कम पेंशन में गुज़ारा नहीं, काम करने को मजबूर बुज़ुर्ग

Update: 2017-04-29 13:28 GMT
कम पेंशन मिलने की वजह से बुज़ुर्ग मजदूरी करने को मजबूर।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क/इंडिया स्पेंड

लखनऊ। देशभर में बुजुर्गों के लिए चलायी जा रही पेंशन योजनाओं का उन्हें लाभ नहीं मिल पाता और जिन्हें ये पेंशन मिलती भी है वो इतनी कम होती है कि वो मजदूरी करने को मजबूर हैं।

‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण’ कार्यालय द्वारा आयोजित रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण 2011-12 के 68 वें दौर के अनुसार, भारत के एक तिहाई बुजुर्गों से अधिक (करीब 38 फीसदी) का काम करना जारी है। जनगणना 2011 में देश में 10.3 करोड़ बुजुर्गों हैं और भारत में वेतन पर काम करने वाले बुजुर्गों की संख्या 3.9 करोड़ है। यूपी में अभी बुजुर्गावस्था पेंशन के रूप में पांच सौ रुपए दिए जाते हैं, हालांकि सरकार ने इसे हजार रुपए प्रति माह करने का आश्वासन दिया है।

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लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी. दूर बीकेटी ब्लाक की असनहां गाँव की रामकली देवी (60 वर्ष) बताती हैं, “मेरे बेटे और पति की मौत हो गई है। इतने दिन से प्रधान से कह रहे हैं कि मेरी विधवा पेंशन बनवा दो लेकिन प्रधान ने एक बात भी नहीं मानी। दूसरे के खेतो में मजदूरी करती हूं। जिससे घर का खर्च चलाती हूं। जब मनरेगा का काम होता है तब वहां भी काम करती हूं।

विश्व भर में सरकार विभिन्न कारणों से पेंशन देती है। हालांकि, वृद्धावस्था पेंशन के पीछे तर्क यह है कि उनकी जिंदगी को आसान बनाया जाए, जिससे उन्हें कहीं काम न करना पड़े। देश में सरकारी नौकरी करने वाले एक उम्र में तो रिटायर होकर पेंशन पाता है। लेकिन एक बड़ा तबका कभी भी रिटायर नहीं होता उसे अपना खर्च चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है।

कई ऐसे भी बुजुर्ग हैं, जिन्हें पेंशन तो मिलती है, लेकिन वो इतनी कम होती है कि उनका खर्च चलाना भी मुश्किल होता है। हरदोई जिले के संडीला तहसील भरावन गाँव के रहने वाले सुखलाल यादव (62 वर्ष) बताते हैं, “पेंशन का पैसा हर महीने नहीं मिलता है, तीन-चार महीनों में पेंशन आती है, जिससे दस दिन का भी खर्च नहीं चलता, हमारे पास एक बीघा खेत है बाकी बटाई पर लेकर खेती हैं, एक बेटा है वो शहर में मजदूरी करता है।”

कानपुर देहात जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर मैथा ब्लॉक के बैरी दरियाव गाँव में रहने वाले मूलचंद्र कुशवाहा (60 वर्ष) का कहना है, “हम लोगों को इतनी कम पेंशन मिलती है, जिससे अपने अकेले का भी खर्चा नहीं चल पाता है, हम लोग या तो खेतों में मजदूरी करते हैं, नहीं तो मनरेगा में।”

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