मध्य प्रदेश के इस मंदिर में होती है श्रीराम के चरणों की पूजा

अयोध्या में श्री राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद देश दुनिया में लोगों की श्रीराम और उनके मंदिरों को जानने की जिज्ञासा अचानक बढ़ गई है। ऐसा ही एक मंदिर मध्य प्रदेश के विदिशा में बेतवा नदी के किनारे है, जिसे चरणतीर्थ कहते हैं। मान्यता है यहाँ पर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण पधारे थे।

Update: 2024-01-30 10:38 GMT

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 60 किलोमीटर दूर विदिशा में एक प्राचीन मंदिर आसपास के गाँवों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।

अयोध्या में रामलला की मूर्ति स्थापित होने के बाद आसपास के गाँवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ जुटने लगे हैं।

स्थानीय निवासी और मंदिर के पुजारी का कहना है कि त्रेतायुग में श्रीराम के चरण यहाँ पड़े थे इसलिए इस जगह का नाम रामचरण तीर्थ भी है।

बेतवा नदी के किनारे टापू पर बने इस मंदिर में आपको श्री राम जी की चरण पादुका भी देखने के लिए मिलेगी।

मंदिर के पुजारी संजय पुरोहित गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "यह बहुत प्राचीन मंदिर है और इसका आकार शंकर जी की पिंडी के आकार के समान है, इस जगह के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहाँ पर श्री राम जी के चरण पड़े थे; इसलिए इस जगह को चरण तीर्थ के नाम से जाना जाता है।"


"यहाँ महाराष्ट्रीयन शैली के दो मंदिर हैं, उस जगह को चरणतीर्थ कहा जाता है, चरणतीर्थ पर शिवजी के दो विशाल मंदिर भी बने हैं, इनमें से एक मंदिर मराठों के सेनापति और भेलसा के सूबा खांडेराव अप्पा जी ने सन 1775 में बनवाया था; दूसरा मंदिर उनकी बहन ने बनवाया था।" संजय पुरोहित आगे कहते हैं," दोनों मंदिरों में शिवलिंग स्थापित किए गए थे, मुगलों के आक्रमण से परेशान विदिशा नगर के लोगों के लिए ग्वालियर स्टेट के सूबेदार अप्पा खंडेराव द्वारा यहाँ मंदिर का निर्माण कराया गया।"

इस मंदिर से जुड़ी लोक मान्यता है कि त्रेतायुग में श्रीराम और माता सीता लक्ष्मण जी के साथ अत्रि ऋषि के कहने पर बेतवा नदी के तट पर पहुँचे थे। यहाँ उन्होंने पाँच ऋषियों के सहयोग से अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। मंदिर के पुजारी का दावा है कि इसका उल्लेख वृहद पुष्कर महात्म्य नाम के ग्रंथ में भी मिलता है।

पुरोहित के अनुसार वृहद पुष्कर महात्म्य के 21 वें अध्याय में जब वेदव्यास के पुत्र सूतजी से ऋषियों ने पूछा कि श्रीराम ने कहाँ-कहाँ श्राद्ध किया, तब उन्होंने बताया कि श्रीराम भार्या सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ चित्रकूट से चलकर अत्रि ऋषि के आश्रम पहुँचे और उन्होंने पिता का तर्पण करने के लिए पुण्य क्षेत्रों के बारे में पूछा। तब ऋषि ने उन्हें बताया कि विदिशा में पिता (ब्रह्मा) द्वारा निर्मित एक उत्तम और सब फल देने वाला तीर्थ है, जहाँ दो प्रसिद्ध मर्यादा पर्वत है, वहाँ पिंडदान करने से पितर तृप्त होते हैं।

अत्रि ऋषि को सुनकर श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ ऋक्षवान पर्वत वर्तमान में (लुहांगी पहाड़ी) विदिशा नगरी और चमकती नदी (बेतवा) को पार कर यज्ञ पर्वत (ऐतिहासिक पर्यटन स्थल उदयगिरि पहाड़ी) के पास पहुँचे। यहाँ मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम था। राम ने ऋषिवर से पिता के लिए पिंडदान करने की बात कही, तब ऋषि के कहने पर दूसरे दिन जमदाग्नि, भारद्वाज, लोमश, देवरात और शमिक्ति ऋषियों और मुनियों ने राजा दशरथ का विधि-विधान से चरणतीर्थ घाट पर श्राद्ध कराया था।


स्थानीय निवासी सुरेश राजपूत गाँव कनेक्शन से कहते हैं, "ये मंदिर खास है, क्योंकि इस जगह भगवान राम का यहाँ दो बार आना हुआ है ; रामायण में जिन ऋषि का उल्लेख है और जिन ऋषि के आश्रम में राम के जाने की बात कही गई है वह यही है।"

वो आगे कहते हैं, "मंदिर हर साल बाढ़ में डूबता है इसके बावजूद कोई क्षति नहीं पहुँची; यहाँ मकर संक्रांति के बाद से बेतवा घाट पर लगभग एक माह मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु और तर्पण करने के लिए लोग पहुँचते हैं , इस समय कुछ ज़्यादा ही भीड़ है।"

यहाँ पर 123 साल से रामलीला का मंचन हो रहा है। मंदिर पर दर्शन करने आए श्रद्धालु बृजेश शास्त्री कहते हैं, "मैं बचपन से यहाँ आ रहा हूँ, उससे भी पहले से इस मंदिर की बहुत मान्यता बताई गई है कि भगवान यहाँ खुद आए और उनके चरण यहाँ पड़े है।"

वहीं विदिशा के सामाजिक कार्यकर्ता अमित रायकवार बताते हैं, "अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भगवान राम से जुड़े हुए विदिशा के चरण तीर्थ मंदिर पर श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, भगवान के दर्शन, आरती और चढ़ावे में भी इज़ाफ़ा हुआ है।"

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