टीचर्स डायरी: 'जब शिष्य और अपने बेटे के बीच करना था न्याय'

पवन कुमार मिश्र, शाहजहांपुर जिले के कांट ब्लॉक के कंपोजिट विद्यालय, कांट में अध्यापक हैं, टीचर्स डायरी में साल 2019 में अपने स्कूल में हुआ एक किस्सा साझा कर रहे हैं।

Pawan Kumar MishraPawan Kumar Mishra   6 March 2023 12:24 PM GMT

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टीचर्स डायरी: जब शिष्य और अपने बेटे के बीच करना था न्याय

भला मैं उस घटना को कैसे भूल सकता हूं। 2019 चल रहा था और मेरा सबसे प्रिय शिष्यों में से एक अनुराग सिंह अब कक्षा तीन में आ चुका था। होली आने वाली थी। विद्यालय जाने के लिए आज मेरा बेटा भी उत्सुक था।

वैसे आज के बाद स्कूल में होली की छुट्टियां हो जानी थीं। मैंने भी मना नहीं किया। रास्ते में एक दुकान से ढेर सारा रंग लिया और अपने बेटे के साथ स्कूल जा पहुंचा। स्कूल पहुंचने के बाद मैंने सभी बच्चों से कहा देखो कल से छुट्टियां हैं इसलिए आज जिसको भी रंग खेलना हो वह मुझसे लेकर आराम से रंग खेल सकता है। इसके अलावा रंग किसे लगाना है किसे नहीं और किस सावधानी के साथ रंग खेलना है इसकी भी जानकारी दी।

थोड़ी ही देर में बच्चों का रंग खेलने का कार्यक्रम शुरू हो गया। उत्साहित बच्चों ने मुझे भी खूब रंगा और बेटे को भी। बच्चे मुझसे हर बात ऐसे कहते थे जैसे वह एक मित्र से बातें कह रहे हों। लेकिन इसके बाद भी मेरे आदर्शों और सिद्धांतों की बदौलत अनुशासन कभी भंग नहीं हुआ। मेरा बेटा रंग खेलते खेलते अनुराग सिंह से लड़ने लगा। वह अनुराग से उम्र में छोटा होने की वजह से उसे पीट नहीं पा रहा था।

मेरे बेटे ने अचानक से अनुराग को कुछ इस तरीके से धक्का दिया कि अनुराग सम्हाल नहीं सका और गिर गया। कक्षा तीन में पढ़ने वाला अनुराग चोटिल हो गया। रंग खेल रहे बच्चों का कोहराम एकदम शांत हो गया।

मैं अपनी कुर्सी के पास खड़ा था और जैसे ही उस पर बैठा कि मेरे पास कुछ बच्चे दौड़कर आ गए। वह शिकायत करते हुए बोले गुरु जी लड़ाई हो गई। मैंने पूछा किससे? बच्चों ने जवाब दिया आपके लल्ला और अनुराग से। मैं सोच रहा था कि अनुराग बड़ा है इसलिए उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा होगा। मैं दोनों को समझा दूँगा। मैंने यह सब सोचने के बाद जैसे ही उन्हे बुलाने के लिए एक छात्र की ओर देखा वह मुझसे पहले ही बोल पड़ा। गुरु जी अनुराग के चोट लग गई।

मैं आवाक रह गया कैसे? छात्रों ने बताया कि आपका बेटा मान नहीं रहा था अनुराग कुछ नहीं बोला लेकिन उसने अनुराग को धक्का दे दिया। थोड़ी ही देर में दोनों बच्चे मेरे सामने थे। एक तरफ मेरा बेटा खड़ा था और दूसरी तरफ मेरा शिष्य अनुराग।

अनुराग ने लड़ाई नहीं की एक छात्र ने सफाई दी। अब बारी मेरे बेटे की थी। उसने अपनी सफाई में कोई बात नहीं कही। आज पहली बार मैंने एक छड़ी मंगवाई। आज पहली बार मारने के लिए मैं इसे प्रयोग करने वाला था।

मैंने सोच लिया था कि वैसे चाहे ना मारता लेकिन दोषी मेरा बेटा है, इसलिए मैं छात्रों के सामने इसे दंड जरुर दूंगा। सारे बच्चे खड़े थे। कोई कुछ नहीं बोल रहा था। मैंने बेटे के ऊपर प्रहार करने के लिए बिना कांपे छड़ी उठाई।

तभी अनुराग चिल्लाया गुरु जी रुको! मैंने छड़ी हवा में ऊपर ही रोक कर कहा हाँ जल्दी बोलो क्या है? अनुराग ने गर्दन को दाएं बाएं हिलाते हुए मेरी आंखों में आंखे डालते हुए कहा, "और आप तो हम छोटे बच्चों को कभी नहीं मारते हर बात पर प्यार से समझाते हो।" वह ऐसे कह रहा था जैसे मुझे वह सही राह दिखाते हुए मेरा कोई भूला सिद्धांत मुझे ही सिखा रहा हो।

मैं उस कक्षा तीन के छोटे से छात्र अनुराग की ओर देख रहा था। अनुराग ने आगे कहा "यह तो हम सबसे छोटा है इसे क्यों मारेंगे इसे भी तो समझा सकते हैं!" मेरे चारों तरफ बच्चों का घेरा था वह सब मुझे देख रहे थे। मेरे हाथ से छड़ी छूटकर जमीन पर गिर चुकी थी।

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