0

आज़ादी के बाद भी छीने गए थे जनता के मूल अधिकार, अब परदेस तक में बढ़ रही है साख
आज़ादी के बाद भी छीने गए थे जनता के मूल अधिकार, अब परदेस तक में बढ़ रही है साख

By Dr SB Misra

सबेरा हुआ और सारे देश में आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा था, मेरे गाँव में भी चारों तरफ खुशी का वातावरण था वैसे मैं अधिक तो नहीं समझ पा रहा था क्योंकि केवल 8 साल का था मगर बहुत सी बातें अच्छी तरह याद है।

सबेरा हुआ और सारे देश में आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा था, मेरे गाँव में भी चारों तरफ खुशी का वातावरण था वैसे मैं अधिक तो नहीं समझ पा रहा था क्योंकि केवल 8 साल का था मगर बहुत सी बातें अच्छी तरह याद है।

आख़िर दवाइयों को आजीवन खाने की ज़रूरत पड़ती ही क्यों है?
आख़िर दवाइयों को आजीवन खाने की ज़रूरत पड़ती ही क्यों है?

By Dr SB Misra

समय के साथ गाँव वालों का खानपान बदला और जानवरों की संख्या घटती गई आदमियों की संख्या बढ़ती गई। दूध की जगह चाय के प्रयोग का परिणाम, कुपोषण और अधिकाधिक बच्चों की मृत्यु में बदलता गया। अब यही कारण था कि देश के लोगों की औसत आयु पश्चिमी देशों की अपेक्षा बहुत कम थी, लेकिन अब बच्चों के मृत्यु में कुछ हद तक रोक लगी है, इसलिए देशवासियों की औसत आयु भी बढ़ी है।

समय के साथ गाँव वालों का खानपान बदला और जानवरों की संख्या घटती गई आदमियों की संख्या बढ़ती गई। दूध की जगह चाय के प्रयोग का परिणाम, कुपोषण और अधिकाधिक बच्चों की मृत्यु में बदलता गया। अब यही कारण था कि देश के लोगों की औसत आयु पश्चिमी देशों की अपेक्षा बहुत कम थी, लेकिन अब बच्चों के मृत्यु में कुछ हद तक रोक लगी है, इसलिए देशवासियों की औसत आयु भी बढ़ी है।

इन वजहों से देश में होती रही है वृक्षों की पूजा
इन वजहों से देश में होती रही है वृक्षों की पूजा

By Dr SB Misra

विकास के लिए पेड़ों का कटान होता रहता है, खेती की ज़मीन बनाने के लिए जंगलों और वनस्पति का विनाश हो रहा है, छायादार पेड़ घटते जा रहे हैं और वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ज़मीन की उर्वरा शक्ति घट रही है। ऐसी स्थिति में ज़मीन के अंदर पानी एक तो घुस नहीं पाता और थोड़ी गहराई तक घुस भी गया तो शुद्ध नहीं रह पाता, हमारा भविष्य क्या होगा जीवन कैसा होगा? हम सोच नहीं सकते।

विकास के लिए पेड़ों का कटान होता रहता है, खेती की ज़मीन बनाने के लिए जंगलों और वनस्पति का विनाश हो रहा है, छायादार पेड़ घटते जा रहे हैं और वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ज़मीन की उर्वरा शक्ति घट रही है। ऐसी स्थिति में ज़मीन के अंदर पानी एक तो घुस नहीं पाता और थोड़ी गहराई तक घुस भी गया तो शुद्ध नहीं रह पाता, हमारा भविष्य क्या होगा जीवन कैसा होगा? हम सोच नहीं सकते।

सनातन परंपरा में बोलने की असीमित आजादी थी और है
सनातन परंपरा में बोलने की असीमित आजादी थी और है

By Dr SB Misra

समाज में माता-पिता और गुरु का स्थान सबसे ऊंचा हुआ करता था। परिजन आपस में स्नेहपूर्ण व्यवहार तो रखते ही थे ग्रामवासी भी परस्पर स्नेह पूर्ण संबंधों से जुड़े रहते थे। परस्पर भिन्न विचारों का सम्मान और स्वीकृति हुआ करती थी कोई भी अपने विचारों को दूसरों पर थोपने की कोशिश नहीं करता था।

समाज में माता-पिता और गुरु का स्थान सबसे ऊंचा हुआ करता था। परिजन आपस में स्नेहपूर्ण व्यवहार तो रखते ही थे ग्रामवासी भी परस्पर स्नेह पूर्ण संबंधों से जुड़े रहते थे। परस्पर भिन्न विचारों का सम्मान और स्वीकृति हुआ करती थी कोई भी अपने विचारों को दूसरों पर थोपने की कोशिश नहीं करता था।

भारत में भी वोट डालने के साथ चुनाव के नतीजे घोषित क्यों नहीं हो सकते?
भारत में भी वोट डालने के साथ चुनाव के नतीजे घोषित क्यों नहीं हो सकते?

By Dr SB Misra

ईवीएम मशीनों के साथ यदि कोई कठिनाई है तो, वह है देश का अनेक सप्ताहों तक चलने वाला चुनाव और बैलेट बाक्सों की लंबे समय तक रखवाली। अमेरिका जैसे देशों में वोट जैसे-जैसे डाले जाते हैं, उसी के साथ उनकी गणना होती रहती है। इसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं रहती मतदाता के वोट डालने के बाद कोई गड़बड़ी की संभावना नहीं होती होगी।

ईवीएम मशीनों के साथ यदि कोई कठिनाई है तो, वह है देश का अनेक सप्ताहों तक चलने वाला चुनाव और बैलेट बाक्सों की लंबे समय तक रखवाली। अमेरिका जैसे देशों में वोट जैसे-जैसे डाले जाते हैं, उसी के साथ उनकी गणना होती रहती है। इसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं रहती मतदाता के वोट डालने के बाद कोई गड़बड़ी की संभावना नहीं होती होगी।

कुर्सी तोड़ने से नहीं क़ाबिल बनने से ही संभव है अच्छी नौकरी मिलना
कुर्सी तोड़ने से नहीं क़ाबिल बनने से ही संभव है अच्छी नौकरी मिलना

By Dr SB Misra

बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है दिशाहीन शिक्षा, जिसमें बच्चों को यह नहीं पता कि किस मंजिल तक जाने के लिए पढ़ रहे हैं और और उसे पाने का रास्ता क्या है? घर वालों को भी यह नहीं मालूम कि वह अपने बच्चों को किस लिए पढ़ा रहे हैं।

बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है दिशाहीन शिक्षा, जिसमें बच्चों को यह नहीं पता कि किस मंजिल तक जाने के लिए पढ़ रहे हैं और और उसे पाने का रास्ता क्या है? घर वालों को भी यह नहीं मालूम कि वह अपने बच्चों को किस लिए पढ़ा रहे हैं।

कैसे होगी देश के संविधान की रक्षा?
कैसे होगी देश के संविधान की रक्षा?

By Dr SB Misra

देश की नई पीढ़ी को संविधान की मंशा और उसकी आत्मा की अनुभूति, तभी होगी जब संविधान निर्माण की चर्चा और बहस को देखा जाए। इसलिए आवश्यक है कि संविधान सभा की कार्यवाही को हमारे स्कूलों में दिखाया जाना चाहिए ताकि पता चले कि उस समय के विद्वानों ने किस आधार पर संविधान बनाया था।

देश की नई पीढ़ी को संविधान की मंशा और उसकी आत्मा की अनुभूति, तभी होगी जब संविधान निर्माण की चर्चा और बहस को देखा जाए। इसलिए आवश्यक है कि संविधान सभा की कार्यवाही को हमारे स्कूलों में दिखाया जाना चाहिए ताकि पता चले कि उस समय के विद्वानों ने किस आधार पर संविधान बनाया था।

बेहतर शिक्षा के लिए ज़रूरी है बजट में इसके लिए भी खुले सरकारी खज़ाना
बेहतर शिक्षा के लिए ज़रूरी है बजट में इसके लिए भी खुले सरकारी खज़ाना

By Dr SB Misra

यह सच है कि गाँव में सड़क बनी हैं, बिजली आई है और पानी की भी व्यवस्था हुई है, पीने के लिए भी और सिंचाई के लिए भी। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में शहर और गाँव का जो अंतर पहले था वैसा ही अंतर आज भी है।

यह सच है कि गाँव में सड़क बनी हैं, बिजली आई है और पानी की भी व्यवस्था हुई है, पीने के लिए भी और सिंचाई के लिए भी। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में शहर और गाँव का जो अंतर पहले था वैसा ही अंतर आज भी है।

कैसे होगी देश के संविधान की रक्षा?
कैसे होगी देश के संविधान की रक्षा?

By Dr SB Misra

देश की नई पीढ़ी को संविधान की मंशा और उसकी आत्मा की अनुभूति, तभी होगी जब संविधान निर्माण की चर्चा और बहस को देखा जाए। इसलिए आवश्यक है कि संविधान सभा की कार्यवाही को हमारे स्कूलों में दिखाया जाना चाहिए ताकि पता चले कि उस समय के विद्वानों ने किस आधार पर संविधान बनाया था।

देश की नई पीढ़ी को संविधान की मंशा और उसकी आत्मा की अनुभूति, तभी होगी जब संविधान निर्माण की चर्चा और बहस को देखा जाए। इसलिए आवश्यक है कि संविधान सभा की कार्यवाही को हमारे स्कूलों में दिखाया जाना चाहिए ताकि पता चले कि उस समय के विद्वानों ने किस आधार पर संविधान बनाया था।

कुछ खट्टी, कुछ मीठी यादों के साथ अलविदा 2022
कुछ खट्टी, कुछ मीठी यादों के साथ अलविदा 2022

By Nidhi Jamwal

इसके बारे में सोचते हुए, जबकि साल 2022 भी पहले के किसी साल की तरह ही तरह ही रहा है, यह भी कई मायनों में किसी दूसरे की तरह नहीं रहा है। गाँव कनेक्शन ने 02 दिसंबर को अपनी 10वीं वर्षगांठ मनाई और ग्रामीण भारत की आवाज बने रहने का वादा किया। साथ ही इस साल गाँव रेडियो की शुरुआत हुई, एक ऑडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म, जिसके जरिए ग्रामीण भारत के और करीब आने का मौका मिला।

इसके बारे में सोचते हुए, जबकि साल 2022 भी पहले के किसी साल की तरह ही तरह ही रहा है, यह भी कई मायनों में किसी दूसरे की तरह नहीं रहा है। गाँव कनेक्शन ने 02 दिसंबर को अपनी 10वीं वर्षगांठ मनाई और ग्रामीण भारत की आवाज बने रहने का वादा किया। साथ ही इस साल गाँव रेडियो की शुरुआत हुई, एक ऑडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म, जिसके जरिए ग्रामीण भारत के और करीब आने का मौका मिला।

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.