'शमशेरा' के बहाने फिर 'जिंदा' होंगे चंबल और बुंदेलखंड के डकैत

डकैतों के लिए उत्तर प्रदेश के दो हिस्सों का जिक्र हमेशा होता रहा है। चंबल और बुंदेलखंड। एक समय ऐसा भी था जब चंबल डकैतों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन स्थिति काफी बदल चुकी है। बुंदेलखंड में अब बस डकैतों की शरणस्थली है शेष है।

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शमशेरा के बहाने फिर जिंदा होंगे चंबल और बुंदेलखंड के डकैत

पिछले दिनों जब बॉलीवुड स्टार रणबीर सिंह की आने वाले फिल्म शमशेरा का पोस्टर रिलीज हुआ तब अचानक से 'डकैत' जिंदा हो उठे। खबरों की मानें तो शमशेरा की कहानी डकैत और डकैती पर आधारित है। ऐसे में एक बार फिर डकैतों को लेकर लोगों के मन में कई सवाल उठने लगे, जिज्ञासाएं जाग उठीं। डकैत शब्द का नाम सुनते ही खौफ और आतंक की एक तस्वीर उभरकर सामने आ जाती है। डकैतों के लिए उत्तर प्रदेश के दो हिस्सों का जिक्र हमेशा होता रहा है। चंबल और बुंदेलखंड। एक समय ऐसा भी था जब चंबल डकैतों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन स्थिति काफी बदल चुकी है। बुंदेलखंड में अब बस डकैतों की शरणस्थली है शेष है।

बुंदेलखंड धर्मनगरी के लिए भी प्रसिद्ध

बुंदेलखंड के चित्रकूट का पाठा इलाका भौगिलोक रूप से डकैतों के लिए अनुकूल था। चारों ओर पहाड़ी होने के कारण वे यहां आसानी से छिप सकते थे। घना जंगल होने के कारण आम लोगों का आना-जाना भी बहुत कम होता था। ये पूरा जिला ही डकैतों के लिए जाना जाने लगा। इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि जिला विकास की पहुंच से बहुत दूर होता गया। लेकिन इत्तेफाक देखिए कि चित्रकूट पूरी दुनिया में धर्मनगरी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इसका उल्लेख भगवान श्रीराम की कर्मस्थली के रूप में किया गया है। बावजूद इसके पिछले चार-पांच दशक से लगातार डकैतों के आतंक के लिए जाना जाता रहा है। चित्रकूट का पाठा इलाका मुख्य रूप से डकैतों की शरणस्थली थी। यहां के दस्यु (डकैत) प्रभावित क्षेत्र के थानों में आदिवासी (कोल) जाति के लोगों का बाहुल्य है। अन्य जातियां भी मिश्रित रूप से बसी हुई हैं। दस्यु गिरोहों में प्रत्येक जाति के लोगों का वर्चस्व रहा। पटेल, कोल और यादव जाति के लोगों की सक्रियता ज्यादा रही। जिन्हें जातीयता के आधार पर सरंक्षण भी मिला।


बुंदेलखंड के पिछले 40 वर्ष के इतिहास में तीन पीढ़ियों को सिर्फ एक ही शब्द सबसे ज्यादा सुनने को मिला और वो है डकैत। लेकिन इस पूरी समयावधि में डकैतों के स्वरूप में खासा परिवर्तन देखने को मिला है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में पहले उच्च वर्ग के कुछ लोग अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए डकैती करवाते थे। इस मामले में धर्मनगरी चित्रकूट का नाम सबसे पहले आता है। यहां तेंदूपत्ता से लेकर खैर के पेड़, कोयला, बालू खनन तक के व्यापार में ऐसे उच्च वर्ग के लोगों ने खूब लूट की। तेंदूपत्ता से बीड़ी और खैर से कत्था बड़े पैमाने पर बनाया जाता है। इन दोनों की तुड़ाई कराने वाले ठेकेदारों में आपस में काफी तनातनी रहा करती थी और उससे निजात पाने के लिए ही बुंदेलखंड में डकैत प्रथा की शुरुआत हुई।

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सन 1981 से लेकर अब तक बुंदेलखंड क्षेत्र में गया कुर्मी, राजा रगौली, शिवकुमार पटेल उर्फ़ ददुआ, सूरजभान गैंग, रम्पा उर्फ़ रामपाल, अंबिका पटेल उर्फ़ ठोकिया, गुड्डा उर्फ़ मइयादीन पटेल, सदाशिव उर्फ फौजी, खरदूषण, जगतपाल पासी, बुद्दा नाई, नथुवा, संतोषा यादव, धर्मा यादव, चुनुवा कहार, कलुवा दलित, हनुमान कुर्मी, राजेंद्र गोसाई, मतोला, तिजोला, रजवा, रामकरण काछी, रामकरण आरख, कोदा काछी, दिनेश कोल जैसे सैकड़ों लोगों ने बीहड़ का रास्ता अपनाया और खौफ का पर्याय बन गए। इनमें नोटिस करने वाली बात ये है कि इनमें से ज्यादातर अनुसूचित और पिछड़ी जाति के लोग हैं। चार दशक के समय का पूरा आंकलन करने बाद सबसे बड़ी बात जो सामने आई वो ये कि पहले ठाठगिरी और ददुअई के बीच वर्चस्व की लड़ाई हुई, और इसे जीतने के लिए उच्च वर्गों द्वारा डकैत बनाए गए। लेकिन अब मौजूदा समय में बेरोजगारी, दबंगों द्वारा उत्पीड़न, नेताओं की राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की लोलुपता के कारण छोटी-छोटी जातियों के लोग डकैती के दलदल फंस रहे हैं। मौजूदा डकैत किसी भी विशेष सामाजिक परिस्थिति की उपज नही हैं। अब सिर्फ निजी स्वार्थों और सफेदपोशों की सत्ता प्राप्ति तक का माध्यम बनकर रह गए हैं।

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इस समय चित्रकूट में जिस तिकड़ी (दस्यु बबुली कोल, दस्यु ललित पटेल, दस्यु गोप्पा यादव) का आतंक था, उनमें से दस्यु ललित पटेल को अभी हाल ही में एमपी पुलिस ने एक मुठभेड़ में मार गिराया तो दूसरे डकैत दस्यु गोप्पा यादव को एसटीएफ और चित्रकूट पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन में गिरफ्तार कर लिया गया। अब सिर्फ 5 लाख 35 हजार का इनामी दस्यु बबुली कोल ही शेष बचा है जो अब बुंदेलखंड का सबसे मंहगा डकैत है। इस बारे में पुलिस अधीक्षक मनोज झा का कहना है कि इस डकैत को भी जल्द मार गिराया जाएगा। पुलिस लगातार सर्च ऑपरेशन में लगी है।

सन् 1982 में जब वीपी सिंह के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उनके बड़े भाई न्यायमूर्ति सीपीएन सिंह की दस्यु जगतपाल पासी ने हत्या कर दी थी, जिसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री का पद भी छोड़ना पड़ा था। 1984 में केंद्र सरकार ने बीहड़ सुधार योजना के मसौदे को अंतिम रूप दिया। आतंक और खौफ के लिए पहचाने वाले कुछ डकैत समाज में अपनी दूसरी छवि भी बनाने में कामयाब रहे। ददुआ जैसे डकैत इसी श्रेणी में आते हैं। क्योंकि आज डकैत ददुआ का मंदिर भी बना है जहां उसकी पूजा भी होती है। यह समाज के लिए नए सिरे से चिंतन करने का वक्त है कि आखिर ऐसे व्यक्ति का पूजन क्यों जिसने दशकों तक अपनी हनक से सैकड़ों लोगों का सबकुछ छीन लिया।

कुछ को तो हालात ने डकैत बना दिया

एक दबंग के इशारे पर चित्रकूट की रैपुरा पुलिस ने शिवकुमार को जेल भेज दिया। जो बाद में दस्यु ददुआ के रूप में जाना गया। वहीं लोखरिहा गांव में अंबिका पटेल की बहन के साथ हुए दुष्कर्म के बाद जब पुलिस न्याय नहीं कर पाई तब वह ठोकिया बन बैठा। साइकिल का पंचर बनाने वाले घनश्याम केवट की भतीजी के साथ छेड़छाड़ की घटना ने उसे डकैत 'नान केवट' बना दिया।

हरा सोना और तेंदूपत्ता आय का प्रमुख स्रोत

प्रकृति की गोद में बसा चित्रकूट अवैध खनन और वन से जुड़े माफिया के लिए बदनाम रहा है। अवैध रूप से पेड़ों की कटाई और तेंदुपत्ता ने न जाने कितने लोगों को करोड़पति बना दिया। तेंदुपत्ते से ही बीड़ी तैयार होती है। सोने जैसी इस संपदा को कभी सफेदपोश तो कभी डकैत मिलकर लूटते आए हैं। सरकार को करोड़ों का नुकसान भी हो रहा है। कई नेता तो डकैतों के बल पर सांसद और विधायक होते रहे हैं। पाठा क्षेत्र में आर्थिक लाचारी से जूझ रहे अनुसूचित और पिछड़े वर्ग के लोग बीहड़ में कूदने को क्यों मजबूर होते हैं, आला अधिकारीयों ने कभी इसपर विचार करने की जरूरत नहीं समझी।

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शिवकुमार उर्फ़ ददुआ

नब्बे के दशक में बुंदेलखंड में दस्यु सम्राट ददुआ खौफ और आतंक का पर्याय बना हुआ था। दस्यु ददुआ को बुंदेलखंड का वीरप्पन भी कहा जाता था। चित्रकूट के रैपुरा थाना क्षेत्र के देवकली गांव में पैदा हुआ ददुआ राम प्यारे पटेल का बड़ा बेटा था। शिव कुमार उर्फ ददुआ 32 साल पूर्व बागी हुआ था। पहली बार वर्ष 1975 में ददुआ के खिलाफ भैंस चोरी का मुकदमा दर्ज हुआ। दो दशक तक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आतंक का पर्याय रहे इनामी डकैत ददुआ के ऊपर उत्तर प्रदेश में ही 241 अलग-अलग धाराओं में आपराधिक मामले दर्ज थे। फरवरी 2007 में चित्रकूट के जगमल के जंगल में एसटीएफ ने ददुआ को पांच डकैतों के साथ मार गिराया था।

अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया

दस्यु सरगना ठोकिया उर्फ अंबिका पटेल का जन्म वर्ष 1972 में चौकी भरतकूप क्षेत्र के ग्राम लोखरिया क्षेत्र में हुआ। 2008 में हुई मुठभेड़ में ठोकिया के गैंग को खत्म किया गया। 22 जुलाई 2007 को पुलिस मुठभेड़ कर लौट रहे एसटीएफ के जवानों पर घात लगाकर ठोकिया गिरोह ने साथ अंधाधुंध फायरिंग कर 6 कमांडो की हत्या कर दी थी। हमले में एसटीएफ के 10 जवान घायल भी हुए थे।

मुन्नी लाल उर्फ़ खड़गसिंह

खड़गसिंह मूल रूप से थाना बहिलपुरवा का रहने वाला है। पुलिस रिकार्ड की जानकारी के अनुसार कुछ समय तक यह दस्यु ठोकिया के गिरोह में भी सक्रिय था। 2009 में गिरफ्तार होने के बाद गैंग पूरी तरह से खत्म हो गया है। एक समय जिस डकैत खड़गसिंह की तूती बोलती थी वो आज सजा काटकर आम व्यक्ति की तरह जिंदगी व्यतीत कर रहा है।

गया कुर्मी

पाठा के बीहड़ों में खौफ का पहला नाम दस्यु सरगना गया कुर्मी का ही उभरा था। गया कुर्मी के साथ ही गैंग में राजा रगौली और शिवकुमार पटेल उर्फ़ ददुआ जैसे डकैत थे। गया कुर्मी ने सन 1982 में आत्मसमर्पण कर दिया था।



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दस्यु गौरी यादव उर्फ उदयभान

गैंग लीडर गौरी यादव मूलरूप से चित्रकूट के बिलहरी थाना बहिलपुरवा क्षेत्र का निवासी है। प्रारम्भ में यह एसटीएफ का मुखबिर रहा जो पुलिस एवं अपराधियों की बारीकियों को नजदीक से जान गया। वर्ष 2005 में थाना नयागांव क्षेत्र में फिरौती हेतु अपहरण की घटना को अंजाम दिया। आज समूचे चित्रकूट जिले में आतंक का दूसरा नाम बन चुका दस्यु गोप्पा शुरुआत में इसी गैंग का सदस्य था जो आज सरगना है। सूत्रों का कहना है कि डकैत गौरी यादव जल्द ही समर्पण कर सकता है।

दस्यु रामगोपाल यादव उर्फ गोप्पा यादव

एक लाख का इनामी कुख्यात डकैत गोप्पा यादव इस समय पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया था। गोप्पा यादव पर अपहरण हत्या फिरौती के लगभग दो दर्जन से अधिक मामले चित्रकूट, सतना (मध्य प्रदेश) बांदा के विभिन्न थानों में दर्ज हैं। ये डकैत तब पुलिस की हिटलिस्ट में उस समय ऊपर आया जब इसने 2016 में मुखबिरी के शक में पहाड़ी थाना क्षेत्र में तीन लोगों को गोलियों से भून मौत के घाट उतार दिया था। पिछले साल जुलाई में ही एक मुठभेड़ में इसे गिरफ्तार कर लिया गया।



दस्यु ललित पटेल

पिछले कुछ वर्षों से दस्यु ललित पटेल मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ था। पौशलहा चित्रकूट सतना निवासी दस्यु सरगना ललित पटेल, दस्यु सरगना रहे अम्बिका पटेल उर्फ ठोकिया की मौसी का लडक़ा है। ग्रामीण सूत्रों के मुताबिक दस्यु सरगना के पास थ्री नॉट थ्री की रायफल भी थी। पिछले साल जुलाई में ललित पटेल ने तीन लोगों की हत्याकर जला दिया था। इसके बाद एमपी पुलिस हरकत में आई और अगस्त 2017 में ललित पटेल को एक मुठभेड़ में एमपी पुलिस ने पुलिस अधीक्षक राजेश हिंण्डगकर की अगुवाई में मार गिराया।

अनुज हनुमत

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं)

   

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