रणवीर बरार की कुकिंग में जीरा-आलू और दाल-तड़के का फलसफा

द स्लो इंटरव्यू विथ नीलेश मिसरा में रणवीर बरार कहते हैं कि कोई घर में खाना बनाने वाला हो या फिर उनके जैसा सेलिब्रिटी शेफ, दोनों के लिए खाना बनाने का एक बड़ा हिस्सा खुशबू, आवाज, जगह और बेशक बचपन के स्वाद से जुड़ा होता है। वह यह भी मानते हैं कि रसोई में मिली सीख जिंदगी के सबक होते हैं।

Update: 2021-06-25 06:35 GMT

सेलिब्रिटी शेफ रणवीर बरार ने दुनिया भर के किचन्स में खाना बनाया है, रेस्तरां खोले हैं, मेन्यू डिजाइन किए हैं, राष्ट्र प्रमुखों को अपने बनाए व्यंजन परोसे हैं। फिर भी, उनके लिए उस जज्बे को बयान करना आसान नहीं, जो उनके अंदर खाना पकाने और उसे परोसने के लिए जुनून पैदा करता है।

नीलेश मिसरा के साथ स्लो इंटरव्यू में बरार ने फुर्सत से हुई बातचीत में इस अनछुए अनकहे जज्बे को समझाने की कोशिश की। यह शायद घी, दूध और मसालों की महक है, जो हमेशा उनकी दादी के पीछे पीछे चलती थी। वह जहां भी जाती थीं, यह खुशबू उनके साथ रहती थी। वह अब तक नहीं भूले कि कैसे उनके दुपट्टे के एक कोने में कीमती मसाले बंधे होते थे। वह उन्हें संभाल कर रखती थीं और घर की अन्य महिलाओं के साथ उन्हें साझा नहीं करती थीं। वह बताते हैं, "लेकिन उन्होंने ही मुझे खाने का सम्मान करना सिखाया।"

हर हफ्ते दादाजी की साइकिल पर बैठकर उबड़-खाबड़ रास्ते से गुजरते हुए गुरुद्वारा जाना शायद उनकी सबसे पुरानी यादों में से एक है। यहीं से खाना उनके अंदर रचने बसने लगा। वह याद करते हैं, "यह हर रविवार का नियम था। मैं उनके साथ गुरुद्वारा जाता था। वह वहां अपने दोस्तों के साथ प्रार्थना करते या गुरबानी गाते थे। मुझे उनके साथ बैठना पड़ता था। लेकिन मैंने जल्दी ही उनके साथ वहां बैठने से इनकार कर दिया। मेरे दादाजी मान गए और बोले कि मैं बाहर इंतजार कर सकता हूं, लेकिन रहना गुरुद्वारे के परिसर में ही होगा।"

बरार के अनुसार, एक शेफ के लिए सबसे कम और जरूरी सामग्री का उपयोग किए बगैर स्वादिष्ट खाना बनाना ही असली परीक्षा है। 

फिर रणवीर ने खुद के लिए एक ऐसी जगह ढूंढी, जो कहीं ज्यादा दिलचस्प और 'हलचल' वाली थी। वह जगह थी लंगर, जहां बड़ी-बड़ी कढ़ाइयों में जोर-जोर से बोलने वाले रसोइए हंसी से ढेर सारा खाना पकाते थे। ग्रंथी की पत्नी लंगर के लिए मीठे चावल बनाती थी। जब वह छुट्टी पर चली गईं, तब रसोइयों ने रणबीर की ओर रुख किया और मीठे चावल बनाने को कहा। बरार कहते हैं, "जो मीठे चावल मैंने बनाया, वे अच्छे थे।"

बरार बताते हैं, "तब तक मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं खाना बनाना चाहता था। शुरू में, मेरे लिए लंगर में काम करना भगवान से अपनी बात मनवाने का जरिया था। मैं उनसे कहा करता था, 'देखो मैंने तुम्हारे गुरुद्वारे में कड़ी मेहनत की है, क्रिकेट मैच के दौरान बिजली न जाए, बस इसका ध्यान रखना।'" और वह हंस पड़ते हैं।

अपनी माँ सुरिंदर कौर के साथ रणबीर बरार (Photo: YouTube/Chef Ranveer Brar)

मसालों तक का सफर

दास बाबू ही थे, जिन्होंने खाने में इस्तेमाल होने वाले मसालों के प्रति उनकी चाह को और गहरा कर दिया था। दास बाबू किराना दुकान के मालिक थे। उनकी दुकान लखनऊ में बरार के घर से कुछ ही दूरी पर थी। बरार को अक्सर वहां 'थोड़ी सी मिर्ची' 'थोड़ी सी चाय की पत्ती' और 'कुछ ग्राम हल्दी' लेने लिए भेजा जाता था। लेकिन दास बाबू उस लड़के को समान तभी देते, जब कुछ देर रुककर वह उनकी कहानियां सुनता।

बरार हसंते हुए बताते हैं, "वह मुझे बताते कि हल्दी कहां से आई थी या मिर्च की क्या विशेषता है, या चाय की पत्तियां कहां उगाई जाती हैं.. और बहुत कुछ। अगर मैं उनकी बातें सुनता, तो ईनाम में मुझे एक टाफी मिलती थी।"

लेकिन वह मानते हैं कि मसालों से उनके खास रिश्ते की शुरुआत दास की कहानियों से ही हुई।

आलू जीरा और दाल तड़के का इम्तिहान

बरार कहते हैं, हम खाना बनाते समय उसमें अपना एक हिस्सा छोड़ देते है। खाने के साथ उसे बनाने वाले का जुड़ाव खाना परोसते ही पता चल जाता है। तो आप अच्छे कुक कैसे बनते हैं? क्या यह उच्च तकनीकी हुनर के साथ जटिल से मैन्यू को साकार कर देने की कला है? इस सवाल पर बरार कहते हैं: नहीं।

नीलेश मिसरा के फार्म हाउस स्लो में जब रणबीर बरार ने खाना बनाया, तो एक पत्रकार और एक शेफ के बीच तुलना की। दोनों को अच्छा श्रोता और अपने ऑडियंस को समझना होगा।

वह 'आलू हींग जीरा' और 'दाल तड़का' की शानदार मिसाल देते हैं। एक कुक की काबलियत कम से कम और सबसे जरूरी सामग्रियों का इस्तेमाल कर स्वादिष्ट भोजन बनाना है। यही उसकी असली परीक्षा है। बरार बताते हैं, "जब लोग मुझे प्रभावित करने के लिए मिशेलिनस्टारडिश बनाने की बात करते हैं, जिसमें काफी जटिल तैयारियों की जरूरत होती है, तो मैं उनसे 'आलू जीरा' और 'दाल तड़का' बनाने को कहता हूं. या फिर कहता हूं कि मेरे लिए चाय बना दो।"

दो कुकों को एक ही डिश बनाने के लिए एक जैसे मसाले देने पर भी दोनों के खाने का स्वाद अलग-अलग होता है। बरार बताते हैं कि स्वाद इस बात से तय होता है कि दोनों ने मसालों का इस्तेमाल किस तरह किया। बरार बताते हैं, "इस तरह के सादे खानों में छिपाने के लिए कुछ नहीं होता और अगर आप एक कड़क आलू जीरा और दाल तड़का बना देते थे तो आप बेहतरीन शेफ हैं।"

भोजन के साथ रूहानी रिश्ता

भोजन के साथ एक कभी न खत्म होने वाला रिश्ता होता है और बरार की जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता यही है। खाने से जुड़ी हर बात उन्हें पसंद है, खासकर उसका इतिहास और उसका सफर। वह यह भी मानते हैं कि रसोई में सीखे गए सबक जिंदगी के सबक होते हैं। वह कहते हैं, "वे हमें प्यार, सहानुभूति, धैर्य और बुरी परिस्थितियों में भी अपना सर्वश्रेष्ठ देने समेत काफी कुछ सिखाते हैं।"

खाने के जरिए भावनाओं को व्यक्त किया जाता है। बरार ने इसके लिए बहुत ही सुंदर उदाहरण दिया। हंसते हुए वह कहते हैं, "मैं अपने एक दोस्त के पिता को जानता था. उनका काम था खाने के बाद आम काटना। कभी-कभी वह अपनी पत्नी की प्लेट में आम का एक टुकड़ा ज्यादा रख देते थे। ये उनका 'आई लवयू' या 'आई ऐमसॉरी' कहने का तरीका था। यह वह जमाना था जब अपने प्यार का खुलेआम इजहार करने का चलन आम नहीं था।"


स्लो फूड

बरार का मानना है कि भोजन के लिए सांस्कृतिक और ईकोलॉजिकल सम्मान गायब हो चुका है। हर चीज दौड़ रही है। वह कहते हैं, "कभी कभी खाने को अकेला छोड़ना चाहिए ताकि वो बढ़ सके, पक सके और समय पर खाने के लिए तैयार हो सके। हड़बड़ी की जरूरत नहीं है।" वह कहते हैं कि खाना फटाफट, बहुत बड़ा और बहुत ज्यादा बनाने की हड़बड़ी में उसकी शुद्धता और सम्पूर्णता कहीं खो जाती है।

नीलेश मिसरा के फार्म हाउस 'स्लो' पर खाना बनाते समय बरार एक पत्रकार और एक शेफ के बीच तुलना करते हैं। दोनों को चौकन्ना, अच्छा श्रोता और अपने दर्शकों की समझ होनी चाहिए। बातचीत के आखिर में वह कहते हैं, "अच्छा इंसान होना सबसे जरूरी है।" रणबीर स्वाद चखाने के लिए कटहल की सब्जी से भरी एक चम्मच नीलेश मिसरा की तरफ बढ़ाते हैं।

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अनुवाद: संघप्रिया मौर्य

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