सीतापुर मामला- ‘वो कुत्ते जैसे दिखते है पर कुत्ते है नहीं’

Diti BajpaiDiti Bajpai   10 May 2018 12:20 PM GMT

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सीतापुर मामला- ‘वो कुत्ते जैसे दिखते है पर कुत्ते है नहीं’

सीतापुर। "वो कुत्ते जैसे दिखते हैं पर कुत्ते है नहीं, जंगली हैं।" पंद्रह साल की सोनम कुमारी बताती हैं। सोनम अपनी दोस्त कोमल के साथ गांव में ही आम के बाग में अमिया बीनने गई थी, तभी वहां जंगली जानवर आ गए और कोमल को नोच डाला।

सोनम यह सब अपनी आंखों के सामने देख रही थी, जैसे-तैसे वो अपनी जान बचाकर वहां से भागी और गाँव वालों को बताया। यूपी के सीतापुर के खैराबाद में छह महीनों में हुई 12 बच्चों की मौत के दोषी कुत्ते बताए जा रहे हैं। मामला बढ़ने पर कई दर्जन कुत्तों का एनकाउंटर भी कर दिया गया। हंगामा बढ़ने पर एनकाउंटर बंद कर कुत्तों की नसबंदी शुरु की गई है।

गाँव कनेक्शन की संवाददाता ने खैराबाद क्षेत्र के चार गाँव (रहीमपुर, कुलिया, बद्रीखेड़ा, गुरपलिया) के कई ग्रामीणों से बात की। लगभग सभी ग्रामीणों ने इस बात को माना की जो बच्चों को मार रहे है वो कुत्ते नहीं पर दिखते जरूर कुत्ते जैसे ही है। गांव वाले इन्हें लकड़बग्घा बता रहे हैं।

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"एक बार में खेत में काम कर रहा था तभी वहां वो कुत्ते आ गए। न वो भौंक रहे थे और न और गुर्राए, बस जमीन सूंघकर वो मेरे पास आ ही रहे थे तब तक मैं पेड़ पर चढ़ गया।" खैराबाद क्षेत्र के बद्रीखेड़ा गाँव के माशूक अली ने बताया, "पुलिस जिन कुत्तों को मारा है वो गाँव के हैं। अभी तक उन वो कुत्ते एक दो ही मरे हैं जिन्होंने हमला किया है।"

प्रशासन ने इस समस्या से निजात पाने के लिए कुत्तों को पकड़ने और मारने का काम शुरू कर दिया था। जहां भी कुत्तों का झुंड दिख रहा था बस उन्हें मारा जा रहा था। जिस पर कई पशु प्रेमी संगठनों ने सवाल खड़े किए। लखनऊ की विभिन्न संस्थाओं से कई एनिमल एक्टिविस्ट जब इन गाँवों में गए तो प्रशासन द्वारा इनके एंनकाउटर को रोक दिया गया है। अब अब सिर्फ कुत्तों को पकड़ने का अभियान चल रहा है।

पिछले छह वर्षों से पशु के हित के काम कर रही और आसरा फांउडेशन की अध्यक्ष शिल्पी चौधरी बताती हैं, "कुत्ते जो होते हैं वो हाथ और पैर में काटते हैं। अभी तक जितने भी हादसे देखे हैं, उनमें ज्यादातर गले में वार किया है। जब वो हमला करते हैं तो झुंड में आते हैं और एक ही दिशा में भाग जाते हैं जबकि कुत्तों की ये प्रवृत्ति नहीं होती है।"

"अभी तक बिना सही पहचान के जितने भी कुत्तों को मारा गया है उनका पोस्टमॉर्टम किए बिना ही जमीन में दबा दिया जा रहा है। इससे ये तो पता ही नहीं चल पाएगा कि हादसे कौन कर रहा है। इसके लिए प्रशासन को भी बोला है। अभी तक तकरीबन 100 कुत्ते मारे जा चुके हैं।" शिल्पी ने बताया, "उन जानवरों की पहचान कराने के लिए हमने एक चार्ट बनाया था जिसको कई ग्रामीणों को दिखाया। फोटो में पहचाने गए जानवरों की पहचान कुत्तों की शारीरिक बनावट-बिल्कुल अलग है। वो कुत्ता न होकर लकड़बग्घा ज्यादा लग रहा है।"

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पशुओं के हित में काम करने वाली कई संस्थाएं इन दिनों खैराबाद क्षेत्र में तथ्यों को जुटाने में लगी हुई है। एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इडिया से जुड़े और पशुप्रेमी संस्था एमआरएसपी के प्रदीप पात्रा ने बताया, "आदमखोर कुत्तों के नाम पर गाँव के पालतू कुत्तों को भी मारा गया। हमे दो कुत्ते वो मिले जिन्हें पुलिस ने गोली तो मारा, लेकिन गोली लगने के बाद भी वे जीवित है। इनका इलाज भी मैं कर रहा हूं।"

पात्रा आगे बताते हैं, "जहां-जहां बच्चों के साथ हादसे हुए वहां-वहां हमारी टीम गई है गाँव वालों ने खुद बताया कि पुलिस कहती है गांव के सारे कुत्तो को मार दो। डरा धमका कर गांव में आते हैं, और सोते कुत्तो को गोली मार देते हैं।"

इस पूरी घटना के बारे में सिटी मजिस्ट्रेट राकेश पटेल का कहना हैं, "पुलिस द्वारा कुत्तों का एंनकाउटर किया जा रहा है ये बिल्कुल गलत खबर हैं। हम लोगों ने अभियान चलाया जिसके तहत कुत्तों को पकड़ा और लखनऊ कांहा उपवन भेजा है। हर कुत्ते पर 1200 रूपए खर्च किया जा रहा है। इसके अलावा लोगों को भी जागरूक कर रहे है।"

जिले के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी रवींद्र प्रसाद यादव का मानना हैं कि जो भी हमले हो रहे है वो साधारण कुत्तों के द्वारा नहीं किए जा रहे है। जो हमला कर रहे हैं वो कुत्तों जैसे हैं लेकिन पालतू कुत्ते नहीं है। ये सीधे गर्दन पर हमला करते है। अब तक जितने भी तथ्य मिले है उनसे यही लग रहा है कि भेड़िये और पालतू कुत्तों की मिक्स ब्रीड हैं।

क्षेत्र में अभी प्रशासन ने कॉम्बिंग ऑपरेशन जारी रखा हुआ है। भारी संख्या में कुत्तों की पकड़ की जा रही है। 33 कुत्ते लखनऊ लाए जा चुके हैं, जिनको एंटी रेबीज इंजेक्शन लगाए गए हैं। साथ ही उनकी नसबंदी की जा रही है।

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बूचड़खाना बंद होने से जंगली जानवर हुए अक्रामक

इस घटना के लिए कुछ ग्रामीण बूचड़खाना बंद होने की भी वजह बता रहे हैं। गुरपलिया गाँव के अतिक अहमद बताते हैं, "चील घर हटने और बूचड़खाना बंद होने से यह बच्चों को खाने लगे। पहले मांस के टुकड़े इन कुत्तों को मिल जाते थे पर अब नहीं मिलते।" उत्तर प्रदेश के कई बूचड़खाने बंद हुए लेकिन सीतापुर के अलावा ऐसी कोई भी घटना सामने नहीं आई है।

कुत्ते मर गए तो फैल जाएगी प्लेग बीमारी

"कुछ वर्षों पहले सूरत में करीब 40 हजार कुत्तों को मार दिया गया था। कुत्तों को मारने के बाद पूरे शहर में प्लेग बीमारी फैल गई। लोगों के स्वास्थ्य में लाखों का खर्च हुआ।" प्रदीप पात्रा ने बताया, "गाँव में लगातार कुत्तों को मारा जा रहा है ऐसे में ग्रामीणों को जागरूक करना बहुत जरूरी है इसलिए यह जानकारी लोगों तक पहुंचा रहे ताकि कुत्तों को मरने से रोका जा सके।

   

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