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देसी नस्ल के पशुओं का संरक्षण करने वाले कर सकते हैं नस्ल संरक्षण पुरस्कार के लिए आवेदन
देसी नस्ल के पशुओं का संरक्षण करने वाले कर सकते हैं नस्ल संरक्षण पुरस्कार के लिए आवेदन

By Divendra Singh

देसी नस्ल की गाय-भैंस, मुर्गी-बतख, भेड़-बकरी जैसे पशुओं के संरक्षण के लिए आईसीएआर- राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संस्थान ब्यूरो ने नस्ल संरक्षण पुरस्कार-2021 के लिए आवेदन मांगे हैं।

देसी नस्ल की गाय-भैंस, मुर्गी-बतख, भेड़-बकरी जैसे पशुओं के संरक्षण के लिए आईसीएआर- राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संस्थान ब्यूरो ने नस्ल संरक्षण पुरस्कार-2021 के लिए आवेदन मांगे हैं।

आदिकाल से लेकर आधुनिक भारत तक के सफर में रहा है देसी गायों का योगदान, क्या उसे भुलाया जा सकता है?
आदिकाल से लेकर आधुनिक भारत तक के सफर में रहा है देसी गायों का योगदान, क्या उसे भुलाया जा सकता है?

By Dr. Satyendra Pal Singh

देश में जब क्रॉस ब्रीडिंग की शुरुआत हुई उस समय संकर गायों को बढ़ावा देने के लिए एक नारा दिया गया था कि 'देशी गाय से संकर गाय, अधिक दूध और अधिक आय' लेकिन आज एक बार फिर से 'संकर गाय से देसी गाय, अधिक टिकाऊ और अधिक आय' कहने का समय आ गया है।

देश में जब क्रॉस ब्रीडिंग की शुरुआत हुई उस समय संकर गायों को बढ़ावा देने के लिए एक नारा दिया गया था कि 'देशी गाय से संकर गाय, अधिक दूध और अधिक आय' लेकिन आज एक बार फिर से 'संकर गाय से देसी गाय, अधिक टिकाऊ और अधिक आय' कहने का समय आ गया है।

भारत की देसी नस्लों से तैयार हुई हैं विदेशी गाय
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By Diti Bajpai

विलुप्त हो रही छोटी नस्ल की गाय पुंगनुर का संरक्षण कर रही आंध्र प्रदेश की ये गौशाला
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By Divendra Singh

आंध्र प्रदेश की पुंगनुर नस्ल की गाय दुनिया की सबसे छोटी गायों की नस्ल में शामिल है। गाय की इस नस्ल की कीमत लाखों में होती है।

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भारत की ज्यादा दूध देने वाली देसी गाय की नस्लों के बारे में जानते हैं ?
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By Divendra Singh

अगले पांच सालों में विदेशी नस्ल से बेहतर होंगी देसी गायें: गिरिराज सिंह
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By गाँव कनेक्शन

भारतीय जलवायु के अनुकूल नहीं क्रॉस ब्रीड गाय, एक बार फिर देसी किस्मों की ओर लौटना होगा
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By Dr. Satyendra Pal Singh

देश में क्रॉसब्रीड गायों के पालन के लम्बे अनुभव के बाद इन गायों में कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। संकर गाएं रोगों और बीमारियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। क्रॉस ब्रीड गायों में थनैला बीमारी की गंभीर समस्या देखी जा रही है। इन नस्लों में बांझपन, बार-बार गर्मी पर आना और गर्भ नहीं ठहरने का प्रतिशत बहुत अधिक है। इसके चलते इन गायों के इलाज पर पशुपालकों को एक मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। इनका पालन करना महंगा सौदा तो साबित हो ही रहा है साथ ही इन रोगों के इलाज के बाद भी सफलता की कोई गांरटी नहीं हैं।

देश में क्रॉसब्रीड गायों के पालन के लम्बे अनुभव के बाद इन गायों में कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। संकर गाएं रोगों और बीमारियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। क्रॉस ब्रीड गायों में थनैला बीमारी की गंभीर समस्या देखी जा रही है। इन नस्लों में बांझपन, बार-बार गर्मी पर आना और गर्भ नहीं ठहरने का प्रतिशत बहुत अधिक है। इसके चलते इन गायों के इलाज पर पशुपालकों को एक मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। इनका पालन करना महंगा सौदा तो साबित हो ही रहा है साथ ही इन रोगों के इलाज के बाद भी सफलता की कोई गांरटी नहीं हैं।

इस युवा ने पहले देसी गाय के बारे में लोगों को किया जागरूक, अब 80 रुपए लीटर बेच रहा दूध
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By Diti Bajpai

The indigenous Kenkatha breed of cattle is fast disappearing. Here’s why we should be worried.
The indigenous Kenkatha breed of cattle is fast disappearing. Here’s why we should be worried.

By Gaon Connection

Once the backbone of agriculture in the Bundelkhand region, the Kenkatha breed of cattle that was once prolific in the villages on the banks of the river Ken is dwindling at an alarming rate. The indigenous breed can survive harsh weather conditions which makes it climate-resilient.

Once the backbone of agriculture in the Bundelkhand region, the Kenkatha breed of cattle that was once prolific in the villages on the banks of the river Ken is dwindling at an alarming rate. The indigenous breed can survive harsh weather conditions which makes it climate-resilient.

The indigenous Kenkatha breed of cattle is fast disappearing. Here’s why we should be worried.
The indigenous Kenkatha breed of cattle is fast disappearing. Here’s why we should be worried.

By Arun Singh

Once the backbone of agriculture in the Bundelkhand region, the Kenkatha breed of cattle that was once prolific in the villages on the banks of the river Ken is dwindling at an alarming rate. The indigenous breed can survive harsh weather conditions which makes it climate-resilient.

Once the backbone of agriculture in the Bundelkhand region, the Kenkatha breed of cattle that was once prolific in the villages on the banks of the river Ken is dwindling at an alarming rate. The indigenous breed can survive harsh weather conditions which makes it climate-resilient.

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