आपदा के मददगार: पहले खुद के पैसे से, फिर दूसरों से मांगकर दर्जनों कॉलोनियों में कराया सैनेटाइजेशन

आपदा के मददगार सीरीज में ऐसे लोगों की कहानी हैं जो कोरोना की आपदा में लोगों की मदद को आगे आए हैं। जेपी द्विवेदी, जो अपनी परचून की दुकान से पैसा निकालकर सैनेटाइजेशन काम शुरु किया, फिर लोगों की मदद मिली, अब तक वो दर्जनों कॉलोनियों में ये काम करवा चुके हैं।

Update: 2021-05-28 10:58 GMT

आपदा के मददगार सीरीज में उन लोगों की कहानियां हैं जिन्होंने कोरोना के दौरान लोगों की किसी तरह से मदद की है।

लखनऊ ( उत्तर प्रदेश)। "कोरोना में आसपास के लोग मर रहे थे। समझ नहीं आ रहा था कि कैसे लोगों की मदद करू। मेरे पास तो ये भी क्षमता नहीं है कि मैं किसी को अस्पताल में भर्ती करा सकूं या किसी को आक्सीजन दिल पाऊं या किसी को इलाज के लिए पैसे दें दूँ। लेकिन मैं कुछ करना चाहता था फिर सैनेटाइजेशन का काम समझ में आया।" जेपी द्विवेदी कहते हैं।

जेपी (27 वर्ष) उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पिछड़े इलाके थाना मडियांव के पास गायत्री नगर में रहने वाले छोटे से दुकानदार हैं। लेकिन कोरोना में उन्होंने ऐसा काम किया कि उन्हें लोगों की खूब वाहवाही मिल रही है।

लखनऊ में ऐसी सैकड़ों कॉलोनिया और हजारों मुहल्ले हैं जिन्हें स्थानीय स्तर पर लोगों ने बसाया है। ये नगर निगम के दायरे में तो आ गई हैं लेकिन यहां साफ-सफाई की सुविधाएं न के बराबर हैं। कोरोना जब लखनऊ में फैला तो यहां भी लोग भी संक्रमित हो रहे थे, उनकी मौतें हो रही थीं

जेपी कहते हैं, "मुझे कोरोना बीमारी की कोई समझ नहीं है। लेकिन मुझे लगा की कॉलोनी और आसपास के वॉर्डो में साफ सफाई और सैनिटाइजेशन अगर सही तरीके से हो जाए तो बहुत सी बीमारियों से बचाव जरुर हो जायेगा। लेकिन मेरे पास पैसा, गाड़ी कुछ नहीं है और न ही मैं ज्यादा कुछ कमा पाता हूं। लेकिन मुझे लगा ये काम करना चाहिए।"

जेपी के मुताबिक सैनेटाइजेशन के लिए उन्होंने अपनी छोटी सी किराना की दुकान के गल्ले (कैश बॉक्स) में रखे पूरे साढ़े तीन हजार रुपए निकाले और अपने एक परिचित ट्रैक्टर मालिक दिवाकर के पानी वाले टैंकर अपनी कॉलोनी और आसपास सैनेटाइजेशन शुरु करा दिया। लेकिन वो तीन दिन में खत्म हो गया।

जेपी आगे बताते हैं, "सैनिटाइजेशन के काम शुरू होने के कारण मेरी आत्मग्लानि कुछ कम हुई। मैं खुद को फिर से जिन्दा समझ रहा था, लेकिन पैसे न होने की वजह से जब मुझे लगा कि ये बंद हो जायेगा तो मैंने हाथों में कटोरा ले लिया और लोगों से मदद मांगनी शुरु की।"

वो आगे कहते हैं, "सबसे पहले दूसरे वॉर्ड के पार्षद अमित मौर्या ने मदद की। स्थानीय विधायक डॉ नीरज बोरा ने भी मदद की। नगर आयुक्त लखनऊ से मदद मांगी तो उनके यहां से भी सैनिटाइजर मिल गया और मेरा काम शुरू हो गया। बाद में फिर कमी हुई तो सीएम योगी के मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी मदद मांगी फिर क्या भगवान ने सुन लिया और अपना काम चल गया।"

जेपी के मुताबिक उन्होंने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान करीब एक लाख की आबादी में सैनेटाइजेशन करवाया है।

लगभग एक लाख आबादी के बीच हो गया सैनिटाइजेशन

जे.पी. हँसते हुए बताते है, "मांगकर इकट्ठा किये गये नौ टैंकरों से अब तक नायक नगर , प्रीती नगर , श्रीनगर कॉलोनी, मडियांव कोतवाली, नौबस्ता, गायत्री नगर प्रथम, दितीय और तृतीय, प्रभात पुरम, राम नगर, केशव नगर पुलिस चौकी, केशव नगर कॉलोनी, रामलीला मैदान, हरिओम नगर, छोटा खदान बड़ा खदान, अन्ना पुलिया मार्किट आदि जगहों पर सैनिटाइजेशन का काम पूरा हो चुका है। सभी क्षेत्रों को मिला लें तो करीब एक लाख की आबादी यहां रहती होगी।"

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जनपद बस्ती के निवासी जे. पी. द्विवेदी का परिवार करीब 20 साल पहले लखनऊ आ गया था। शिपा पीजी कॉलेज से ग्रेजुएशन तक की शिक्षा प्राप्त जे. पी. अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े हैंI घर चलाने के लिए वो घर में ही छोटी सी किराना की दुकान चलाते हैं।

जेपी के मुताबिक उन्होंने पिछले साल कोरोना लॉकडाउन में भी अपनी समर्थ के अनुसार लोगों की मदद की थी। लेकिन इस बार की स्थिति भयावह थी।

"मेरे पास पैसे नहीं थे तो मुझे लगा कि बाहर निकल कर लोगों की हाथ पैरों से जो मदद की जा सकती है वह शुरू कर देनी चाहिए। किसी का सिलेंडर पहुँचाना है, किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होना है, कुछ नहीं कर पाए तो यह शुरू कर दिया।" जेपी कहते हैं।

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सैनेटाइजेशन के अलावा जेपी ने अन्य माध्यमों से भी लोगों की मदद। जिसमें सबसे अहम था लोगों के पास तक पहुंचना और उनकी जरुरत को पूरा करना।

बड़े इमाम बाड़ा निवासी अब्बास गांव कनेक्शन को बताते हैं, "मुझे कोरोना हो गया था, मुझे ऑक्सीजन की जरूरत थी तो मैंने जेपी भाई को फोन किया, जिसके बाद वे मुझसे मिलने आए। कोरोना बीमारी जानने के बाद भी उनका मुझसे मिलने आना ही अपने आप में बड़ी बात थी। मेरी मदद करने के लिए जेपी ने बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी जी से बात की और उन्होंने मेरे लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था कराई।"

जन सहयोग और प्यार दोनों मिला

जेपी बताते है, "इस काम में घर वालों के साथ जन सहयोग मिल रहा है। मेरी दुकान में करीब पांच सौ मास्क थे। एक हजार मास्क मेरे बहनोई ने दिए और पांच सौ मास्क मेरे छोटे भाई ने दिए। ये ढाई हजार मास्क झुग्गी में जिन लोगों के पास मास्क लेने के पैसे नहीं है या जो लोग मास्क की उपयोगिता नहीं समझते उन्हें समझाया और बांटा।"

जेपी के सहयोगी राजकुमार राय कहते है ," जेपी की वजह से मोहल्ले में लोगों ने निकल कर एक दूसरे की मदद करने का काम शुरू किया है। खुद मैं भी जितना संभव हो पाता है उनका सहयोग करने का प्रयास करता हूं। ये बुरा दौर है, लेकिन मुझे ख़ुशी होती है कि जेपी जैसे युवाओं आगे बढ़कर लोगों की मदद कर रहे और इसी से समाज बनता है।"

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