अनोखी पहल : टमाटर बेचकर स्वच्छता का पाठ पढ़ा रहीं कर्नाटक की 45 वर्षीय शरणम्मा

Update: 2017-04-29 15:57 GMT
टमाटर देतीं शरणम्मा बकर।

लखनऊ। कर्नाटक के कोप्पल जिले के दानापुर गांव के ऐसे कई लोग हैं जिन्हें खुले में ही शौच करना पसंद है, क्योंकि सालों से वे ऐसा ही करते आ रहें हैं। इसी गांव में रहती हैं शरणम्मा बकर जो गांव में टमाटर बेचने का काम करती हैं। ये रोज लोगों के घर जाती हैं लेकिन टमाटर बेचने के इरादे से नहीं, लोगों को शौचालय के इस्तेमाल के प्रति जागरुक करने के लिए। इसकी वजह ये है कि राज्य में वे प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान की सबसे बड़ी प्रशंसक हैं। साथ ही वे चाहती हैं कि उनके गांव के साथ पूरा देश खुले में शैाचमुक्त बने।

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यूं तो स्वच्छ भारत अभियान के तहत लोगों को खुले में शौच करने से रोकने के लिए तरह-तरह के जतन किए जा रहे हैं। योजनाएं चल रहीं, अभियान के तहत प्रचार-प्रसार किया जा रहा लेकिन 45 साल की शरणम्मा का तरीका रोचक और अलग है। ऐसे ग्राहक जिनके घर में शौचालय बना हुआ है और वे उसका इस्तेमाल करते हैं, शरणम्मा उन्हें बोनस भी देती हैं। जी हां, टमाटर का बोनस। उन्हें एक किलो टमाटर अलग से फ्री में दिए जाते हैं। अपनी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखने के बावजूद शरणम्मा अपने लिए न सोचकर दूसरों के बारे में सोचती हैं। टमाटर बेचना ही उनकी आमदनी का एकमात्र ज़रिया है लेकिन फिर भी वो अपना नुकसान कराकर लोगों की मदद करना चाहती हैं।

मेरा देश तभी स्वच्छ हो सकता है जब हर एक घर में शौचालय होगा। मैं हमारे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन का समर्थन करते हुए उसे पूरा करने के लिए उस हर घर को एक किलो टमाटर फ्री में दे रही हूं जहां शौचालय है। इस बड़े सपने को पूरा करने का ये मेरा अपना तरीका है। 
शरणम्मा बकर

आज उनके दो महीने की कोशिश का ही नतीजा है कि गांव में अबतक 300 परिवारों ने सफाई की अहमियत समझी और अपने घरों में शौचालय बनवाया। इसके बावजूद कई ऐसे भी लोग हैं जो उनका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। शरणम्मा बताती हैं, “कई ग्रामीण कहते हैं कि वे खुले में ही जाकर शौच करेंगे क्योंकि यही वो इतने सालों से कर रहे हैं। मैं उनके इस रवैये को बदलना चाहती हूं इसलिे मैंने ऐसे घरों में जाना शुरू कर दिया है।”

टमाटर के साथ देती हैं स्वच्छता का मंत्र

लोगों के दरवाजे पर शरणम्मा इसलिए नहीं जातीं कि उन्हें टमाटर बेचकर अपना घर चलाना है, बल्कि लोगों को एक मंत्र देने के लिए जाती हैं, साफ-सफाई का मंत्र। वे लोगों से कहती हैं, “शौचालय एक आवश्यकता है, आपके पास होना चाहिए।” वे ऐसे लोगों के पास तो जाती ही हैं जिनके पास शौचालय नहीं हैं, साथ ही उनके पास भी जिनके पास है जिससे वे उन्हें प्रोत्साहित कर सकें। वे लोगों को खुले में शौच जाने से होने वाले खतरे के बारे में लोगों को आगाह करती हैं। साथ ही बताती हैं कि किस तरह वे इससे होने वाली जानलेवा बीमारियों से बच सकते हैं।

शरणम्मा को क्यों आया ऐसा विचार?

जब शरणम्मा को पता चला कि उनके गांव के लगभग 1,300 परिवार शौचालय से कोसो दूर हैं, इसके इस्तेमाल के लिए जागरुक नहीं हैं तो उन्होंने ये तरीका उपनाया। वे कहती हैं, “आज मेरे पास साफ-सुथरा शौचालय है लेकिन कुछ साल पहले जब ये नहीं था तो मैं खुले में शौच करने के लिए बाहर जाती थी। मुझे पता है, खुले में शौच करना मुश्किल है। मैं इससे अनजान और अशिक्षित थी कि शौचालय होना कितना जरूरी है। मैं कभी भी बाकी लोगों को भी इससे अनजान नहीं रखना चाहती थी।”

बेटी से भी चाहती हैं समाजसेवा

शरणम्मा अपनी बेटी के साथ अकेली रहती हैं। पति के बिना अकेले ही उन्होंने अपनी बेटी की परवरिश की और उसे अच्छी शिक्षा दी। आज उनकी बेटी वकालत की पढ़ाई पढ़ रही है। वे चाहती हैं कि उनकी बेटी भी आगे चलकर समाज के हित में काम करे।

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