'मेरा बेटा ना होता तो मैं मर ही जाता'

बीमार पिता को संभाल रहा है आठ साल का बेटा, केजीएमयू में चल रहा बेडसोर का इलाज

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   25 Feb 2019 5:34 AM GMT

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मेरा बेटा ना होता तो मैं मर ही जाता

लखनऊ। " पिछले जन्म में ना जाने कौन से बुरे कर्म किए थे, जो ये दिन देखना पड़ रहा है। मेरा बेटा ना होता तो मैं मर गया होता। तीन महीने से मेरा बेटा दिन-रात मेरी सेवा कर रहा है। भगवान ऐसी औलाद हर किसी को दे। " इतना कहते-कहते बबलू की आंखें भर आईं।

कानपुर के रहने वाले बबलू (35वर्ष)का इलाज केजीएमयू में चल रहा है। बबलू बेडसोर नामक बीमारी से पीड़ित है। बबलू के आठ साल के बेटे साहिल के अलावा दुनिया में कोई और नहीं है। पत्नी की पांच साल पहले मौत हो चुकी है। साहिल ही अपने पिता को कानपुर से लाकर केजीएमयू में इलाज करा रहा है। पर्चा बनवाने से लेकर जांच कराने और बबलू को खाना खिलाने की सारी जिम्मेदारी साहिल पर ही है। साहिल की मेहनत देख इलाज करने वाले डॉक्टर भी उसके पिता के जल्दी स्वस्थ होने की दुआएं दे रहे हैं।

साहिल ने बताया, " मेरे पापा बहुत बीमार हैं। पापा चल भी नहीं पाते हैं। इस दुनिया में इनके सिवा मेरा कोई और नहीं है। कानपुर में दवाई चल रही थी, लेकिन वहां से हम लोगों को यहां भेज दिया गया। यहां आने के बाद कहां जाना है, समझ में नहीं आ रहा था। फिर एक दिन डॉक्टर अंकल मिल गए। अब पापा की रोज मरहम-पट्टी होती है।"

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बबलू बेडसोल नामक बीमारी से पीड़ित है।

बबलू काफी गरीब है। जो पैसे थे वे उसके इलाज में खत्म हो गए। अब उसके पास इलाज के और पैसे नहीं हैं। केजीएमयू पहुंचने के बाद जांच और इलाज के पैसे ना होने के चलते वह रेन बसेरे में पड़ा रहता था। जब इस बात की जानकारी केजीएमयू प्रशासन को हुई तो खाने-पीने के साथ साथ उसकी दवाइयां भी भी मुफ्त में मुहैया कराई जा रही हैं।

डॉक्टर धीरेंद्र पटेल ने बताया, " कानपुर के रहने वाले बबलू को बेडसोर हो गया था। वह चलने फिरने में असमर्थ था। स्ट्रेचर पर ही लेटा रहता था। करीब दस दिन पहले बबलू को लेकर उसका बेटा यहां आया। बबलू की लगातार ड्रेसिंग हो रही है। बबलू स्वस्थ होने की कगार पर आ गया है। जल्द ही उसे यहां से छुटटी दे दी जाएगी।"

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पिता का इकलौता सहारा साहिल।

मां का बस नाम याद है

साहिल की मां का निधन पांच साल पहले हो चुका है। उसे टीबी हो गया था, इलाज के अभाव में उसने दम तोड़ दिया। मां के बारे में पू्छने पर साहिल ने बताया, " मुझे बस मां का नाम याद है। मेरी मां का नाम सोनी था। मेरे पापा कहते हैं वो मुझे बहुत प्यार करती थी। मुझे तो अपनी मम्मी की शक्ल भी याद नहीं है।"

रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया

कहते हैं जब परेशानी आती है तो अपने भी बेगाने हो जाते हैं। ऐसा ही बबलू के साथ हुआ। मुफलिसी के दिन काट रहे बबलू को बेडसोल जैसी बीमारी हो गई, जो धीरे-धीरे पूरे पीठ में हो गई। ऐसे में बबलू के आगे-पीछे कोई नहीं रहा। बबलू ने बताया, " मैं पत्थर का कारिगर हूं। किसी मजदूरी करके अपना और बेटे का पेट पालता हूं। जब मैं बीमार पड़ा तो रिश्तेदारों ने भी साथ छोड़ दिया। इस दुनिया में बस मेरा बेटा है। सब कुछ मेरे बेटे ने ही किया।"

साहिल की हिम्मत का हर कोई कर रहा है तारीफ।

एक पल के लिए भी नहीं जाता है दूर

केजीएमयू में काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया, " साहिल को देखकर उस पर नाज भी होता है और रहम भी आता है। इतनी छोटी उम्र में इस बच्चे को यह सब करना पड़ रहा है। करीब दस दिन से साहिल यहां आया है। चौबिस घंटे पिता के पास ही रहता है। एक पल के लिए भी अपने पिता को अकेला नहीं छोड़ता है।"

       

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