सड़क बनती है, फिर तोड़ी जाती है, और जनता का पैसा यूं ही बर्बाद होता रहता है...

Ashwani Kumar Dwivedi | Mar 29, 2018, 18:25 IST
Roads in uttar pradesh
लखनऊ। अक्सर आप भी देखते होंगे कि आपके घर के पास की सड़क बनाई जाती है, थोड़े दिनों बाद उस सड़क की फिर से खोदाई होने लगती है, और फिर दोबारा सड़क बनने में सालों लग जाते हैं। बड़ी बात यह है कि इसके पीछे जनता का पैसा यूं ही बर्बाद होता रहता है। आखिर ऐसा क्यों किया जाता है और क्या इसका कोई उपाय नहीं है?

असल में, कहने को तो नगर विकास विभाग है, इसके तहत उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय निदेशालय, जल निगम, निर्माण एवं परिकल्प सेवाएं, जल संस्थान इत्यादि विभाग आते हैं। मगर इन विभागों में तालमेल न होने के कारण हर साल बड़ी मात्रा में उत्तर प्रदेश की जनता का पैसा बर्बाद होता है।

कभी सीवर लाइन, तो कभी जल आपूर्ति के लिए खोदाई होती है, तो कभी अंडरग्राउंड बिजली तार, टेलीफोन तार के नाम पर सड़क को बार-बार खोद दिया जाता है। बाद में सड़क की मरम्मत के नाम पर लीपापोती करके काम ख़त्म कर दिया जाता है। ऐसे में कुछ ही दिनों में सड़क ख़त्म हो जाती है और फिर विधायक निधि, सांसद निधि और अन्य विकास निधियों से बनाई जाती है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के फैज़ुल्लागंज क्षेत्र के समाजसेवक शशिकांत पाण्डेय बताते हैं, “मेरे घर के सामने सड़क करीब डेढ़ साल पहले बनी थी, सड़क बनने के कुछ समय बाद ही सीवर लाइन डालने के लिए सड़क खोद दी गई और बाद में ठेकेदारों ने सड़क को उल्टा-सीधा पैच कर दिया, सीवर के चैम्बर सड़क से ऊंचे हो गए और एक बरसात में ही सड़क ख़त्म हो गई और अब सड़क के नाम पर सिर्फ कच्चा गलियारा रह गया है।“

आगे कहते हैं, “ऐसी इस क्षेत्र में बहुत सी सड़कें हैं, जिनमें से कुछ सड़कें जो पहले डामर रोड बनी थीं, उन पर फिर से सीमेंटेड टाइल्स लगाकर रोड बनाई जा रही है, अगर पहले पूरी योजना से सीवर, पानी, अंडरग्राउंड बिजली तार डाले गए होते तो इस सड़क को दोबारा बनाने की जरूरत नही पड़ती।“

हमारे देश में कुल 3,842 नगरीय स्थानीय निकाय हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 653 स्थानीय निकाय उत्तर प्रदेश में हैं। भारत में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 653 स्थानीय निकायों में 16 नगर निगम और 438 नगर पंचायत हैं।



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कहां आती हैं मुश्किल

इस बारे में स्थानीय निकाय निदेशालय, उत्तर प्रदेश के निदेशक डॉ. अनिल कुमार सिंह ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “विभागों के बीच में समन्वय के लिए मंडलायुक्त के अध्यक्षता में अवस्थापना समिति बनाई जाती है और जिला स्तर पर इसकी अध्यक्षता जिलाधिकारी करते हैं। इनमें नगर निगम, आवास विकास और अन्य विभाग शामिल होते हैं। सड़क निर्माण के समय ये ज़िम्मेदारी बजट बनाने वाले की होती है कि वह बजट में दर्शाए की, जिस जगह सड़क प्रस्तावित है, वहां पर क्या काम हो चुका है और कितना काम होना बाकी है।“

आगे बताते हैं, “जिन जगहों पर प्लानिंग के तहत जैसे स्मार्ट सिटी, प्राधिकरण के निर्माण कार्य हो रहे हैं, यहां पर ऐसी मुश्किलें नहीं है, जो अनियोजित कालोनियां या अवैध कालोनियां विकसित हो रही हैं, ये मुश्किलें विशेष कर उन जगहों पर ज्यादा हैं।“

डॉ. सिंह आगे बताते हैं, “नगर पालिका, स्थानीय निकाय और अन्य जनप्रतिनिधियों से भी ये अपेक्षा की जाती है कि जहां सीवर-पानी के पाइप पड़े हों, वहां कार्य कराएं और जहां पर पानी और सीवर के पाइप नहीं पड़े हैं, वहां पर ये काम कराने के बाद ही सड़क निर्माण को प्राथमिकता दें, व्यवस्थाएं हैं मगर कहीं न कहीं क्रियान्वयन में दिक्कतें हैं।“

लखनऊ के फैजुल्ल्लागंज वार्ड चतुर्थ के रहने वाले रामप्रकाश सिंह बताते हैं, “वर्ष 2012 में हमारे घर के सामने सांसद निधि 18 लाख से सीसी रोड बनी थी, रोड बनने के बाद सड़क को अंडरग्राउंड बिजली के नाम पर खोद दिया गया, उसके बाद टेलीफोन लाइन, फिर सीवर के चैम्बर के नाम पर, इस तरह करके पूरी रोड क्षतिग्रस्त हो गई, टेलीफोन के तार डालने के बाद तो सड़क पर गड्ढे खुले छोड़ दिए, जिसके कारण तेजी से सीसी रोड क्षतिग्रस्त हो रही है, कई बार नगर निगम जोन तीन में लिखित शिकायत की गई, लेकिन कोई कार्यवाही नही हुई।“

तब पार्षद ने सड़क निर्माण पर लगाई रोक



पार्षद प्रदीप कुमार शुक्ला। लखनऊ नगर निगम के फैजुल्लागंज वार्ड चतुर्थ के पार्षद प्रदीप कुमार शुक्ला ‘टिंकू’ बताते हैं, “मेरे क्षेत्र में विधायक निधि और अन्य निधियों से करीब तीन करोड़ रुपए से सड़क, नाली, खड़ंजा का कार्य प्रस्तावित है, मगर हम वर्तमान में सिर्फ उन सड़कों पर निर्माण कार्य कर रहे हैं, जो क्षतिग्रस्त थीं और जिन पर सीवर, पानी वाले पाइप पड़ चुके हैं।“

आगे कहते हैं, “करीब 22 सड़कें बननी हैं, जिन्हें बनाने से पहले जल विभाग, नगर निगम और विधायक डॉ. नीरज बोरा और अन्य जिम्मेदारों को पत्र लिखकर अनुरोध किया है ताकि सरकारी धन का नुकसान न हो और सड़कें अधिक समय तक प्रयोग करने लायक बनी रहे। मेरी प्राथमिकता ये है कि मेरे क्षेत्र में विकास क्रम से हो क्योंकि बार-बार सड़कें बनाने से एक तरफ जहां सरकारी पैसे की बर्बादी होती है, वहीं जल्दी सड़कें स्वीकृत भी नहीं हो पाती।“

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