सपनों को साकार कर रहे कर्नाटक के ग्रामीण पुस्तकालय

कर्नाटक के ग्रामीण पुस्तकालय कई बेहतरीन मौकों की शुरुआत लेकर आएँ हैं। राज्य भर में कम से कम 5,573 ग्राम पंचायत पुस्तकालय खुल गए हैं, 35 लाख से अधिक बच्चे इन केंद्रों में पंजीकृत हैं। इन मुफ़्त पुस्तकालयों में आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के युवा एक बेहतर ज़िंदगी का सपना देख सकते हैं।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   22 May 2023 7:47 AM GMT

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सपनों को साकार कर रहे कर्नाटक के ग्रामीण पुस्तकालय

कर्नाटक की 5,951 ग्राम पंचायतों में 5,573 ग्रामीण पुस्तकालय संचालित हैं। सभी फोटो: निधि जम्वाल

बेंगलुरु, कर्नाटक। कई तरह की किताबों और रंग बिरंगे कागज़ के पन्नों से घिरे अंजुनय पुस्तकालय में एक डेस्क पर बैठे थे, उनकी नज़र एक किताब के पन्नों पर थी।

कर्नाटक के रायचूर ज़िले में एक कुली के तीन बेटों में सबसे छोटे, अंजुनय, जिनकी उम्र 20 के आसपास है और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए घर से 400 किलोमीटर दूर बेंगलुरु आए हैं।

उनके दोस्तों ने उन्हें स्थानीय पंचायतों द्वारा स्थापित सार्वजनिक पुस्तकालयों के बारे में बताया, जहाँ सभी उम्र के छात्रों को न केवल पढ़ने के लिए किताबें मिलती थीं बल्कि मुफ्त भोजन भी मिलता था। ये पुस्तकालय ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग की एक अनूठी पहल के तहत पूरे दक्षिणी राज्य में फैल गए हैं।

कर्नाटक के रायचूर ज़िले के अंजुनय प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए घर से 400 किलोमीटर दूर बेंगलुरु आए हैं।

आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य की 5,951 ग्राम पंचायतों में 5,573 ग्रामीण पुस्तकालय संचालित हैं। कुल ग्रामीण पुस्तकालयों में से 4,608 डिजिटल पुस्तकालय हैं। 3.5 मिलियन से अधिक बच्चे इन पुस्तकालयों में आते हैं और उनके साथ पंजीकृत हैं। बेलागवी में सबसे अधिक ग्रामीण पुस्तकालय हैं 462, इसके बाद तुमकुर ज़िले में 327 (मानचित्र देखें) है।


कर्नाटक के ग्रामीण पुस्तकालय न केवल राज्य के भीतर बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गए हैं। इतना कि इस साल की शुरुआत में अपने बजट 2023-24 के भाषण में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बच्चों और किशोरों के लिए एक राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी स्थापित करने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा कि संबंधित राज्य सरकारों को "पंचायत और वार्ड स्तरों पर भौतिक पुस्तकालय स्थापित करने और राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय संसाधनों तक पहुँचने के लिए बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।"

अंजुनय ने अपना बैग पैक करने और उत्तर बेंगलुरु में येलहंका जाने से पहले दो बार नहीं सोचा, जहाँ अब वह अपने कुछ दोस्तों के साथ शेयरिंग रूम में रहते हैं। वो दिन में और कभी-कभी रातें भी, येलहंका तालुका में राजनकुंटे ग्राम पंचायत डिजिटल लाइब्रेरी और प्रतियोगी परीक्षा अध्ययन केंद्र में समय बिताते हैं।

यह डिजिटल लाइब्रेरी 14 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति के लिए पूरी तरह से निःशुल्क है।

“यह पुस्तकालय 24×7 खुला है और मुझे पढ़ने के लिए किताबें मिलती हैं और मैं कंप्यूटर और इंटरनेट का भी मुफ्त में उपयोग कर सकता हूँ । एक पंचायत कैंटीन है जहाँ से मेरे जैसे छात्रों को दिन में दो वक़्त का खाना मुफ़्त मिलता है। यह पुस्तकालय एक आशीर्वाद है क्योंकि मैं आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार से आता हूँ,”अंजुनय ने टूटी-फूटी अँग्रेजी और कन्नड़ में कहा।

अंजुनय के दो बड़े भाई खेतिहर मज़दूर हैं, जबकि मैकेनिकल इंजीनियरिंग स्नातक अंजुनय केंद्र सरकार की कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) परीक्षा को पास करने का सपना देखते हैं।


"यह ग्रामीण पुस्तकालय कई अवसरों का प्रवेश द्वार है। यह एसएससी परीक्षा में चयनित होने के मेरे सपने को साकार करने और मेरे परिवार को गौरवान्वित करने में मेरी मदद कर सकता है, "युवा ने कहा।

15,000 पुस्तकों के भंडार के अलावा, राजनकुंटे डिजिटल लाइब्रेरी, जो स्थानीय पंचायत भवन की सबसे ऊपरी मंजिल पर स्थित है में 15 इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटर, एक आईपैड और एलेक्सा भी है, जो एक वॉयस कमांड पर पाठ सुना सकते हैं। कुल 2,225 लोग पुस्तकालय में नामांकित हैं जिनमें से 1,700 छह से 18 वर्ष की आयु के बीच के बच्चे हैं।

"यह डिजिटल लाइब्रेरी 14 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति के लिए पूरी तरह से निःशुल्क है। जबकि दूसरे लोगों को 50 रुपये से 100 रुपये के बीच एक बार सदस्यता शुल्क का भुगतान करना पड़ता है,”। राजनकुंटे ग्राम पंचायत के पंचायत विकास अधिकारी नागराजू ने कहा। उन्होंने कहा, "50 से 100 रुपये आजीवन सदस्यता शुल्क है और सदस्य 15 दिनों के लिए तीन किताबें घर ले जा सकते हैं।"

राजनकुंटे डिजिटल लाइब्रेरी से लगभग 16 किलोमीटर दूर बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास डोड्डाजाला गाँव में एक और ग्रामीण पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय की एक यात्रा निश्चित रूप से किसी के भी रास्ता दिखाएगी, क्योंकि 20-30 युवा, जिज्ञासु पाठक हर दिन सीखने के केंद्र में आते हैं।

बारह साल के हितेश गौड़ा ने फर्राटेदार अँग्रेजी में कहा कि वह हफ्ते में पाँच दिन डोड्डाजाला पुस्तकालय आते हैं। छोटे छात्रों को कंप्यूटर पर ड्राइंग और पेंटिंग एप्लिकेशन का उपयोग करने का तरीका सिखाने के अलावा, उन्हें बोर्ड गेम और कैरम खेलने में मज़ा आता है जो स्थानीय ग्रामीण बच्चों के लिए मुफ़्त में उपलब्ध हैं।

बारह साल के हितेश गौड़ा को यहाँ आना बहुत अच्छा लगता है।

सुवर्णा पिछले 15 वर्षों से डोड्डाजला ग्रामीण पुस्तकालय की लाइब्रेरियन हैं और अब तक वह पुस्तकालय में आने वाले सभी छात्रों के परिवार के सदस्यों को जानती हैं। ग्रामीण पुस्तकालयों के माध्यम से सामुदायिक जुड़ाव इन केंद्रों के उद्देश्यों में से एक है।

“15,000 से अधिक पुस्तकों के अलावा, हमें हर दिन 10 अख़बार मिलते हैं। हमारे पास पुस्तकालय में एक अलग स्टडी और एक कंप्यूटर अनुभाग है। हर शनिवार को मैं कंप्यूटर क्लास आयोजित करती हूँ जहाँ मैं बच्चों के साथ ही उनकी माताओं को कंप्यूटर का इस्तेमाल करना सिखाती हूं।"

सुवर्णा पिछले 15 वर्षों से डोड्डाजला ग्रामीण पुस्तकालय की लाइब्रेरियन हैं।

“हमारे पुस्तकालय में एक साप्ताहिक ‘रीड अलाउड’ सेशन भी होता है जहाँ बच्चे कहानी की किताबें तेज़ आवाज़ में पढ़ते हैं। वे एक कहानी की किताब घर ले जा सकते हैं और इसे अपनी माँ के साथ पढ़ सकते हैं, ”लाइब्रेरियन ने कहा।

डोड्डाजाला पुस्तकालय सुबह दस बजे से खुल जाती है और शाम पाँच बजे तक चलती है। यह गैर-लाभकारी शिक्षण फाउंडेशन द्वारा समर्थित है। "हम 1,400 से अधिक पुस्तकालयों के साथ काम कर रहे हैं और नियमित रूप से किताबें और कंप्यूटर मॉनिटर दान करते हैं। हमने 100 फीसदी साक्षरता हासिल करने के लिए 35 गाँव का चयन किया है और डोड्डाजाला गाँव उनमें से एक है, "शिक्षण फाउंडेशन की स्नेत्रा ने कहा।

कोविड-19 महामारी के दौरान, इन ग्रामीण पुस्तकालयों ने शहरी और ग्रामीण बच्चों के बीच डिजिटल खाई को पाटने में मदद की। “हमने सभी COVID प्रोटोकॉल का पालन करते हुए महामारी के दौरान अपने पुस्तकालय को खुला रखा। कुछ बच्चे लाइब्रेरी में पढ़ने आते थे, जबकि हम ऑनलाइन क्लास भी आयोजित करते थे, ”सुवर्णा ने कहा, जो 12,000 रुपये मासिक वेतन पाती हैं।


डोड्डाजला पुस्तकालय में, मैंने छोटी लड़कियों को अपने बालों में नारंगी कनकंबरम फूल लगा रखे थे। बात को आगे बढ़ाने के लिए मैंने उनसे कहा कि मुझे अपने बालों में भी इसी तरह के फूल चाहिए। लड़कियों ने मुझे एक शर्मीली मुस्कान दी।

एक घंटे बाद, जैसे ही मैं पुस्तकालय से जाने के लिए तैयार हुई, बच्चे मेरे पास दो ताज़ा कनकंबरम वेनिया (बालों के लिए फूलों की माला) लेकर दौड़े आए। देखते ही देखते सुवर्णा ने उन्हें मेरे बालों में लगा दिया।

मैं कर्नाटक के ग्रामीण पुस्तकालयों की सुगँध मुंबई ले गई जहाँ मैं रहती हूँ।

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