महाराष्ट्र: उस्मानाबाद में पानी से लबालब बांध देखकर किसानों ने खेती में लगाए लाखों रुपए, अब खेत में सूख रही फसल

महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में इस बार अच्छी बारिश होने पर डैम तालाब भर गए थे, पानी देखकर किसानों ने सब्जियों और फलों की खेती में लाखों रुपए लगाए लेकिन अब उन्हें बांध से पानी नहीं मिल पा रहा है, जिसके चलते उनकी फसलें सूख रही हैं।

Update: 2020-10-29 11:26 GMT

उस्मानाबाद (महाराष्ट्र)। अपने पास गांव के पास के डैम को पानी से भरा देखकर युवा किसान देवराव नलावडे करीब 2 लाख रुपए खर्चकर जलगांव के केले की पौध लाए थे। बांध से खेत तक पाइप लाइन बिछाई थी। लेकिन इससे पहले की उनके खेत में केले की रोपाई हो पाती। निचले इलाके के गांवों को खतरे से बचाने के लिए नाले के एक हिस्से को काटकर छोड़ दिया गया। पानी नदी में बह गया और पाइप लाइन में पानी का इंतजार रहे देवराव के खेत की पौध रखी रखी सूख रही है।

देवराव नलावडे (34 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताते हैं, "वैसे तो हमारा इलाका (मराठवाड़ा) अक्सर सूखा ही रहता है। इस बार करीब 5 साल बाद पानी भरा तो हमने केले की खेती करने की सोंची। 400 किलोमीटर जलगांव से पौध लाए, बांध से खेत तक 2 किलोमीटर से ज्यादा अपनी पाइप लाइन बिछाई। इन सबमे करीब 4 लाख रुपए खर्च हुए। लेकिन जब रोपाई करने का नंबर आया तो बांध की एक हिस्से को पानी निकाल दिया गया। हम किसानों को पानी नहीं मिल रहा है।"

मराठवाड़ा में ज्यादातर सूखा रहता है इस बार अच्छी बारिश होने से किसान खुश थे। डैम में भी पानी था तो कोई किसान लाखों रुपए खर्च कर केले की पौध लाया कोई अमरूद की। क्योंकि सबको लगता था पानी है तो सिंचाई वाली खेती करेंगे आमदनी होगी लेकिन बांध का पानी छोटे जाने से सब बर्बाद हो गया। देवराज नलावडे, किसान

वैसे तो हमारा इलाका (मराठवाड़ा) अक्सर सूखा ही रहता है। इस बार करीब 5 साल बाद पानी भरा तो हमने केले की खेती करने की सोंची। 400 किलोमीटर जलगांव से पौध लाए, बांध से खेत तक 2 किलोमीटर से ज्यादा अपनी पाइप लाइन बिछाई। इन सबमे करीब 4 लाख रुपए खर्च हुए। लेकिन जब रोपाई करने का नंबर आया तो बांध की एक हिस्से को पानी निकाल दिया गया। हम किसानों को पानी नहीं मिल रहा है।"

सूखे मराठवाड़ा में इस साल जोरदार बारिश हुई है। ज्यादातर जल परियोजनाएं, मिनी डैम, तालाब पानी से लबालब हैं। महाराष्ट्र के उस्मानाबाद में भी सितंबर में ही ज्यादातर तालाब भर गए थे। मुंबई से करीब 350 किलोमीटर दूर उस्मानाबाद जिले के परंडा तालुका के खंडेश्वरी गांव 10 लाख मिलियन क्यूबिक पानी भंडारण क्षमता वाली खंडेश्वरी मध्यम परियोजना है। करीब 40 साल पुराने इस मिनी डैम में 5 साल बाद भरपूर पानी भरा था। अच्छी बारिश के चलते 20 सितंबर को डैम पूरी तरह भर गया था। खंडेश्वरवाडी समेत 16 गांव पानी के लिए इस डैम पर सीधे तौर पर निर्भर हैं। डैम भरा देखकर किसानों ने सिंचाई पर आधारित फसलों पर जोर दिया। कोई जलगांव से केले लाया तो कोई किसान विशाखापट्टनम से अरुमद की पौध तो कई किसानों ने सब्जियों की खेती शुरु की थी।

लेकिन 27 सितंबर को इस डैम का एक बाजू (हिस्सा) दरकने लगा जिसके बाद अनहोनी के डर से सिंचाई विभाग ने खुद ही डैम को काटकर पानी निकाल दिया। डैम से पानी छोड़े जाने से अऩहोनी का खतरा तो टल गया लेकिन खंडेश्वरवाड़ी समेत कई गांवों में किसानों की फसलों पर संकट मंडराने लगा है।

महाराष्ट्र में सिंचाई आधारित नहर, नलकूप आदि सुविधाएं नहीं हैं। इसलिए ज्यादातर किसान भूमिगत जल या फिर डैम-तालाब आदि के पास रहने वाले किसान लंबी-लंबी पाइप लाइन बिछाते हैं। बांध-तालाब के पास बिजली की मोटर या पंपिंग सेट रखते हैं, जिससे जरिए पानी खेतों तक जाता है। खेती के लिए के लिए किसानों के कई बार 02 से 03 लाख रुपए सिर्फ पाइपलाइन में खर्च हो जाते हैं।

खंडेवश्वाड़ी गांव के ही किसान भारत टिटवे ने कुछ साल पहले दो लाख से ज्यादा रुपए लगातर डैम से अपने खेत तक पाइप पाइन बिछाई थी और आंध्र प्रदेश से डेढ़ लाख रुपए के अमरुद (पेरू) की पौध लाए थे, ड्रिप इरीगेशन और दूसरे खेत के कार्यों में अलग से लाखों रुपए खर्च किए थे,जिसमें बड़ा हिस्सा कर्ज़ लिया था, क्योंकि पाइप लाइऩ आदि बिछाने के लिए बैंक कर्ज़ नहीं देती। फसल सूखती देख वो अब परेशान हैं।

किसान देवराज नलावडे अपने केले की पौध के साथ जिनके खेत में रोपाई नहीं हो पा रही हैं क्योंकि खेत तक पानी नहीं पहुंच पा रहा। फोटो-सुषेन जाधव, उस्मानाबाद

भारत टिटवे कहते हैं, "एक एकड़ की अमरूद की बाग मेरी है आसपास के किसानों की बात करें तो 50 एकड़ अमरूद की बाग होंगी। 5 साल बाद तो डैम भरा था, डैम से पानी इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि प्रशासन ने समय रहते उसकी मरम्मत नहीं की। अब उसका खामियाजा हम किसानों को भुगनता पड़ रहा है। कुछ दिन पानी और नहीं मिला तो हमें हरा-भरा बाग उखाड़ना पड़ेगा।"किसानों का आरोप है पानी ज्यादा होते देख प्रशासनिक अधिकारियों ने 29 सितंबर को ही पानी छोड़ना शुरु कर दिया और किसानों के वहां जाने पर रोक लगा दी। अधिकारी किसानों पाइन लाइऩ से पानी भी लेने नहीं दे रहे हैं।

उस्मानाबाद जिले के कलेक्टर कौस्तुभ दिवेगावकर ने फोन पर बात की। कौस्तुभ दिवेगावकर कहते हैं, "40 साल पुराने इस बांध (मध्यम परियोजना) की कैपेसिटी 10 मिलियन क्यूबिक मीटर है। ज्यादा बारिश से बांध के एक तरफ का हिस्सा कमजोर हो गया था। अगर वो ढह जाता तो निचले इलाके में जानमाल का काफी नुकसान हो सकता था, इसलिए एहतियातन 4 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी छोड़ा गया। ये आधा सच है कि किसानों को पानी नहीं मिल रहा है। किसानों को पानी मिलेगा लेकिन कम मिलेगा।"

कलेक्टर दिवेगावकर आगे कहते हैं, " आप को बता दें कि 2 अक्टूबर के बाद यहां 15 अक्टूबर को जोदार बारिश हुई, जिसमें परंडा तालुका में 4 बड़े तालाब ब्रेक कर गए थे। यहां तक कि खंडेश्वरवाड़ी के निचले इलाके में रहने वाले 4 गांवों में से एक गांव को हमें रिलोकैट (विस्थापित) करना पड़ा था। किसानों की जो समस्याएं हैं मैं उन्हें व्यक्तिगत तौर पर दिखवाउंगा।"

किसानों को पानी नहीं मिल रहा है या आगे नहीं मिलेगा, ये आधा सच है। बांध का पानी निचले इलाके के गांवों की सुरक्षा के मद्देनजर छोड़ा गया क्योंकि बांध टूटने पर भारी नुकसान हो सकता था, 10 मिलियन क्यूबिक मीटर वाले डैम में अभी भी 6 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी है और किसानों को नियोजन के साथ दिया जाएगा।- कौस्तुभ दिवेगावकर,कलेक्टर, उस्मानाबाद 

कौस्तुभ दिवेगावकर कहते हैं, "40 साल पुराने इस बांध (मध्यम परियोजना) की कैपेसिटी 10 मिलियन क्यूबिक मीटर है। ज्यादा बारिश से बांध के एक तरफ का हिस्सा कमजोर हो गया था। अगर वो ढह जाता तो निचले इलाके में जानमाल का काफी नुकसान हो सकता था, इसलिए एहतियातन 4 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी छोड़ा गया। ये आधा सच है कि किसानों को पानी नहीं मिल रहा है। किसानों को पानी मिलेगा लेकिन कम मिलेगा।"

जिला प्रशासन के मुताबिक डैम को लेकर काम जारी है। सिंचाई विभाग को ये काम सौंपा गया है कि वो अपनी रिपोर्ट भेजे जिससे बांध को पहले जैसी स्थिति में लाने का काम किया जा सके।

सितंबर के महीने से रुक – रुक कर लगातार बारिश का सामना कर रहे मराठवाड़ा समेत महाराष्ट्र के ज्यादातर हिस्सों में 8 अक्टूबर के बाद भारी बारिश हुई। जिसके चलते राज्य के कई हिस्सों में न सिर्फ बाढ़ के हालात बने खरीफ की फसलों को भी कापी नुकसान पहुंचा। 8 से 14 अक्टूबर के बीच भारत मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार 19.3 मिलीमीटर (मिमी) की सामान्य बारिश के मुकाबले, राज्य में 44.5 मिमी बारिश हुई है।

महाराष्ट्र के मराराष्ट्र और विदर्भ में देश के सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त इलाकों में आते हैं और यहीं पर सबसे ज्यादा आत्महत्याएं भी होती हैं। लेकिन पिछले दो वर्षों से यहां पर सितंबर के महीने में अतिवृष्टि का सामना करना पड़ा रहा है। एकाएक होने वाली बारिश किसानों को फायदे की जगह नुकसान पुहंचा जाती है। किसान आत्महत्याओं को रोकने के लिए पूर्व की देवेंद्र फडणवीश सरकार ने 550 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया था, जिससे किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए कई योजनाएं तैयार की थीं, जिसमें सिंचाई अहम थी लेकिन जमीन पर काम न के बराबर हुआ।

खंडेश्वरवाड़ी परियोजना (मध्यम आकार की झील) जिसका एक बाजू (हिस्सा) कमजोर हो गया है। 

खंडेश्वरवाड़ी परियोजना के इलाकों के गांव के लोगों का कहना है बांध प्रशासन की गलती से जर्जर हुआ था क्योंकि इसका समय-समय पर निरीक्षण नहीं किया गया। किसानों की समस्या सिर्फ ये नहीं कि बांध में पानी कम हो गया है बल्कि अतिवृष्टि और बांध से पानी छोड़े जाने के चलते बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा तक नहीं मिला है।

किसान बापू सवासे कहते हैं, 'हम दोनों तरफ से मर चुके हैं। अधिकारी बर्बाद फसलों के लिए पंचनाना (लिखापढ़ी) नहीं कर रहे। अब जो फसलें हैं उनके लिए पानी नहीं मिल रहा है। बाढ़ के डर से जिस गांव (उंडेगांव) को विस्थापित कराया गया था उन्हें भी सुविधाएं नहीं मिल रही है।"

किसानों का कहना है पिछले दिनों आई बाढ़ और पानी छोड़े जाने से फसलों को नुकसान हुआ लेकिन तहसील प्रशासन इसे मानने को तैयार नहीं है। पंरडा के तहसीलदार अनिलकुमार हेलकर ने गांव कनेक्शन को बताया, "खंडेश्वरी परियोजना के जल प्रवाह आसपास की फसलों को कोई नुकसान नहीं हुआ है। बंधे से पानी नाले के जरिये छोड़ा गया था जो नली नदी के माध्यम स सीना कोलेगांव में चला गया है।"

दीपा कांबले विस्थापित गांव की महिला किसान- एक महीने के बच्चे की मां दीपा कांबले ऐसे रहती है, जहां डेढ किलोमीटर से पानी लाना पडता हैं, कई बार यहां सांप भी निकल आते हैं। फोटो- सुषेन

विस्थापित गांव उंडेगाव की निवासी दीपा काबंले कहती है, " मेरा डेढ़ महीने का बच्चा है लेकिन हम यहां तंबू में रह रहे हैं। डेढ़ किलोमीटर दूर से हमें पीने के लिए पानी लाना पड़ता है। दूसरी कई समस्याएं हैं लेकिन कोई देखने वाला नहीं।"

मुआवजे और विस्थापित गांव की समस्या पर कलेक्टर कौस्तुभ दिवेगावकर ने गांव कनेक्शन से कहा, "किसान पानी के लिए परेशान हों, हम बचे पानी का ठीक से नियोजन करवाएंगे। दूसरा पंचनामे ( फसल बर्बादी) और जमीन अधिग्रहण का जो मामला है उसके लिए किसान अपने तहसील में एसडीओ (भूमि) कलेक्टर आफिस में डिप्टी कलेक्टर (भूमि अधिग्रहण संयोजक) से मिले उनके पास निपटारा हो जाएगा, बाकी किसानों की समस्याओं के लिए तहसीदार को मैं बोलता हूं और इसे व्यक्तिगत तौर पर भी देखता हूं।"

चिंचपुर (खुर्द) गांव के किसान वसंत गायकवाड़ कहते हैं, "ज्यादा बारिश और बाढ़ आने पर हम लोगों को खामियाजा भुगतना पड़ता है। तीन दिन पहले भी तहसील प्रशासन ने कहा कि सतर्क कहें। जागते रहें। बुजुर्ग और बच्चों को लेकर हम लोग अक्सर डरे रहते हैं। प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए।"


5-7 वर्षों से होने लगी थी अच्छी खेती

परंडा में पानी की कुछ सहूलियत होने पर बांध के आसापस के किसानों ने सब्जियों, केले, अमरूद, गन्ना आदि की खेती शरु कर दी थी। खंडेश्वरवाड़ी गांव के ही करीब 20 किसान आंध्र प्रदेश से अमरूद की पौध (1500-2000 पौधे) लाए थे। एक पौधे की कीमत 145 रुपए के आसपास थी। 100 से ज्यादा किसान यहां केले की खेती करते हैं। केले की एक पौध 16 रुपए की पड़ती है। 25 किसानों ने बांध से अपने खेत तक नई पाइपाइन बिछाई थी। एक पाइपलाइन पर औसतन दो लाख से ढ़ाई लाख रुपए का खर्च आता है। किसानों का कहना है अगर अकेले खंडेश्वरवाड़ी का ही देखा जाए तो बिना पानी के करोड़ों रुपए की खेती का नुकसान हो जाएगा।

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