‘आशा-एएनएम करें ज्यादा काम तो बचेंगी लाखों बच्चों की जानें’

Update: 2017-02-27 14:41 GMT
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा, स्वास्थ्य कार्यकत्रियों को बढ़ाना होगा काम का दायरा

इंडिया स्पेंड

लखनऊ। भारत में जच्चा-बच्चा की मौतों की संख्या कम करने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को अपनी कार्यप्रणाली में बदलना पड़ेगा। प्रसूताओं से उन्हें लगातार मिलना पड़ेगा। ये नए निर्देश जारी किए हैं डब्ल्यूएचओ ने।

डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में भारत 3 लाख महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं के कारणों से हुई है जबकि 27 लाख बच्चों की मृत्यु जीवन के पहले 28 दिन के भीतर हुई है। विश्व स्तर पर 26 लाख बच्चों की मौत जन्म के समय हुई।

देश-दुनिया से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप

विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के मुताबिक अगर स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रसूताओं से मिलने की आवृति दोगुनी कर दें तो मृत प्रसव और गर्भावस्था की जटिलता के जोखिम को कम किया जा सकता है। वहीं इसके इतर गाँवों में तैनात एएनएम और आशा बहुएं केवल प्रसव के समय ही प्रसूताओं से मिलने जाती हैं क्योंकि हर प्रसव के लिए उन्हें सरकार से प्रोत्साहन राशि मिलती है।

जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर बीकेटी ब्लॉक के अर्जुनपुर गाँव के प्रधान यशपाल सोनवाली (39 वर्ष) बताते हैं, “हमारे गाँव में जितनी भी आशा बहुएं और एएनएम काम करती है वो अपना काम निष्ठा से नहीं करती।” वो आगे बताते हैं, “आशा बहू ज्यादातर डिलीवरी के समय आती हैं क्योंकि उस समय में ज्यादा कमीशन मिलता है। बाकी टाइम वो गर्भवती महिलाओं के पास नहीं जाती हैं। आधी से ज्यादा गर्भवती महिलाओं कि जांच तक नहीं होती है। ”

आशा बहुओं और एएनएम को गाँवों में इसलिए नियुक्त किया जाता है ताकि प्रसूताओं की प्रसव पूर्व सभी जांचें हो सकें और सुरक्षित प्रसव हो सके लेकिन ये स्वास्थ्य कार्यकर्ताएं यदा-कदा ही प्रसूताओं के पास पहुंचती हैं। रुदौली गाँव की रहने वाली आशा सुषमा देवी (34 वर्ष) बताती है, “हमारे पास तीन मजरे हैं और उसमें 16 महिलाएं गर्भवती हैं, हर बार हमें साधन नहीं मिलते हैं, इसलिए कभी कभी ऐसा होता है कि हम गर्भवती महिलाओं के साथ अस्पताल नहीं जा पाते।”

उन्होंने आगे बताया कि लेकिन डिलीवरी के समय हम उनके साथ ही रहते हैं, हम रात भर मरीज के साथ रुकते हैं।”

नवंबर 2016 में, सरकार ने प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान का शुभारंभ किया था। इस योजना का उदेश्य गर्भावस्था के दौरान हर महीने के नौवें दिन पर स्वतंत्र और व्यापक देखभाल प्रदान करना है। गर्भवती महिलाओं को दूसरी या तीसरी तिमाही में अल्ट्रासाउंड, रक्त और मूत्र परीक्षण सहित सरकारी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं नि:शुल्क मिलती हैं। ये सुविधाएं प्रसव से पहले की देखभाल के हिस्से हैं।

चिनहट ब्लॉक के मल्हौर में स्थित सामुदायिक केंद्र की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव बताती हैं, “यहां पर गर्भवती महिलाएं अकेले ही आती हैं, बहुत कम ऐसा होता है कि उनके साथ आशा बहुएं जांच कराने के लिए आई हूं। जब डिलीवरी होती है उस समय आशा बहू आती है और कहां करती है कि हमारा नाम चढ़ा दीजिए हमारा नाम लिख दीजिए, क्योंकि हमें पैसा मिलने वाला है। बाकी टाइम वो आशा बहुओं उनके साथ नहीं रहती हैं।”

इंडियास्पेंड के अनुसार, वर्ष 1990 से 2015 के बीच, बाल मृत्यु दर में 62 फीसदी कमी होने के बावजूद, वर्ष 2015 में, दुनिया के किसी भी हिस्से की तुलना में भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों (करीब 13 लाख) की ज्यादा मृत्यु हुई है। साथ ही, किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में जन्म के साथ मौत हो जाने वाले बच्चों की संख्या भी सबसे ज्यादा है। वर्ष 2015 में 26 फीसदी नवजात शिशुओं की मौत और 303,000 के पांचवे हिस्से के करीब मातृ मृत्यु हुई है।

स्वास्थ्य सामुदायिक केन्द्र में इलाज कराने आई गर्भवती अनीता रावत (28 वर्ष) बताती है, “ये मेरा दूसरा बच्चा है, आज तक मेरे गाँव की रहने वाली आशा बहू मेरे इलाज या जांच के लिए कभी नहीं आई है। जबकि मेरे घर से थोड़ी दूर पर उसका घर है। गाँव में बहुत सी महिलाएं हैं, जो अपना इलाज परिवार वालों के साथ कराती है।” जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर रमपुरवा गांव की रहने वाली आशा बहू गीता देवी (38 वर्ष) बताती हैं, “हर बार गर्भवती महिलाओं को साथ ले जाने में बहुत समस्या होती है, क्योंकि कभी कभी हम लोगों को साधन नहीं मिलते हैं, जिसकी वजह से हर बार जांच कराने नहीं जा पाते हैं।”

गर्भवती महिलाओं के साथ कम से कम आठ प्रसव पूर्व जांच

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक प्रसव पूर्व देखभाल के लिए चार जांच की तुलना में आठ जांच से प्रसवकालीन मौतों के आंकड़े प्रति 1,000 जन्मों पर आठ तक लाए जा सकते हैं। डब्ल्यूएचओ में मातृ, नवजात शिशु, बाल और किशोर स्वास्थ्य विभाग के निदेशक एंथोनी कॉस्टेलो कहते हैं,“गर्भावस्था के दौरान सभी महिलाओं और उनके स्वास्थ्य प्रदाताओं के बीच और अधिक और बेहतर गुणवत्ता वाले संपर्क से समस्या के समाधान में सुविधा होगी। समय पर जोखिम का पता लगने से जटिलताएं कम होती हैं, और स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं पर ध्यान जाता है। पहली बार जो मां बन रही हैं, उनके लिए प्रसव पूर्व देखभाल महत्वपूर्ण है। इससे वे भविष्य में भी प्रसव पूर्व देखभाल की जरूरत को समझेंगी।”

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।