गरीब मरीजों के हक का इलाज मार रही सरकारी डाॅक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस

Rishi MishraRishi Mishra   14 Aug 2017 7:18 PM GMT

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गरीब मरीजों के हक का इलाज मार रही सरकारी डाॅक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिसगोरखपुर के अस्पताल में मृत बच्चे से लिपटर रोते परिजन।

लखनऊ। स्वास्थ्य विभाग, एमसीआई, आईएमए और पीएमएस इतनी अधिक संस्थाओं की देखरेख होने के बावजूद सरकारी डाॅक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस खत्म नहीं हो रही है। अब तो बात न केवल प्राइवेट प्रैक्टिस बल्कि सरकारी सुविधाओं के दुरुपयोग तक पहुंच गई है।

हर सरकारी डॉक्टर को 25 फीसदी अतिरिक्त तनख़्वाह और इतनी ही अतिरिक्त पेन्शन मिलती है।प्राइवेट प्रैक्टिस न करने के बदले में। वो ये भी लेते हैं और प्राइवेट प्रैक्टिस भी करते हैं। बावजूद शासन से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नौ अप्रैल को ऐसे सरकारी चिकित्सकों की सूची तलब की थी जो निजी प्रैक्टिस से जुड़े हैं। मगर अब तक ये सूची शासन को महानिदेशालय की ओर से उपलब्ध नहीं करवाई गई है।स्वास्थ्य विभाग में अब तक हुई गिनती के मुताबिक प्रदेश में करीब सात हजार सरकारी चिकित्सक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में निजी चिकित्सकीय सेवाएं दे रहे हैं।

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गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल काॅलेज में डाॅ कफील खान की निजी प्रैक्टिस से जुड़े विवाद से अब पूरे यूपी में इवस ओर नजर गई है। राजधानी के कुर्सी रोड पर विकासनगर में एक बड़े बंगले में नर्सिंग होम संचालित है। कुर्सी रोड के दर्जनों गांवों से मरीज इस निजी अस्पताल में आते हैं। महमूदाबाद तक के मरीजों का इलाज इस नर्सिंग होम में होता है। यहां संचालक स्वास्थ्य विभाग में वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उनकी तैनाती महमूदाबाद की सीएचसी में रही है।

अपने ओहदे का फायदा उठा कर गांवों के मरीजों को अपने नर्सिंग होम में बुलाते हैं। ये एक मामला नहीं हैं, प्रदेश में प्राविंशियल मेडिकल सर्विसेज(पीएमएस) से जुड़े अधिकांश चिकित्सक निजी प्रैक्टिस से जुड़े रहे हैं। कभी निजी क्लीनिक के जरिये तो कभी निजी अस्पताल सरकारी डाक्टर निजी प्रैक्टिस से जुड़े रहे हैं। जिसका नुकसान गरीब मरीजों को उठाना पड़ता है।

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मगर पीएमएस के अध्यक्ष डा एके यादव का कहना है कि “सरकार को ऐसे चिकित्सक जो निजी प्रैक्टिस करते हैं, उन पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिये। सरकार हमको प्रैक्टिस न करने की एवज में 25 फीसदी अतिरिक्त भुगतान करती है। ये भुगतान पेंशन में भी होता है। इसलिए इस तरह से निजी प्रैक्टिस कर के मरीजों को परेशान करने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए ऐसा गलत काम करने वालों पर सरकार को आचरण नियमावली के प्राविधानों के तहत सख्त कार्रवाई करनी चाहिये।”

प्रदेश में 60 फीसदी सरकारी चिकित्सक निजी प्रैक्टिस से जुड़े

प्रदेश में करीब 12000 सरकारी चिकित्सक हैं। नौ अप्रैल को चिकित्सकों के संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से स्पष्ट आदेश किया गया था कि विभाग जांच करवाए कि कितने सरकारी चिकित्सक निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं। स्वास्थ्य महानिदेशालय के सूत्रों का कहना है कि, जांच का आगाज हुआ। विभाग ने आंकड़ा निकाला तो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 60 प्रतिशत डाक्टर निजी प्रैक्टिस भी कर रहे हैं। जिनकी संख्या लगभग सात हजार से अधिक है। मगर ये रिपोर्ट अब तक शासन को नहीं दी गई है। जिससे निजी इलाज करने वाले डाक्टर दोहरी मलाई मार रहे हैं।

सरकार दे रही बस चेतावनी और धमकी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अप्रैल में निजी प्रैक्टिस को लेकर चेतावनी दी थी। मगर विभाग ने कुछ खास कार्यवाही नहीं की है। अब स्वास्थ्य मंत्री सिध्दार्थनाथ सिंह ने एक बार फिर से चेतावनी जारी की है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि राजकीय सेवा में रहते हुए प्राइवेट प्रैक्टिस करना एक जघन्य अपराध है। ऐसे चिकित्सकों को चिह्नित कर तत्काल उनके खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जाएगी।

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स्वास्थ्य मंत्री ने अपर मुख्य सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य श्री अरुण कुमार सिन्हा को निर्देश दिए कि जिन चिकित्सकों के प्राइवेट प्रैक्टिस में लिप्त होने की जानकारी प्राप्त हुई है, उनके विरूद्ध तत्काल दण्डात्मक कार्यवाही की जाए। स्वास्थ्य मंत्री ने सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा, वे सुनिश्चित करें कि चिकित्सक समय से अस्पतालों में मौजूद रहें और ओपीडी में बैठकर निर्धारित समय तक मरीजों का उपचार करें।

डब्ल्यूएचओ ने कहा, योग्य नहीं हैं आधे से ज्यादा भारतीय डॉक्टर्स

जून 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारतीय डॉक्टर्स को लेकर एक रिपोर्ट से बड़ा खुलासा किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 57 फीसदी एलोपैथिक डॉक्टर्स के पास मेडिकल क्वालिफिकेशन नहीं है। तो वहीं रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि एक तिहाई डॉक्टर ऐसे हैं जो केवल सेकेंडरी स्कूल तक ही शिक्षित हैं और दूसरों का इलाज कर रहे हैं। यूएन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) रिपोर्ट की हेल्थ वर्कफोर्स इन इंडिया से यह खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट 2001 के तथ्यों पर आधारित है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 18.8 फीसदी स्वास्थ्य कर्मी ही मेडिकल योग्यता रखते हैं। औसतन एक लाख की आबादी में 80 डॉक्टर हैं जिनमें 36 डॉक्टर ऐसे हैं जिनके पास एलोपैथिक, होम्योपेथिक, आयुर्वेदिक और यूनानी से संबंधित कोई भी मेडिकल सर्टिफिकेट नहीं है। बता दें कि इस रिपोर्ट में एक रोचक तथ्य सामने आया था कि महिला हेस्थकेयर वर्कर्स अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में ज्यादा योग्य और शिक्षित पाई गई हैं।

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रिपोर्ट के मुताबिक 2001 में हुई देश की जनगणना से प्रत्येक जिले का डेटा लिया गया। इससे देश के प्रत्येक जिले में स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत लोगों की व्यापक तस्वीर सामने आई। स्टडी में इस बात का खुलासा किया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर ऐलोपैथिक, आयुर्वेदिक, होमियोपैथिक और यूनानी सभी डॉक्टरों की संख्या का अनुपात 80 डॉक्टर प्रति एक लाख आबादी था जो चीन में 130 है। इनमें से भी अगर उन डॉक्टरों को छोड़ दिया जिनके पास मेडिकल क्वॉलिफिकेशन नहीं था तो यह अनुपात 36 डॉक्टर प्रति एक लाख आबादी हो जाएगा।

भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट

  • कुल जीडीपी 4.2%
  • सरकारी खर्च 1%
  • निजी क्षेत्र का खर्च 3.2%
  • भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं का बाजार
  • अभी करीब 1000 करोड़ डॉलर
  • अनुमान 28000 करोड़ रुपए डॉलर 2022 तक

(आंकड़ें 2016 में फिक्की द्वारा जारी बुकलेट इंडियन हेल्थकेयर स्टार्ट एप्स से लिए गए हैं)

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