथा की फसल में आमदनी हो अच्छी होती है लेकिन इसे देखभाल और लागत की जरुरत ज्यादा रहती है। सिंचाई तो ज्यादा करनी ही पड़ती है, साथ ही खाद और उर्वरकों का भी ध्यान रखना होता है। बाराबंकी में गंगापुर के किसान रामचंद्र वर्मा कहते हैं, “खेत तैयार करते समय एनपीके सल्फर मिलकार जुताई करनी चाहिए।” इस फसल में सुंडी का प्रकोप अधिक रहता है इसलिए शुरु से ही कीटनाशकों का ध्यान रखना चाहिए। मेंथा की कटाई के वक्त भी बहुत सचेत रहना पड़ता है, बहुत ज्यादा नम या सूखे खेत में तेल निकलने की संभावनाएं कम हो जाती हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

       

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