By Dr SK Singh
मीलीबग आम की फसल को 50–100% तक नुकसान पहुँचा सकता है, लेकिन दिसंबर में किया गया प्रबंधन इस खतरे को पूरी तरह रोक सकता है। सही समय पर कार्रवाई, बेहतर फूल और अधिक उत्पादन का रास्ता बनाती है।
मीलीबग आम की फसल को 50–100% तक नुकसान पहुँचा सकता है, लेकिन दिसंबर में किया गया प्रबंधन इस खतरे को पूरी तरह रोक सकता है। सही समय पर कार्रवाई, बेहतर फूल और अधिक उत्पादन का रास्ता बनाती है।
By Seema Javed
सूरज अब सिर्फ दिन में नहीं चमकेगा, सस्ती बैटरियों ने सौर ऊर्जा को 24 घंटे का पावरहाउस बना दिया है, दुनिया की बिजली व्यवस्था बदल रही है, तेज़ी से, शांति से, और हमेशा के लिए।
सूरज अब सिर्फ दिन में नहीं चमकेगा, सस्ती बैटरियों ने सौर ऊर्जा को 24 घंटे का पावरहाउस बना दिया है, दुनिया की बिजली व्यवस्था बदल रही है, तेज़ी से, शांति से, और हमेशा के लिए।
By Gaon Connection
गोवा की पहाड़ियों में एक किसान पिछले 38 सालों से नंगे पाँव प्राकृतिक खेती कर रहा है- बिना जुताई, बिना केमिकल, बिना पेड़ काटे। संजय पाटिल ने 10 एकड़ जंगल को खेती में बदल दिया और साबित किया कि प्रकृति को न छेड़ें, तो वह दोगुना लौटाती है।
गोवा की पहाड़ियों में एक किसान पिछले 38 सालों से नंगे पाँव प्राकृतिक खेती कर रहा है- बिना जुताई, बिना केमिकल, बिना पेड़ काटे। संजय पाटिल ने 10 एकड़ जंगल को खेती में बदल दिया और साबित किया कि प्रकृति को न छेड़ें, तो वह दोगुना लौटाती है।
By Manvendra Singh
By Divendra Singh
मिट्टी सिर्फ धूल या रेत नहीं, बल्कि एक जीवित दुनिया है जहाँ अनगिनत सूक्ष्मजीव और केंचुए जीवन का चक्र चलाते हैं। लेकिन जब खेतों में पराली जलती है, तो यह जीवंत संसार धीरे-धीरे मरने लगता है। यह लेख बताता है कि मिट्टी कब “सजीव” होती है, कब “निर्जीव”, और किसान इसे कैसे पहचान सकते हैं और बचा सकते हैं।
मिट्टी सिर्फ धूल या रेत नहीं, बल्कि एक जीवित दुनिया है जहाँ अनगिनत सूक्ष्मजीव और केंचुए जीवन का चक्र चलाते हैं। लेकिन जब खेतों में पराली जलती है, तो यह जीवंत संसार धीरे-धीरे मरने लगता है। यह लेख बताता है कि मिट्टी कब “सजीव” होती है, कब “निर्जीव”, और किसान इसे कैसे पहचान सकते हैं और बचा सकते हैं।
By Gaon Connection
नई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट State of the Cryosphere 2025 ने चेतावनी दी है कि धरती की बर्फ़ पहले से कहीं तेज़ पिघल रही है। अगर मौजूदा उत्सर्जन दर जारी रही, तो आने वाले दशकों में अरबों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। लेकिन रिपोर्ट यह भी बताती है कि अगर दुनिया अभी निर्णायक कदम उठाए, तो उम्मीद अब भी बची है।
नई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट State of the Cryosphere 2025 ने चेतावनी दी है कि धरती की बर्फ़ पहले से कहीं तेज़ पिघल रही है। अगर मौजूदा उत्सर्जन दर जारी रही, तो आने वाले दशकों में अरबों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। लेकिन रिपोर्ट यह भी बताती है कि अगर दुनिया अभी निर्णायक कदम उठाए, तो उम्मीद अब भी बची है।
By Gaon Connection
COP30 में जारी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2026 ने एक बार फिर दिखाया है कि जलवायु संकट अब भविष्य की आशंका नहीं, बल्कि वर्तमान की सच्चाई है। रिपोर्ट के मुताबिक, 1995 से 2024 के बीच भारत बार-बार बाढ़, चक्रवात, लू और सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित हुआ है और अब दुनिया के दस सबसे असुरक्षित देशों में नौवें स्थान पर है।
COP30 में जारी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2026 ने एक बार फिर दिखाया है कि जलवायु संकट अब भविष्य की आशंका नहीं, बल्कि वर्तमान की सच्चाई है। रिपोर्ट के मुताबिक, 1995 से 2024 के बीच भारत बार-बार बाढ़, चक्रवात, लू और सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित हुआ है और अब दुनिया के दस सबसे असुरक्षित देशों में नौवें स्थान पर है।
By Gaon Connection
यूएनईपी की नई रिपोर्ट ने बताया कि अगर मौजूदा हालात नहीं बदले, तो सदी के अंत तक धरती का तापमान 2.5°C तक बढ़ सकता है। हालांकि कुछ सुधार दिखे हैं, लेकिन असल कार्रवाई अभी बहुत पीछे है। COP30 से पहले यह रिपोर्ट पूरी दुनिया को चेतावनी और उम्मीद दोनों देती है।
यूएनईपी की नई रिपोर्ट ने बताया कि अगर मौजूदा हालात नहीं बदले, तो सदी के अंत तक धरती का तापमान 2.5°C तक बढ़ सकता है। हालांकि कुछ सुधार दिखे हैं, लेकिन असल कार्रवाई अभी बहुत पीछे है। COP30 से पहले यह रिपोर्ट पूरी दुनिया को चेतावनी और उम्मीद दोनों देती है।
By Virendra Shukla
By Divendra Singh
शहरों में जब लोग एसी के रिमोट से टेंपरेचर ऊपर-नीचे कर रहे होते हैं, उसी दौरान मजदूर कहीं खेत या किसी घर की दीवारों की ईंट उठाते हुए पसीना बहा रहे होते हैं। बढ़ती गर्मी ने न केवल दिहाड़ी और खेतिहर मजदूरों की सेहत पर असर डाला है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित किया है।
शहरों में जब लोग एसी के रिमोट से टेंपरेचर ऊपर-नीचे कर रहे होते हैं, उसी दौरान मजदूर कहीं खेत या किसी घर की दीवारों की ईंट उठाते हुए पसीना बहा रहे होते हैं। बढ़ती गर्मी ने न केवल दिहाड़ी और खेतिहर मजदूरों की सेहत पर असर डाला है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित किया है।