'सेनेटरी पैड के विज्ञापन से अलग होती है सच्चाई'

Manvendra Singh | Jun 13, 2024, 07:30 IST
अमित सक्सेना को लखनऊ का पैड मैन भी कहा जाता है। वो गरीब बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम करने के साथ -साथ बुजुर्गों के लिए आश्रम भी चलाते हैं; लेकिन लड़कियों और महिलाओं के लिए उनकी सेवा एक मिसाल है। उन्हीं से जानते हैं उनके संघर्ष और सफलता की ये कहानी।
#Padman
आपको कब एहसास हुआ कि आपको समाज का सेवक बनना है?

"यह मई 2015 की बात है, जब मेरे पिताजी का ऑपरेशन होना था, वे अस्पताल में भर्ती थे; हमें उनके साथ रहना होता था। आमतौर पर, जब आप ऐसी जगह पर होते हैं, तो आप बाहर नहीं जा सकते; खाली समय बिताने के लिए हमें कुछ न कुछ करना होता था, तो हम लैपटॉप पर कुछ सर्च करते रहते थे। उसी समय, मुझे पता चला कि 28 मई को मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जा रहा है, यह 2014 से शुरू हुआ था और दूसरी बार मनाया जाना था; मुझे लगा कि यह एक नया टॉपिक है और इस पर काम किया जा सकता है। मैंने इस पर और जानकारी पढ़ी और उसमें दामिनी यादव जी की एक कविता 'माहवारी' मिली।

हमने सोचा कि इसे 28 मई से पहले शुरू किया जा सकता है; वहीं से दिमाग में क्लिक हुआ कि शुरुआत कैसे करनी है। जैसा कि आप जानते हैं, लोग ऐसे विषयों पर बात करने से हिचकते हैं या शर्माते हैं। इसलिए मैंने सोचा कि पहले पत्नी से बात करते हैं; तीन दिन तो इसी सोच में निकल गए कि कब उनसे बात करें। वह सुबह नाश्ता लाती थीं और रात का खाना भी लाती थीं।

हर बार सोचता था आज बात करेंगे, लेकिन हर बार वह रह जाता था। तीन दिन बाद, जब मैंने उनसे बात की, तो उन्होंने कहा, 'यह तो बहुत अच्छा आइडिया है और हम इस पर काम कर सकते हैं, यह बढ़िया रहेगा।' तब हमने इस प्रोजेक्ट को एक नाम देने का निर्णय लिया; हमने इसे 'हिम्मत अभियान' नाम दिया।"

इस अभियान का नाम हिम्मत ही क्यों रखा?

'हिम्मत अभियान' इसलिए क्योंकि हम चाहते थे कि लड़कियों के अंदर इस मुद्दे पर हिम्मत आए। पीरियड्स उनके लिए शर्म की बात नहीं है, बल्कि गर्व की बात है; यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। हमें उन्हें समझाना था कि इसमें कोई शर्म की बात नहीं है और अगर इससे संबंधित कोई समस्या है, तो वह समय के साथ बढ़ती जाएगी, इसलिए उनके अंदर हिम्मत होना बहुत ज़रूरी है।

371432-padman
371432-padman

हमने इसका नाम 'हिम्मत अभियान' रखा और इसे 28 मई से शुरू करने का निर्णय लिया। हमें लगा कि यह आसान होगा। मैंने पत्नी से कहा कि अपनी कामवाली से बात करना कि हम उनके क्षेत्र में आना चाहते हैं और पैड्स बाँटना चाहते हैं। उन्होंने अगले दिन बताया कि कामवाली ने मना कर दिया है और कहा कि कपड़े बांटना हो तो आ सकते हैं, लेकिन इस चीज के लिए नहीं। इससे साफ़ हुआ कि यह आसान नहीं होगा।"

आगे का ये सफर फिर कैसे आपने पूरा किया?

यह फरवरी 22 के आसपास की बात होगी, जब सुनीता बंसल जी, जो उस समय राज्य महिला आयोग की सदस्य थीं, आईं; जब उनसे इस मुद्दे पर चर्चा की, तो उन्होंने कहा, 'मैं यह आसानी से करवा सकती हूँ।' उन्होंने बताया कि हमारे इलाके के पास मानस एंक्लेव कॉलोनी है, जहाँ उन्होंने काफी काम किया है। वह बोलीं कि मैं वहाँ आपके लिए यह काम करवा दूँगी। 28 तारीख को हम वहाँ पहुँचे और पहला वितरण किया। हमें लगा था कि यह आसान होगा, लेकिन वास्तव में यह मुश्किल था।

जब हमने देखा कि लड़कियों को बुलाने में काफी समय लग गया, तब हमें समझ आया कि यह आसान नहीं है। हमने लड़कियों को बुलाया और उन्हें बताया कि हम इस टॉपिक पर बात करेंगे। कई लड़कियाँ आईं और फिर कहने लगीं कि वे और लड़कियों को लेकर आती हैं, लेकिन वे वापस नहीं आईं। 20 लड़कियों को इकट्ठा करने में हमें दो से ढाई घंटे लगे। हमने उन्हें समझाया कि यह शर्माने की बात नहीं है और लड़के भी इस पर बात करते हैं।

371433-saxena-amit
371433-saxena-amit

हमने लड़कियों को पैड्स बाँटे और उन्हें इसके बारे में समझाया। वहाँ से हमारी यात्रा शुरू हुई। लड़कियों से हमने कहा था कि एक महीने बाद फिर आएंगे। हमने कहा, 'अभी तो हमने यह शुरू किया है, अभी देखेंगे कि कैसा रहा है।' हमने इसे सोशल मीडिया पर अपलोड किया और महिलाओं से बहुत अच्छा रिएक्शन मिला। महिलाओं ने सबसे ज्यादा सराहा कि एक पुरुष ने इस मुद्दे पर सोचा। वहाँ से हमारी यात्रा शुरू हुई। धीरे-धीरे, लोग हमारे अभियान से जुड़ने लगे।

हमने एक छोटी राशि में लड़कियों को साल भर के पैड्स देने की योजना बनाई और कई लोग इससे जुड़े; मुझे लगता है कि यह यात्रा उन लड़कियों से शुरू हुई जो ऐसे समाज से आती हैं, जहाँ यह मुद्दा उतना पढ़ा-लिखा नहीं माना जाता था, लेकिन पढ़े-लिखे लोगों में भी यह समस्या है कि जब वे दुकान पर पैड्स लेने जाते हैं, तो दुकानदार काली पन्नी में दे देता है।"

आपने इस स्थिति को कैसे संभाला? आपको खुद अपनी पत्नी से बात करने में तीन दिन लग गए?

शुरू में दिक्कतें आईं, लेकिन लड़कियों से डिस्कशन हुआ और उन्होंने अपनी बातें बताईं; वहीं से हमने सीखा और आगे के लिए तैयारी की। लड़कियों ने जो जानकारी दी, उससे हमारा पूरा एक लेक्चर तैयार हो गया। अब जब हमें बुलाया जाता है, तो लोग इंतजार करते हैं कि सर को जरूर बुलाइए, हमने देखा कि फीमेल्स को भी शुरू में दिक्कतें आती थीं, लेकिन हमने हर चीज को इतनी बारीकी से बताया कि लड़कियाँ कंफर्टेबल फील करती हैं। उन्हें लगता है कि पहली बार उन्हें इतनी अच्छी तरीके से जानकारी मिली है।"

सेनेटरी पैड के प्रचार वास्तविकता से कितने अलग हैं?

जितना एक्टिव विज्ञापनों में दिखाते हैं, उतनी एक्टिव रियलिटी में नहीं होती हैं; अब आप देखिए, कोई भी विज्ञापन ले लीजिए, जैसे कोल्ड ड्रिंक के विज्ञापन दिखाए जाते हैं कि एक चोटी से दूसरी चोटी पर बाइक से कूद रहे है, तो वह एक एक्स्ट्रा सीन होता है। असल जिंदगी में ऐसा नहीं होता है, विज्ञापनों में हमेशा चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। लड़कियाँ भी कहती हैं कि ऐसे विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं, जो असल में नहीं होता; यह कठिन दिन होते हैं।

जैसे हम लोग वर्कशॉप लेते हैं, तो वहाँ पर हम लड़कियों से पूछते हैं कि सबसे कॉमन समस्या क्या है पीरियड्स में? तो 80 फीसदी लड़कियाँ बताती हैं पेट का दर्द; लेकिन वहाँ पर भी 10 या 20 प्रतिशत ऐसी लड़कियाँ होती हैं, जिनको पीरियड्स में दर्द होता ही नहीं है। उनकी लाइफ बिल्कुल नॉर्मल रहती है, तो हम ये नहीं कह सकते कि विज्ञापन गलत हैं, क्योंकि उसमें भी वो केवल ये दिखा रहे हैं कि हाँ, पीरियड्स में आप सब काम कर सकती हैं। हमारे नॉलेज में भी ऐसी लड़कियां हैं जिन्हें पता ही नहीं चलता है, वह बिल्कुल वैसे ही एक्टिव रहती हैं जैसे नॉर्मल डेज में रहती हैं।"

जब इंसान अपना जीवन किसी बड़े लक्ष्य को समर्पित करता है तो उसे बहुत से व्यक्तिगत बदलावों से गुज़रना होता है, अमित सक्सेना ने गाँव पॉडकास्ट में अपने व्यक्तिगत जीवन से लेकर अपने समाज सेवा के जुनून के बारे में खुलकर बात की है।

Tags:
  • Padman
  • Lucknow Padman

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.