पुलिस का पीएनओ नंबर जिसकी वजह से अयोध्या के 135 दरोगा हो गए 2 साल जूनियर, अधिकारियों से गुहार

पुलिसकर्मियों की जब नियुक्ति होती है तो उन्हें 9 अंक एक नंबर दिया जाता है, जिसे PNO नंबर कहा जाता है। इसी नंबर के आधार पर नौकरी के कार्यकाल में उनकी पहचान होती है। प्रमोशन और इंक्रीमेंट होते हैं। लेकिन अयोध्या के 135 दरोगा अपनी नियुक्ति से 2 साल जूनियर चल रहे हैं। जिसके बाद वो अधिकारियों से गुहार लगा रहे हैं। जानिए क्या है पूरा मामला

Rajan ChaudharyRajan Chaudhary   12 Jun 2021 10:05 AM GMT

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पुलिस का पीएनओ नंबर जिसकी वजह से अयोध्या के 135 दरोगा हो गए 2 साल जूनियर, अधिकारियों से गुहार

नियुक्ति के समय पुलिसकर्मी को मिलता है 9 अंकों का PNO नंबर।     फोटो प्रतीकात्मक

अयोध्या (उत्तर प्रदेश)। यूपी के 135 दरोगा इन दिनों काफी परेशान हैं, जिसकी वजह है कि उनके साथ ही दूसरे जिलों में नौकरी पाए दूसरे दरोगा उनसे सीनियर हो गए हैं। ये सब हुआ है एक नंबर की वजह से, जिसे पीएनओ नंबर कहा जाता है। दरोगाओं का आरोप है कि दो वर्ष पीछे का नंबर दिया गया है, जो उन्हें करियर में हमेशा 2 साल पीछे ही रखेगा।

वर्ष 2011 में दारोगा भर्ती की वैकैंसी निकली थी। जिसमें अहर्ता रखने वाले लगभग 3500 अभ्यर्थियों की वर्ष 2015 में ट्रेनिंग शुरू हुई। मेरठ, उन्नाव, सीतापुर जिलों में एक वर्ष की ट्रेनिंग पूरा होने के बाद वर्ष 2017 में उन्हें उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में तैनाती मिली, लेकिन इस तैनाती में इसी बैच के जितने भी दरोगाओं की तैनाती हुई, उन्हें पीएनओ नंबर वर्ष 2017 का जारी किया गया, मतलब अयोध्या जिले में वर्ष 2015 बैच के जो भी दरोगाओं को तैनाती मिली उन्हें दो वर्ष आगे का पीएनओ जारी किया गया।

नाम न छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को अयोध्या जिले में तैनात वर्ष 2015 बैच के पीड़ित एक एसआई (उप निरीक्षक) ने बताया कि, "हम लोगों को नियमतः वर्ष 2015 का पीएनओ मिलना था, लेकिन 2017 का मिल गया है। यूपी के 63 जिलों में इसी बैच के लोगों की तैनाती भिन्न-भिन्न जिलों में हुई, जहां उन्हें 2015 का ही पीएनओ जारी हुआ। इसके अलावा पड़ोस के जिलों में हमारे ही बैच के दरोगाओं को भी वर्ष 2015 का पीएनओ जारी हुआ है। ऐसे में हमारे साथ ट्रेनिंग करने वाले दरोगा हमसे सीनियर हो गए। अब हमारे ही बैच के दूसरे जिले में तैनात दरोगा इंस्पेक्टर हो जाएंगे, हमारा इंक्रीमेंट व सैलरी भी जूनियर होने के कारण प्रभावित रहेगी।" वे आगे आरोप लगाते हैं, "यह गड़बड़ी जिले में पीएनओ जारी करने वाले बाबू की मनमानी के कारण हुई जो अपनी जिद पर अड़े हैं और इस मामले में अधिकारियों को गुमराह कर रहे हैं।" पुलिस की नौकरी में विभागीय मुद्दों पर मीडिया में बात करना ड्य़ूटी रुल के खिलाफ माना जाता है। इसलिए पुलिस कर्मियों के नाम नहीं लिखे गए हैं।

"हम लोगों को नियमतः वर्ष 2015 का पीएनओ मिलना था, लेकिन 2017 का मिल गया है। पड़ोस के जिलों में हमारे ही बैच के दरोगाओं को भी वर्ष 2015 का पीएनओ जारी हुआ है। ऐसे में हमारे साथ ट्रेनिंग करने वाले दरोगा हमसे सीनियर हो गए। अब हमारे ही बैच के दूसरे जिले में तैनात दरोगा इंस्पेक्टर हो जाएंगे।" एक पीड़ित एसआई, अयोध्या

2015 बैच के जिले में तैनात दरोगाओं ने यह आरोप लगाया है कि ट्रेनिंग के दौरान यह स्पष्ट किया गया था कि भर्ती प्रक्रिया में जिस वर्ष से ट्रेनिंग शुरू होती है उसी वर्ष से पीएनओ कोड जारी किए जाते हैं, इसी के आधार पर दरोगाओं में सीनियर व जूनियर का वर्गीकरण किया जाता है। जिस बैच के ट्रेनिंग वर्ष के आधार पर पीएनओ नंबर जितने पुराने वर्ष का जारी होगा वह उतने वर्ष का सीनियर माना जाएगा।

अयोध्या जिले के एक अन्य पीड़ित एसआई जो इस पीएनओ गड़बड़ी मामले में पीड़ित दरोगाओं की अगुवाई कर रहे हैं, एक एसआई ने बताया, "अभी हम सभी प्रयास कर रहे हैं कि विभागीय अधिकारियों से बात करके किसी तरह हम लोगों को न्याय मिल जाए। इस मामले को लेकर छः महीने पहले ही कई बार अधिकारियों के पास जा चुके हैं, लेकिन जिले का विभागीय बाबू उन्हें गुमराह कर देता है और हमारा मामला ठंढे बस्ते में चला जाता है।"

उनके मुताबिक पीड़ित एसआई कोविड संकट के चलते पिछले महीनों में अपनी समस्या उच्चाधिकारियों के समक्ष नहीं रख पाये लेकिन अब वो फिर विभागीय अधिकारियों के पास क्रमवार जाएंगे। अयोध्या में इस मुद्दे की अगुवाई करने वाले एसआई कहते हैं, "अगर फिर भी न्याय नही मिला तो अपने इस मामले को लेकर हम सभी कोर्ट जाने को मजबूर हो जाएंगे। इस मामले से संबन्धित सभी दस्तावेज़ भी तैयार हो चुके हैं।"

इस मामले में बात करने पर अयोध्या के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शैलेश पाण्डेय कहते हैं, "उक्त पीएनओ जारी करने का मामला अभी तक हमारे सामने नहीं आया है। पूरा मामला सामने आते ही उसकी जांच की जाएगी और देखा जाएगा कि गड़बड़ी कहां हुई है। यह सिर्फ मेरे यहां ही नहीं हुआ है अन्य जिलों में भी ऐसा हुआ होगा।"

यूपी के अन्य जिलों में भी पीएनओ नंबर में गड़बड़ी के मामले

पीएनओ नंबर में गड़बड़ी का मामला सिर्फ अयोध्या में ही नहीं हुआ। यूपी में ही गोरखपुर के 39 दरोगाओं की पीएनओ नंबर में गड़बड़ी के मामले ने तूल पकड़ा था। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों ने अपने ही विभागीय बाबू पर घूस न देने पर 39 दरोगाओं को एक साल जूनियर बनाने का आरोप लगाया था। गोरखपुर में फिलहाल पुलिसकर्मियों द्वारा मामले में आवाज उठाने पर वहां के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा जांच कराई जा रही है। इसके अलावा अयोध्या जिले के आस-पास जिलों जैसे- सुल्तानपुर, अंबेडकर नगर, इलाहाबाद, बाराबंकी, मऊ सहित अन्य जिलों में भी वरिष्ठता क्रम को लेकर गड़बड़ी के मामले सामने आए हैं। इसी तरह के मुद्दे में आगरा में सीनियर अधिकारियों की दखल के बाद पीएनओ नंबर में सुधार किया गया था।

इस मामले को ज्यादा समझने के लिए हमने एडीजी जोन लखनऊ सत्य नाराय़ण साबत से बात की। उन्होंने बताया, "पीएनओ नंबर के मामले के लेकर जो कन्फ्यूजन है वो यह है कि, वर्ष 2011 में निकली दरोगा भर्ती में परीक्षा से लेकर ट्रेनिंग और नियुक्ति तक कई बार मामला कोर्ट में गया, जिसके कारण इस वैकेंसी की लगभग सभी अभ्यर्थियों की ट्रेनिंग व नियुक्तियां एक साथ न होकर कई पार्ट में हुई थी। जिससे उस भर्ती में वर्ष 2015 में ट्रेनिंग बैच वाले दरोगाओं की नियुक्तियां भी अलग-अलग समय के अंतराल पर बारी-बारी से कई भाग में हुई, और एक ही बैच का होने के बावजूद भी सभी दरोगाओं के पीएनओ एक ही वर्ष के जारी नहीं हो पाए।"

वो आगे बताते हैं, "जिस भी जिले में जिस वर्ष दरोगा तैनाती पाए उन्हें उसी वर्ष से पीएनओ जारी हुआ। इसी क्रम में कुछ दरोगाओं को वर्ष 2015, वर्ष 2017 और वर्ष 2018 का पीएनओ नंबर जारी हुआ। उक्त भर्ती वर्ष में कुछ लोगों को लेकर मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।"

एडीजी जोन लखनऊ आगे बताते हैं, "अगर फिर भी किसी जनपद में तैनात दरोगाओं को अभी भी लगता है कि उनके पीएनओ में गड़बड़ी हुई है तो वो मामले से अवगत कराएं उसकी जांच की जाएगी, और गड़बड़ी पाए जाने पर मामले में सुधार किया जाएगा।"

वर्ष 2011 में निकली दरोगा भर्ती में परीक्षा से लेकर ट्रेनिंग और नियुक्ति तक कई बार मामला कोर्ट में गया, जिसके कारण इस वैकेंसी की लगभग सभी अभ्यर्थियों की ट्रेनिंग व नियुक्तियां एक साथ न होकर कई पार्ट में हुई थी। नियुक्तियां अलग-अलग समय पर होने के चलते एक ही बैच का होने के बावजूद भी सभी दरोगाओं के पीएनओ एक ही वर्ष के जारी नहीं हो पाए। अगर कहीं गड़बड़ी हुई है तो उसे सुधार किया जाएगा- सत्य नाराय़ण साबत, एडीजी जोन, लखनऊ

दूसरे जिले के दारोगा ने क्या कहा

पीएनओ को लेकर विवाद के बीच गांव कनेक्शन ने इसी बैच के बस्ती में तैनात एक दरोगा से बात की। उन्होंने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा, "हम भी उसी 2015 बैच के हैं। लेकिन हमारा पीएनओ नंबर वर्ष 2015 का जारी हुआ है। जबकि साथ ट्रेनिंग करने वाले हमारे बैच के अयोध्या जिले में तैनात दरोगाओं का पीएनओ नंबर वर्ष 2017 का जारी कर दिया गया। उनके साथ नाइंसाफी हुई है। जिला प्रशासन को पीड़ित दरोगाओं के साथ न्याय करना चाहिए।"

क्या है पीएनओ नंबर

पुलिस भर्ती की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद आवंटित होने वाले जिले के संबन्धित जिलास्तरीय पुलिस विभाग के बाबू द्वारा एक नवीन तैनाती वाले पुलिसकर्मियों की रिपोर्ट लखनऊ मुख्यालय को भेजी जाती है। जहां से प्रति पुलिसकर्मी का एक यूनिक आईडी जनरेट करके संबन्धित जिले को भेजा जाता है। पीएनओ निर्धारण में भर्ती वर्ष की प्रमुख भूमिका होती है। भर्ती के समय पुलिसकर्मियों को अलॉट होने वाला पीएनओ नंबर नौ डिजिट का होता है। इनमे प्रथम दो अंक कर्मी के भर्ती वर्ष, उसके बाद का तीन अंक यूनिट का कोड, इसके बाद के तीन अंक उस वर्ष भर्ती हुए कर्मियों में उक्त कर्मी का क्रमांक व अंतिम एक अंक चेक डिजिट का होता है। नियमानुसार कर्मी के पीएनओ निर्धारण में भर्ती वर्ष की मुख्य भूमिका है, उन्हें भर्ती वर्ष से ही पीएनओ नंबर जारी होता है। ऐसे में उक्त वर्ष का पीएनओ नंबर कर्मी को न मिलना नियमविरुद्ध है।

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