कभी देश-विदेश में थी पहचान अब अभी आखिरी सांसें गिन रहा है जालौन का कागज उद्योग     

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कभी देश-विदेश में थी पहचान अब अभी आखिरी सांसें गिन रहा है जालौन का कागज उद्योग     कागज बनाती महिलाएं

देश में कागज का निर्माण मशीनों द्वारा किया जाता है, लेकिन जालौन के कालपी का विश्व प्रसिद्ध कागज हाथों से बनाया जाता है। इससे कुटीर उद्योगों को महत्व तो मिलता है साथ ही इससे काफी लोगों को रोजगार भी मिलता है। लेकिन इस कागज के प्रति सरकार की उदासीनता बाद अब सरकार द्वारा पेश किये गये बजट में कागज उद्योग के लिये कुछ न मिलने से यहां के कागज व्यापारियों में मायूसी है साथ ही कागज उद्योग बंद होने की कगार पर पहुंचने की स्थित में पहुंच गया है और मजबूरन व्यापारियों को अपनी फैक्ट्री बंद करने पर विवश होना पड़ रहा है।

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हाथ से बना कागज कालपी की पहचान

प्रदेश में हस्त निर्मित कागज फैक्ट्री की शुरुआत कालपी में हुयी थी और यहां पर छोटी-बड़ी कुल 150 फैक्ट्रियां हुआ करती थी। जो कागज का निर्माण कर पूरे देश में हस्तनिर्मित कागज की सप्लाई करती थी, लेकिन धीरे-धीरे यह फैक्ट्रियां बन्द होने की कगार पर है। जिसका मुख्य कारण सरकार की उदासीनता है। एक समय इन फैक्ट्रियों से बनने वाला कागज विदेशों में एक्सपोर्ट होता था। जो बांग्लादेश, भूटान, सिंगापुर से लेकर यूरोप के देशों में सप्लाई हुआ करता था। लेकिन

केंद्र व राज्य सरकार द्वारा इस कागज उद्योग पर ध्यान नहीं दिये जाने से इसका ग्राफ धीरे-धीरे गिरने लगा है और कागज बनाने वाली फैक्ट्रियां घाटे में जाने लगी। जिसके बाद से यहां पर फैक्ट्रियों की संख्या में कमी आ गयी और 150 फैक्ट्रियों से केवल 50 पर ही यह सीमित रह गयी। कालपी का हस्त निर्मित कागज पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह उद्योग बंद होने के कगार की पर पहुंच गया है, जिसका मुख्य कारण सरकार द्वारा जीएसटी और बिजली में सब्सिड़ी का न मिलना है। जब हस्तनिर्मित कागज फैक्ट्री लगी थी तो यूपी सरकार ने सभी फैक्ट्रियों को सरकार ने बिजली की 50 फीसदी सबसिडी दी थी जिससे उद्योग धंधे लगाने वाले इसको बढ़ा सके।

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बिजली में सब्सिडी न मिलने के कारण कालपी की फैक्ट्रियां बंद होने की कगार पर पहुंच गई है और कागज का उत्पादन भी धीरे धीरे कम होने लगा है। बाद में जीएसटी की मार भी व्यापारियों के लिये मुसीबत बन गया। जुलाई में मोदी सरकार ने जीएसटी लागू कर दी और हस्तनिर्मित कागज पर सरकार ने 12 प्रतिशत टैक्स रखा जिससे व्यापारी एक बार फिर परेशान हो गया। एक समय में हस्तनिर्मित कागज पर कोई भी टैक्स नहीं लगता था जिससे व्यापारी कुछ व्यापार कर लेते थे लेकिन अब उनकी आमदनी घटने के साथ उन्हे टैक्स की भी मार झेलनी पड़ रही है।

आम बजट से मिली निराशा

मोदी सरकार के इस आम बजट से कागज फैक्ट्री मालिकों को काफी उम्मीद थी सरकार उनके लिये कुछ उम्मीद लेकर आएगी लेकिन इस आमा बजट से व्यापारियों को निराशा हाथ लगी है। कागज व्यापारियों का कहना है कि उन्हे काफी उम्मीद थी लेकिन इस बजट ने काफी निराश किया है। व्यापारियों का कहना है उन्हे चाईना के कागज से मुक़ाबला करना पड़ता है उनका टैक्स और चाईना के पेपर पर लगने जीएसटी 12 प्रतिशत है और चाईना के पेपर से मुक़ाबला नहीं कर सकते क्योकि यह हाथ से बनाया जाता है जो चाईना के कागज जैसी फिनिश नहीं दे पाते है। यदि जीएसटी मे रिवेट मिले और सरकार उनसे कागज खरीदे तो उनकी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।

कागज फैक्ट्री मालिक प्रेम कुमार गुप्ता बताते हैं कि उन्हे इस बजट से काफी उम्मीद थी कि वित्त मंत्री उनकी उम्मीद पर खरे उतरेंगे साथ ही 12 प्रतिशत जीएसटी से राहत देंगे और कागज उदद्योग के लिये सबसिडी मिलेगी लेकिन इसके लिये कुछ नहीं हुआ।

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व्यापारियो का कहना है कि सरकार बिजली में 50 फीसदी सब्सिडी दे तो इसका लाभ भी व्यापारियों को मिलेगा। टैक्स की मार और बिजली के दामों में भारी बढ़ोत्तरी के कारण उन्हे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा जो कागज बनता है वह पहले सरकार खरीदती थी और उसका प्रयोग फाईल के रूप में सरकारी विभागों में प्रयोग होता था लेकिन अब सरकार इसकी ख़रीदारी नहीं करती जिससे उन पर यह मार पड़ती है। यदि सभी सरकारी विभाग में कागज प्रयोग होने लगे तो फायदा होगा।

मजदूर पलायन को मजबूर

कालपी में संचालित होने वाली हैंड मेड कागज फैक्ट्रियों में लोकल से लेकर बाहरी लोगों को रोजगार आसानी से मिल जाता था और यहां पर एक समय में काम के आधार पर एक कागज फैक्ट्री में 40 से 50 मजदूरों एक एक साथ रोजगार मिल जाता था। लेकिन जैसे-जैसे सरकार का इस ओर ध्यान कम हुआ वैसे ही यह फैक्ट्रियां बंद होने लगी और काम करने वाले मजदूरों की संख्या में कमी आने लगी।

फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि जीएसटी के कारण उनको रोजगार नहीं मिल पा रहा है। जिस फैक्ट्री में पहले 40 से 50 की की संख्या होती थी अब उस फैक्ट्री में बमुश्किल आधे मजदूरों को ही रोजगार मिल पा रहा है। जिस कारण लोग पलायन करने पर विवश होने लगे है। कालपी की कागज फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि अब उनको बहुत कम रोजगार मिलता है जो भी मिलता है उससे वह घर का खर्चा नहीं चला पाती है जिस कारण उन्हे मजबूरन पलायन करना पड़ रहा है। सरकार भले ही कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने की बात करती है लेकिन अब देखने वाली बात यह है कि क्या सरकार कागज बनाने जैसे कुटीर उदद्योग के लिये ठोस कदम उठायेगी या फिर उसे भी अधर में छोड़ देगी।

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