आवारा पशुओं के गोबर से बनेगी बिजली

Update: 2016-03-04 05:30 GMT
gaon connection, गाँव कनेक्शन

दिति बाजपेई

लखनऊ। आवारा घूमने वाले पशु अब गाँवों के घरों को रोशन करेंगे। राजधानी लखनऊ के पशु जीवाश्रय में इन्हीं जानवरों के गोबर और मूत्र से बनाई गई बिजली से दर्जनों गांवों को बिजली देने की तैयारी है। गोबर से तैयार की गई ये बिजली काफ़ी सस्ती भी होगी।

जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर नादरगंज के गौशाला जीवाश्रय में जल्द ही बॉयोगैस प्लांट की शुरुआत होने जा रही है। इससे गौशाला में तो बिजली और खाना बनाने के लिए गैस मिलेगी ही साथ ही आस-पास के गाँव भी रोशन होंगे। 

जीवाश्रय गौशाला के सचिव यतिंद्र त्रिवेदी ने बताया, "फरवरी के अंत तक इस प्लांट को शुरू कर दिया जाएगा। इससे आस-पास के दस-बारह गाँवों और फैक्ट्रियों को बिजली कम दरों पर मिल सकेगी। दो साल पहले इन बायोगैस प्लांट को बनाने की शुरुआत की गई थी। बिजली के आने वाले खर्च के बारे में त्रिवेदी बताते हैं, "हर महीने चार लाख रुपए का बिजली का बिल गौशाला में आता था, जिसको भरने में भी दिक्कत आती थी। इसके लगने से काफी सुविधा होगी। गौशाला में 225 केवीए का बॉयोगैस प्लांट लगाया जाएगा। इससे हर दिन बिजली मिल सकेगी। गौशाला में करीब 950 सांड और बैल हैं और करीब 1150 गाएं हैं। इनसे रोज 30 टन गोबर मिलता है। पहले इस गोबर की कोई व्यवस्था नहीं थी लेकिन प्लांट बनने से इसे रोज उपयोग में लाया जाएगा।

बॉयोगैस (मीथेन या गोबर गैस) मवेशियों के उत्सर्जन पदार्थों को कम ताप पर डाइजेस्टर में चलाकर माइक्रोब उत्पन्न करके बनाई जाती है। जैव गैस में 75 प्रतिशत मिथेन गैस होती है जो बिना धुंआ पैदा किए जलती है। लकड़ी, चारकोल और कोयले से उलट यह जलने के बाद राख जैसे कोई उपशिष्ट भी नहीं छोड़ती है।

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