गूगल के एक क्लिक पर यूपी में रोके जा सकते हैं बढ़ते अपराध

Abhishek PandeyAbhishek Pandey   31 May 2017 9:25 PM GMT

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गूगल के एक क्लिक पर यूपी में रोके जा सकते हैं बढ़ते अपराधगूगल मैपिंग से अपराध पर लग सकता है नियंत्रण।

लखनऊ। प्रदेश में बढ़ते अपराध पर काबू पाने के लिए यूपी पुलिस के पास हाईटेक तरीका है, जिसे अपनाने के लिए ट्रेंड पुलिसकर्मियों की जरूरत है। जी हां, यूपी पुलिस का दावा है कि ऑनलाइन क्राइम मैपिंग सिस्टम के जरिए सूबे में होने वाले अपराधों पर लगाम लगाई जा सकती है, जहां गूगल पर एक ही क्लिक पर यूपी के जिलेवार थाना क्षेत्रों के हिसाब से अपराध के आंकड़ों और तरीकों को देखा जा सकता है। इस तकनीक के जरिए क्राइम डिटेक्शन रेट और टर्न अराउंड टाइम में कमाल की तेजी लाई जा सकती है। जिससे हर इलाके में होने वाले अपराध महज फाइलों में सिमट कर नहीं रहेंगे। इन्हें हम और आप गूगल पर एक क्लिक पर देख कर अपराधियों से सचेत रह सकते हैं।

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यूपी में जिले का क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो अपराध के मामलों की ऑनलाइन मैपिंग करता है। ताकि हर जिले के किसी भी इलाके में होने वाले अलग-अलग तरह की वारदातों की जानकारी बस उस इलाके के मैप को कंप्यूटर पर देख कर मालूम किया जा सके। जिससे अपराध पर तेजी से लगाम लगाई जा सके। वहीं इस क्राइम मैपिंग साफ्टवेयर को इजाद करने वाले मौजूदा समय में एडीजी टेक्निकल आशुतोष पाण्डेय, जो इस योजना को 2015 में शुरू करते वक्त आईजी जोन आगरा थे। उन्होंने बताया कि, यह एक सॉफ्टवेयर है, जिसे विकसित किया गया है। इसकी मदद से जिलेवार जितने भी अपराध हो रहे हैं, उनको हम मैप पर प्लॉट कर सकते हैं। यह पुलिस की एक आंतरिक व्यवस्था है, जिसमें यूपी पुलिस को अपराध पर लगाम लगाने में मदद मिलती है। किसी भी जिले का कप्तान गूगल पर एक क्लिक कर अपने क्षेत्र में घटने वाली बीती समस्त घटनाएं उस पर चंद मिनटों में देख सकता है।

क्राइम मैपिंग तकनीक से अपराध पर लगाम

एडीजी आशुतोष पांडेय ने बताया कि इस सिस्टम में गूगल मैपिंग से क्राइम पर लगाम लगाने की कोशिश करने की योजना थी, इसमें किसी भी क्राइम को थानेवार दर्ज किया जा सकता है। क्राइम दर्ज करते समय उसकी हर बारीकी का जिक्र होता है। जैसे- अपराध होने का घटनास्थल, अपराध को अंजाम देने का वक्त, अपराधी की उम्र और अपराधी का मौजूदा स्टेटस आदि।

आगरा जोन में हुई थी योजना की शुरूआत

अपराध को मैप करने की मुहिम की शुरुआत आगरा जोन में 2015 के अप्रैल माह में शुरू की गई थी। एडीजी आशुतोष पाण्डेय ने बताया कि योजना की सफलता को देखते हुए इसे कानुपर जोन में भी शुरू किया गया, जबकि डीजीपी के आदेशों के मुताबिक 2016 में एक अप्रैल से इसे यूपी के सभी जिलों में लागू किया गया था। जिसमें हर महीने के अंतिम दिन जिले के एसएसपी क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के साथ मीटिंग कर आंकड़ों का आंकलन करते और जिस थाना क्षेत्र में अपराध बढ़ रहा है, उसे क्राइम मैपिंग की मदद से अपराध पर लगाम लगाने का काम करता है।

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क्या है क्राइम मैपिंग

अपराधी कहां, कब और कैसे अपराध कर रहे हैं? किस शहर के किस थाना क्षेत्र में ज्यादा और किस वक्त पुलिस की अधिक गश्त की जरूरत है? इसे समझने के लिए क्राइम मैपिंग साफ्टवेयर बनाया गया था, जिसे गूगल मैप की मदद से खोजा जा सकता है। इसके तहत अब हर दर्ज होने वाले अपराध पर पुलिस को एफआईआर के साथ ही घटनास्थल का अक्षांश (लैटीट्यूड) और देशांतर (लांगीट्यू़ड) दर्ज किया जाता है। डीजीपी मुख्यालय में मौजूद ‘क्राइम मैपिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर’ के जरिए मैपिंग की जाती है। इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी जावीद अहमद ने ठंडे बस्ते में पड़े सॉफ्टवेयर ‘क्राइम मैपिंग सिस्टम’ का प्रयोग पूरे प्रदेश में करने का फैसला लिया था। जिसे 2016 एक अप्रैल से हर जिले में शुरू कर दिया गया था।

कैसे गूगल पर दर्ज होता है अपराध का आकड़ा

एडीजी आशुतोष पाण्डेय ने बताया कि, किसी भी जिले में एफआईआर दर्ज करने के बाद, इसका जिले में डीसीआरबी में एक सेल बना हुआ है, जहां कर्मचारी गूगल की मदद से दर्ज एफआईआर को उस पर मैपिंगकरते हैं। साथ ही थानों में पुराने रजिस्टरों को डिजिटलाइजेशन करने का काम भी आसान होता चल जाता है। वहीं क्राइम और अपराधियों पर काबू पाने के लिए इसमें वैज्ञानिक तकनीकी का इस्तेमाल किया जाता है।

गाँव कनेक्शन।

इसके लिए जोन के सभी नौ जिलों के सर्विलांस प्रभारियों एवं सर्विलांस सेल में तैनात सिपाहियों को क्राइममैपिंग की ट्रेनिंग दिलाई जाती है। आशुतोष पांडेय ने आगे बताया कि ट्रेनिंग में उन्हें गूगल मैप द्वारा ट्रैकिंग करने के बारे में प्रशिक्षित कराया जाता है। इस ट्रेनिंग को आगरा, लखनऊ और अलीगढ़ से एक्सपर्ट के माध्यम से करवाया जाता है। वहीं गूगल मैप पर ऐसे स्थानों को प्वाइंट आउट किया जाता है, जहां दंगे, लूट, चोरी की वारदातें ज्यादा होती हैं। वारदात होने के दो घंटे के भीतर इस मैप पर वारदात का ब्यौरा होता है। साथ ही आसपास के अपराधियों का भी ब्यौरा इस पर होता है।

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एक साल से ठंडे बस्ते में योजना

क्राइम मैपिंग सिस्टम का इस्तेमाल यूपी पुलिस अगर ढंग से करती तो, शायद प्रदेश में बढ़ते अपराधों पर लगाम लगाई सकती थी, लेकिन बीते एक साल से इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसका उदहारण प्रदेश में लगातार बढ़ता क्राइम ग्राफ है, जिसे रोक पाने में यूपी पुलिस असफल साबित होती दिख रही है। वहीं इस बाबत जब एडीजी क्राइम चंद्र प्रकाश से बात की गई तो, उन्होंने व्यवस्ता का हवाला देकर इस सवाल से कन्नी काट लिया।

थानों में नहीं हैं ट्रेंड सिपाही

क्राइम मैपिंग गूगल पर अपलोड करने के लिए पहले सिपाहियों को मेन्यूल डिवाइस दिया जाता था। साथ ही हर हाथ में मल्टीमीडिया मोबाइल सेट आ जाने से यह कार्य और अधिक आसान हो गया लेकिन क्राइम मैपिंग सिस्टम को पूरी तरह समझने के लिए जिलों के थानों पर ट्रेंड सिपाही नहीं हैं, जो इस कार्य को करे सके। इसके चलते यह कार्य योजना अधर में लटकी हुई है और यूपी में अपराधियों का आतंक बढ़ता जा रहा है।

        

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