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गाँव कैफ में विशेषज्ञों ने बताया कैसे रोक सकते हैं जंगलों में आग की तबाही?
गाँव कैफ में विशेषज्ञों ने बताया कैसे रोक सकते हैं जंगलों में आग की तबाही?

By गाँव कनेक्शन

हर साल जंगल में लगने वाली आग की तबाही आती है, जिससे कई सारे पेड़-पौधे तो जल ही जाते हैं और पशु-पक्षियों को भी मुश्किलें बढ़ जाती हैं। साथ ही पर्यावरण के लिए भी यह खतरनाक होता है। गाँव कैफे के इस स्पेशल एपीसोड में जंगल की आग पर चर्चा की गई, जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से जुड़े विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी।

हर साल जंगल में लगने वाली आग की तबाही आती है, जिससे कई सारे पेड़-पौधे तो जल ही जाते हैं और पशु-पक्षियों को भी मुश्किलें बढ़ जाती हैं। साथ ही पर्यावरण के लिए भी यह खतरनाक होता है। गाँव कैफे के इस स्पेशल एपीसोड में जंगल की आग पर चर्चा की गई, जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से जुड़े विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी।

गाँव कैफे में विशेषज्ञों ने बताया क्या लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ने से कम होंगे बाल विवाह?
गाँव कैफे में विशेषज्ञों ने बताया क्या लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ने से कम होंगे बाल विवाह?

By गाँव कनेक्शन

भारत में आज भी बाल विवाह एक गंभीर मुद्दा है, हर साल न जाने कितनी बच्चियों के खेलने की उम्र में हाथ पीले कर दिए जाते हैं। कुछ महीनों पहले सरकार ने लड़कियों की उम्र को 18 वर्ष से 21 साल कर दिया है, ऐस में क्या अब बाल विवाह पर रोक लगेगी?

भारत में आज भी बाल विवाह एक गंभीर मुद्दा है, हर साल न जाने कितनी बच्चियों के खेलने की उम्र में हाथ पीले कर दिए जाते हैं। कुछ महीनों पहले सरकार ने लड़कियों की उम्र को 18 वर्ष से 21 साल कर दिया है, ऐस में क्या अब बाल विवाह पर रोक लगेगी?

गधी के दूध को क्यों कहा जाता हैै लिक्विड गोल्ड? 2000 रुपए प्रति लीटर है कीमत, आप भी कर सकते हैं कमाई
गधी के दूध को क्यों कहा जाता हैै लिक्विड गोल्ड? 2000 रुपए प्रति लीटर है कीमत, आप भी कर सकते हैं कमाई

By Divendra Singh

गधी का दूध डेढ़ हजार रुपए से लेकर तीन हजार रुपए में बिकता है, स्वास्थ्य और सौंदर्य प्रसाधन के क्षेत्र में गधी के दूध का अपना अलग ही महत्व है। लेकिन भारत में गधों की संख्या लगातार घटती ही जा रही है।

गधी का दूध डेढ़ हजार रुपए से लेकर तीन हजार रुपए में बिकता है, स्वास्थ्य और सौंदर्य प्रसाधन के क्षेत्र में गधी के दूध का अपना अलग ही महत्व है। लेकिन भारत में गधों की संख्या लगातार घटती ही जा रही है।

किस मोड़ पर पहुंचा है किसान आंदोलन?, गांव कैफे में देखिए Live चर्चा, खास मेहमानों के साथ
किस मोड़ पर पहुंचा है किसान आंदोलन?, गांव कैफे में देखिए Live चर्चा, खास मेहमानों के साथ

By गाँव कनेक्शन

लाखों लोगों के मन में सवाल है कि किसान आंदोलन कैसे और कब खत्म होगा? क्योंकि किसान कृषि कानून की वापसी पर अड़े हैं तो सरकार संसोधन का विकल्प दे रही है.. देखिए इसी मुद्दे पर खास चर्चा.

लाखों लोगों के मन में सवाल है कि किसान आंदोलन कैसे और कब खत्म होगा? क्योंकि किसान कृषि कानून की वापसी पर अड़े हैं तो सरकार संसोधन का विकल्प दे रही है.. देखिए इसी मुद्दे पर खास चर्चा.

'Trust building between forest officials and local communities vital to mitigate forest fires'
'Trust building between forest officials and local communities vital to mitigate forest fires'

By गाँव कनेक्शन

In the latest episode of Gaon Cafe, experts discussed the reasons which lead to forest fires and the measures needed to prevent them. One of the solutions that was agreed upon by all experts was the imminent need to build trust between the local communities and forest officials. Details here.

In the latest episode of Gaon Cafe, experts discussed the reasons which lead to forest fires and the measures needed to prevent them. One of the solutions that was agreed upon by all experts was the imminent need to build trust between the local communities and forest officials. Details here.

मध्य प्रदेश : यूरिया के लिए सुबह से शाम तक कतार में किसान, जरूरत 10 बोरी की और हाथ आ रही एक बोरी
मध्य प्रदेश : यूरिया के लिए सुबह से शाम तक कतार में किसान, जरूरत 10 बोरी की और हाथ आ रही एक बोरी

By Sachin Tulsa tripathi

खरीफ सीजन में किसानों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी यूरिया खाद है। पहले कालाबाज़ारी के चक्कर में किसानों को यूरिया दोगुने दाम में खरीदनी पड़ी। अब जब सरकारी दुकानों में पहुंची तो लंबी कतार लग चुकी हैं। सुबह से शाम तक खड़े होने के बावजूद किसानों को खेत के हिसाब से जितनी जरूरत है, उतनी भी खाद हाथ नहीं आ रही।

खरीफ सीजन में किसानों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी यूरिया खाद है। पहले कालाबाज़ारी के चक्कर में किसानों को यूरिया दोगुने दाम में खरीदनी पड़ी। अब जब सरकारी दुकानों में पहुंची तो लंबी कतार लग चुकी हैं। सुबह से शाम तक खड़े होने के बावजूद किसानों को खेत के हिसाब से जितनी जरूरत है, उतनी भी खाद हाथ नहीं आ रही।

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