नई तरक़ीब से एक टीचर ने कैसे बना दिया संघर्षरत बच्चों को पढ़ने में अव्वल

Pratyaksh Srivastava | Jun 09, 2023, 04:42 IST
सीखने में संघर्षरत यानी स्लो लर्नर बच्चों के लिए भी क्लासरूम उतना ही महत्वपूर्ण है जितना दूसरे बच्चों के लिए। यह मानना है उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका निर्मला सिंह का। अपने इन विचारों के साथ वह बच्चों को फिर से पाठ पढ़ाने और समझाने के लिए छुट्टी के बाद भी घंटों तक स्कूल में बनी रहती हैं। उन्हें अपने छात्रों को स्कूल से घर छोड़ने जाने और घर से स्कूल लाने में भी कोई गुरेज़ नहीं है।
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खैराला (गोरखपुर), उत्तर प्रदेश। भरी दोपहर में एक मंजिला स्कूल की इमारत धूप में तप रही थी। स्कूल चल रहा था और बच्चे पढ़ने में व्यस्त थे। सुल्तान भी अपनी बेंच के किनारे पर बैठा गणित के कुछ सवाल हल करने में लगा था। उसे कुछ समझ नहीं आया तो उसने अपनी टीचर निर्मला सिंह से पूछने के लिए हाथ उठाया। निर्मला उसकी गणित की टीचर हैं और यह उसका पसंदीदा सब्जेक्ट है।

10 साल के छात्र सुल्तान ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हासिल के सवाल करना मुझे अच्छा लगता है। इन्हें मैं आसानी से हल कर सकता हूं। जब भी मैं घर का सामान लेने दुकान पर जाता हूं तो जोड़-घटाना करके खुद ही हिसाब लगा लेता हूं।" उसने मन ही मन में जोड़ का एक सवाल हल करके दिखाया। उसे इसे करने में ज्यादा समय नहीं लगा था।

लेकिन पिछले साल सुल्तान की कहानी अलग थी। उस समय तीसरी कक्षा का ये छात्र अक्सर अपनी क्लास बंक कर देता था। दरअसल स्कूल में जो भी पढ़ाया जा रहा था, उसे कुछ भी समझ नहीं आता था। तब भी वह उत्तर प्रदेश, गोरखपुर में पिपरौली ब्लॉक के सरकारी प्राइमरी स्कूल खैरैला में ही पढ़ रहा था।

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शिक्षकों को उस तरीके से सवालों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिससे छात्र बेहतर ढंग से समझ सकें। अब तो टीचर ब्लैकबोर्ड के बजाय उनके पास जाकर नोटबुक में उन्हें लिखकर समझाते हैं।

लेकिन, एक दिन सुल्तान ने जब अपनी टीचर निर्मला सिंह को अपने कुछ सहपाठियों के साथ, अपने घर आया देखा तो वह हैरान रह गया। वह बिना कुछ कहे चुपचाप उनके साथ स्कूल चला गया।

शिक्षिका निर्मला सिंह की बच्चों को स्कूल लेकर आने का यह प्रयास पहली बार नहीं था और न ही आखिरी बार। 39 वर्षीय निर्मला ने अपने छात्रों को नियमित स्कूल आने के लिए काफी मेहनत की है और अभी भी कर रही हैं। वह कक्षा एक से पांच तक के छात्रों को गणित और हिंदी पढ़ाती हैं। और सभी बच्चों को एक लेवल पर लाने का प्रयास करती रही हैं।

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"हर बच्चा अलग होता है और उनके सीखने की गति अलग होती है। पढ़ाई में संघर्षरत बच्चों के लिए भी क्लास रूम उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना कि दूसरों के लिए। हम ऐसे छात्रों के साथ अतिरिक्त समय बिताते हैं। पढ़ाई के इस तरीके को रेमेडिएशन कहा जाता है।”

निपुण (नेशनल इनिशिएटिव फॉर प्रोफिशिएंसी इन रीडिंग विद अंडरस्टैंडिंग एंड न्यूमरेसी) द्वारा शुरू किया गया रेमेडिएशन एक सूक्ष्म अभ्यास (माइक्रोप्रैक्टिस) है, जिसे छात्रों के बीच सीखने के प्रभाव को बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की तरफ से 2021 में शुरू की गई निपुण योजना देश के सभी प्राइमरी स्कूलों में बुनियादी स्तर पर बच्चों की अक्षरों की पहचान करने, पढ़ने और नंबरों की समझने की क्षमता यानी फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्युमरेसी में सुधार करने पर केंद्रित है।

निर्मला ने पढ़ाई में संघर्षरत सुल्तान जैसे छात्रों के पढ़ाई के स्तर को सुधारने के लिए रेमेडिएशन तरीके को अपनाया। वह अब चौथी कक्षा के सबसे मेधावी बच्चों में से एक है। सुल्तान ने अपनी आंखों में चमक लाते हुए कहा, "पहले मैं बिल्कुल भी सवाल हल नहीं कर पाता था, लेकिन वे अब मेरे लिए आसान हैं।"

बच्चों के साथ समानुभूति ‘रेमेडिएशन’ की आधारशिला

‘रेमेडिएशन’ के बारे में बताते हुए निर्मला ने कहा, “सबसे पहले सभी छात्रों की स्क्रीनिंग की जाती हैं। उसके बाद हम उन बच्चों की पहचान करते हैं जिन्हें कक्षा में अतिरिक्त मदद की जरूरत होती है। हमने अपने स्कूल के कुल 112 में से लगभग 30 ऐसे छात्रों को चुना है।"

उन्होंने आगे बताया, “बच्चों को परखने की इस प्रक्रिया में समानुभूति सबसे महत्वपूर्ण है। हम यह सुनिश्चित करते हैं कि जिन छात्रों को ‘रेमेडिएशन क्लासेस’ के लिए छुट्टी के बाद भी स्कूल में रुकना पड़ता है, उनमें किसी तरह की हीन भावना पैदा न हो। क्योंकि यह भावना बच्चों की पढ़ाई में रुकावट बन सकती है।”

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एक बार स्क्रीनिंग हो जाने के बाद, अगला कदम बच्चों को सहज और आत्मविश्वासी बनाना है। निर्मला ने कहा, “मैं उनसे उनके पसंदीदा गाने, खाने, कार्टून चरित्रों और अन्य चीजों के बारे में पूछती हूं। मैं उनसे कविताएं सुनाने, गाना गाने के लिए कहती हूं या फिर उनकी पसंदीदा चीज़ों के बारे में बात करती हूं। इससे उन्हें मेरे साथ खुलने में मदद मिलती है और क्लास में भी वह सहज तौर पर बात कर पाते हैं।"

ब्लैकबोर्ड से लेकर नोटबुक तक

शिक्षकों को उस तरीके से सवालों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिससे छात्र बेहतर ढंग से समझ सकें। अब तो टीचर ब्लैकबोर्ड के बजाय उनके पास जाकर नोटबुक में उन्हें लिखकर समझाते हैं।

39 वर्षीया शिक्षिका ने कहा, "ब्लैकबोर्ड पर मैं उन छात्रों के लिए सवाल लिखती हूं जो खुद से पढ़कर जवाब दे सकते हैं। लेकिन पढ़ने में थोड़ा संघर्षरतसंघर्षरत बच्चों के डेस्क पर जाकर मैं उनकी कॉपी में उसी सवाल को फिर से लिखती हूं ताकि उन्हें आसानी से समझ जाए।"

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वह आगे कहती हैं, "ब्लैकबोर्ड की बजाय नोटबुक में लिखने में वह अधिक सहज महसूस करते हैं। एक-एक बच्चे के पास जाकर उनसे बात करने से उनके डर और झिझक को दूर करने में भी मदद मिलती है।" शिक्षिका ने कहा, "हम पाठ की मूलभूत अवधारणाओं को बार-बार दोहराते और समझाते हैं, जब तक कि वे इसे अच्छे से समझ नहीं जाते।"

बच्चों पर इसका असर

तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली शिवानी ने शर्माते हुए कहा, “पहले, मुझे क्लास में जो भी पढ़ाया जाता था, उसे समझने में काफी मुश्किल होती थी, खासकर गणित में।” उसने आत्मविश्वास के साथ आगे कहा, “निर्मला मैम फिर मेरे साथ बैठीं और उन्होंने मुझे जोड़ करना सिखाया। अब, मैं आसानी से दो अंकों को जोड़ सकती हूं।”

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अगर बच्चा स्कूल जाकर पढ़ाई में दिलचस्पी लेने लगे तो माता-पिता भी अपने बच्चे की शिक्षा के प्रति रुचि दिखाने लगते हैं।

गर्व से भरी शिक्षिका निर्मला अपनी छात्र शिवानी को देखकर मुस्कुराने लगी और बोलीं, "हमें शिवानी को उसके साथ के बाकी बच्चों के स्तर पर लाने में लगभग एक साल का समय लग गया। लेकिन अब वह कक्षा में दिए गए सवालों को आसानी से हल कर लेती है और सभी बातों को मानती है।"

अतिरिक्त समय देकर पढ़ाना

रेमेडिएशन माइक्रो प्रैक्टिस के हिस्से के रूप में शिक्षकों को स्कूल के बाद आधे घंटे का अतिरिक्त समय बच्चों को देना होता है। इस समय का इस्तेमाल उस दिन कक्षा में पढ़ाए गए पाठ को दोहराने के लिए किया जाता है। शिक्षकों ने पाया है कि छात्र भी अपनी शंकाओं को दूर करने के लिए बिना झिझके सवाल पूछते हैं। इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

अगर बच्चा स्कूल जाकर पढ़ाई में दिलचस्पी लेने लगे तो माता-पिता भी अपने बच्चे की शिक्षा के प्रति रुचि दिखाने लगते हैं।

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सुल्तान की मां रईसुल निकाह ने गाँव कनेक्शन को बताया कि वह अपने बेटे को होमवर्क में दिलचस्पी लेते देखकर काफी खुश हैं।

उन्होंने कहा, “इससे पहले, मैंने उसे कभी घर पर किताब हाथ में लेते हुए नहीं देखा था। लेकिन अब लगभग हर दिन वह एक कॉपी-किताब लेकर पढ़ता रहता है। पढ़ाई को लेकर उसके नजरिए में काफी बदलाव आया है। मैं समझ सकती हूं कि उनके (टीचर) प्रयास रंग ला रहे हैं।"

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खुद निर्मला के लिए शिक्षा की राह इतनी आसान नहीं थी, तमाम मुश्किलों को पार करके वो यहाँ तक पहुँची हैं तो उन्हें शिक्षा महत्व अच्छी तरह से पता है। स्कूल के प्रधानाध्यापक राधे श्याम मौर्य के अनुसार, "कोविड-19 महामारी की वजह से बच्चों की पढ़ाई में आए गहरे गैप को भरने के लिए रेमेडियल क्लासेस काफी कारगार रही हैं।"

उन्होंने बताया, “निजी स्कूलों के बच्चों की तरह इन बच्चों के पास स्मार्टफोन या ऑनलाइन सीखने के लिए इंटरनेट कनेक्शन नहीं हैं। लेकिन यह शिक्षकों द्वारा अपनाए गए रेमेडियल उपाय थे जिन्होंने छात्रों को वापस पटरी पर ला दिया। ”

निर्मला जानती है कि गरीब होना क्या होता है और शिक्षा का महत्व क्या है। निर्मला ने कहा, “मेरे माता-पिता अनपढ़ थे। मेरे पिता एक खदान में क्रेन ऑपरेटर के रूप में काम करते थे। हम छह भाई-बहन थे और मेरे पिता जो भी कमाते थे, वह कभी भी पूरा नहीं पड़ता था।”

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उन्होंने रुंधे हुए स्वर में कहा, “लेकिन मेरे पिता ने हमारे सभी भाई-बहनों की पढ़ाई को कभी रुकने नहीं दिया। भले ही इसके लिए नून-रोटी (नमक और रोटी) खाकर गुजारा करना पड़ा हो। वह हमारी पढ़ाई के लिए पैसे बचा ही लेते थे।

यादों के गलियारे से गुजरते हुए अचानक से निर्मला के कदम ठहर जाते हैं क्योंकि उनके क्लास में न होने से वहां हंगामा बरप गया था। क्लास मॉनिटर दौड़ता हुआ उनके पास आया और रिपोर्ट करने लगा कि कक्षा एक का छात्र सार्थक स्कूल से 'भागने' की योजना बना रहा है!

निर्मला ने शांत रहते हुए कहा, “आज उसका स्कूल में पहला दिन है, इसलिए वह घर जाना चाहता होगा। उसे अच्छे से क्लास में बैठने के लिए कहो, मैं कुछ देर में आती हूं।"

प्राइमरी स्कूल टीचर के लिए यह सिर्फ एक और घटना थी। वह जानती थी कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा।

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https://www.youtube.com/watch?v=tN6Hwr1yCYg
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