उन्नाव से लेकर नीदरलैंड्स तक सफर: मिलिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित शिक्षिका स्नेहिल पांडेय से

Divendra SinghDivendra Singh   14 April 2023 11:15 AM GMT

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सरकारी स्कूलों में आज बेहतर शिक्षा मिल रही है, लेकिन आज के कई साल पहले से उन्नाव के इस सरकारी स्कूल में बदलाव आ गया था, इसका श्रेय जाता है यहां की प्रधानाध्यापिका स्नेहिल पांडेय का, तभी उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। और हाल ही में नीदरलैंड्स की यात्रा से भी लौटी हैं।

उन्नाव जिले के कंपोजिट स्कूल, सोहरामऊ की प्रधानाध्यापिका स्नेहिल पांडेय अपनी इस यात्रा के बारे में गाँव कनेक्शन से बता रही हैं।

मेरी टीचिंग की शुरूआत रायबरेली जिले हुई, लेकिन असली शुरूआत तब हुई जब उन्नाव जिले में जब मेरा ट्रांसफर हुआ, बस यहीं से मेरी असली यात्रा शुरू हुई। मेरी माता जी भी बेसिक के स्कूल में टीचर थीं तो बचपन से उन्हें देखते आ रही थी कि कैसे वो बच्चों और स्कूल के लिए जी जान से लगी रहती हैं।

वो कई बार वो अपने साथ लइया चना लेकर जाती, कभी कपड़ों की कतरने तो कभी बच्चों के लिए अचार लेकर जाती, मुझे हमेशा से यही लगता कि वो ऐसे क्यों कर रहीं हैं। क्योंकि सब लोग बस अपना बैग उठाया और स्कूल चल दिए, लेकिन माँ बिल्कुल अलग थीं। उन्हें भी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

एक बार जब उनके साथ स्कूल जाने का मौका मिला तो मैंने देखा कि मेरी माँ ऐसी लड़कियों के पास जाती हैं जो स्कूल छोड़ चुकी हैं, उन्हें ढूंढने खेत-खलिहान में जा रही हैं, उनके घरों में जा रही हैं और किसी को सिलाई-कढ़ाई सिखा रहीं हैं तो किसी को अचार बनाना।

तब मैंने समझा कि शिक्षा विद्यालय के बाहर भी दी जाती है, बस मुझे लगा कि अब मुझे भी अब अपनी मम्मी की तरह बनना है और उनके पद चिन्हों पर चलना है और आज परिणाम आप के सामने है। इस स्कूल की पांच-छह सालों की यात्रा में बहुत बदलाव किए, इस स्कूल को इंग्लिश मीडियम बनाया।

सरकार द्वारा स्कूल को उत्कर्ष पुरस्कार मिला, जिसमें विद्यालय को एक लाख 20 हजार रुपए भी मिलते हैं। नवोदय, विद्याज्ञान जैसे विद्यालयों में भी हमारे स्कूल के बहुत से बच्चों का सेलेक्शन हुआ है।

हमारे यहां के बच्चे जनपद ही नहीं राज्य स्तर पर कबड्डी खेलने जाते हैं और जीतते भी हैं। इस यात्रा में ऐसी ही छोटी-छोटी चीजें जुड़ती गईं और मुझे राष्ट्रीय स्तर तक ले गईं। मैं बताना चाहूंगी एक प्रदेश से एक शिक्षक को या ज्यादा से ज्यादा दो शिक्षकों को ये पुरस्कार दिया जाता है और उत्तर प्रदेश सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है और यहां का प्रतिनिधित्व करना बहुत अच्छा लगता है।

तो यही जर्नी थी जो गाँव के बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश की किसी प्राइवेट स्कुल से तुलना न की जाए। लेकिन जब बात हो तो सरकारी स्कूल एक नंबर पर हो ऐसा मैंने अभिभावकों के बीच क्रिएट करने की कोशिश की।

शुरू में बहुत सारी चुनौतियां थीं जैसे कि गाँवों में अभिभावक बच्चों से घर का कराते हैं, उन्हें स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं, खासकर के लड़कियों को। बच्चियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देना शुरू किया, स्कूल में टीचर कम थे, इसलिए अपनी सैलरी से एक टीचर को रखा जिनके खुद के बच्चे के स्कूल में पढ़ते थे।

यही नहीं मैं बच्चों के साथ क्रिकेट भी खेलती हूं, भले ही मुझे खेलना नहीं आता। बच्चों के साथ गाने भी गा लेती हूं, इससे बच्चों का मन स्कूल में लगा रहता है। मुझे एक उद्यमिता का भी अवार्ड भी मिल चुका है, मैं बड़ी बच्चियों को पेंटिग्स, पॉटरी या फिर कठपुतली बनाना सीखाती हूं।

मैंने अपने स्कूल में सामुदायिक लाइब्रेरी भी शुरू की, जिसमें बच्चों के पढ़ने लायक ढेर सारी किताबें होती, बच्चे अपने घर भी किताबें लेकर जाते हैं।

जब मेरा चयन मिशन शक्ति के पोस्टर वूमेन के लिए हुआ था तब हमसे बोला गया था कि ये बात गोपनीय रखियेगा। उसमें और भी 5 महिलाएं चयनित हैं एक लोगो बना है तो उसमे पुलिस विभाग की है मेडिकल विभाग की है मैट्रो ड्राइवर है एक दो लोग और हैं तो जब फोटो सलेक्ट हुआ को कुछ दिन बाद अचानक दोस्तों के फोन आने लगे कि क्या ये पोस्टर में तुम हो, ये मेरे लिए गौरव की बात है।

मिशन शक्ति में आने के बाद दुनिया बदली मेरी 75 जनपद मे शायद ही कोई ऐसा जनपद बचा हो जहां मुझे बुलाया न गया हो। जहां जाती हूं वहां से बहुत कुछ सीखकर भी आती हूं।

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