बियर फैक्ट्री के खिलाफ है ओडिशा का ये गांव, लोग बोले- 'मर जाएंगे लेकिन जंगल नहीं छोड़ेंगे'
ओडिशा के ढेंकनाल जिले के बलरामपुर गांव में P & A Bottlers Pvt Ltd को बियर फैक्ट्री के लिए जमीन दी गई है। गांव वालों का आरोप है कि ओडिशा इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (IDCO) ने जंगल की जमीन पर फैक्ट्री लगाने की अनुमति दी है।
''हम मर जाएंगे लेकिन अपने जंगल को नहीं छोड़ेंगे।'' ओडिशा के ढेंकनाल जिले के बलरामपुर गांव में रहने वाली बबिता पात्रे ये बात कहती हैं। बबिता बलरामपुर गांव में लगने वाली बियर फैक्ट्री का विरोध कर रही हैं। उन जैसी कई महिलाएं और बलरामपुर समेत 12 गांव के रहवासी इस विरोध का हिस्सा हैं।
ओडिशा के ढेंकनाल जिले के बलरामपुर गांव में P & A Bottlers Pvt Ltd को बियर फैक्ट्री के लिए जमीन दी गई है। गांव वालों का आरोप है कि ओडिशा इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (IDCO) ने जंगल की जमीन पर फैक्ट्री लगाने की अनुमति दी है। वो 96 एकड़ में फैले इस जंगल को 1972 से संरक्षित कर रहे हैं, ऐसे में इस जगह फैक्ट्री लगाना गलत है।
इस फ्रैक्ट्री के विरोध में इस इलाके के 12 गांवों ने मिलकर 'आंचलिक सुरक्षा विकास मंच' बनाया है। इस संगठन के सदस्य और बलरामपुर गांव के सेक्रेटरी सुशांत धल बताते हैं, ''जिस जंगल को हम बचाने की बात कर रहे हैं वो झिंकरगडा जंगल में पड़ने वाले टांस हिल से सटा हुआ इलाका है। झिंकरगडा जंगल 600 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें से 96 एकड़ जंगल का हम (12 गांव के लोग) संरक्षण करते आ रहे हैं। सरकार ने पहले इस जंगल भूमि का कागजों में स्वरूप बदला और उसे औद्योगिक भूमि कर दिया। इसके बाद 12 एकड़ भूमि P & A Bottlers को बियर फैक्ट्री के लिए दे दी गई।''
सुशांत धल कहते हैं, ''जिस जगह फ्रैक्ट्री बनाने की इजाजत दी गई है वो फिजिकिली (भौतिक) जंगल है। इसमें 160 किस्म के पेड़ हैं, करीब 10 हजार 'साल वृक्ष' हैं, आयुर्वेदिक औषधियां हैं। साथ ही यह हाथियों का हैबिटेट (प्राकृतिक वास) भी है। यहां करीब 40 से 50 हाथी रहते हैं। ऐसे में इसे औद्योगिक भूमि की श्रेणी में रखना सही नहीं है।'' सुशांत कहते हैं, ''जंगल को औद्योगिक भूमि में बदलने से बलरामपुर, कांधांविंधा, कास्याडिही, सारयापुड़ा, मयधरपुर, तमंडा, बंजरा, ब्रह्मणिपाल, बंपा, जगरनाथपुर, ब्रजरनाथपुर और दोलिकी जैसे 12 गांव के करीब 25 हजार लोग प्रभावित हुए हैं। जंगल इनके खान पान से लेकर जीवन में अहम योगदान देता रहा है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।''
बलरामपुर समेत ये 12 गांव सूखे से प्रभावित हैं। यहां भूजल की कमी की वजह से साल में सिर्फ एक बार मौसम आधारित खेती की जाती है। गांव वाले मुख्य तौर पर धान की खेती करते हैं क्योंकि इसमें बारिश से उन्हें पानी मिल जाता है। गांव वालों को ये भी कहना है कि बियर फैक्ट्री लगने से इस इलाके में भूजल की समस्या और विकराल हो जाएगी। गांव के ही रहने वाले कलमांत पात्रे कहते हैं, ''हमारे इलाके में पानी की पहले से ही बहुत दिक्कत हैं। बियर फैक्ट्री बोर वेल लगाकर इस दिक्कत को और बढ़ाने का काम करेगी। साथ ही पेड़ कटने और जंगल खत्म होन से जानवरों को भी परेशानी है। हमारे गाय, बकरी को चरने के लिए भी असुविधा है।''
''जंगल से हमें औषधियां, सूखी लकड़ी मिल जाती है और कुछ खाने की चीजें मिल जाती हैं। हम बस इतना चाहते हैं कि हमारा जंगल वैसे का वैसा रहे, यहां फैक्ट्री न बने।'' - बलरामपुर के रहने वाले कलमांत पात्रे
इस सवाल पर कि कागजी तौर पर तो जंगल है ही नहीं। कलमांत कहते हैं, ''देखने में जंगल है, कागज पर कुछ भी बना सकते हैं। हम इस फैक्ट्री के लिए हमारे जंगल नहीं कटने देंगे, चाहें हमारी जान ही क्यों न चली जाए।''
गांव वाले जिस बियर फैक्ट्री का विरोध कर रहे हैं, उस फैक्ट्री का प्रोजेक्ट P & A Bottlers को 2016 में दिया गया था। 102 करोड़ के इस प्रोजेक्ट को ओडिशा की राज्य स्तरीय सिंगल विंडो क्लियरेंस आथॉरिटी ने निवेश प्रस्ताव की मंजूरी दी थी। प्रस्तावित फैक्ट्री में 2.5 लाख हेक्टेलिटर सालाना की क्षमता होगी। कलमांत पात्रे बताते हैं, ''प्रशासन की ओर से पहले जोर जगरदस्ती की गई। जब उन्हें लगा कि हम लोग नहीं मानेंगे तो हमसे इस प्रोजेक्ट के फायदे बताए गए। बताया गया कि इससे हमें रोजगार मिलेगा। हमारा कहना है कि हम ऐसे रोजगार का क्या करेंगे, जब हमारे पास खाने और पीने को कुछ नहीं बचेगा।''
गौर करने वाली बात है कि जिस इलाके में बियर फैक्ट्री लगाने का प्रस्ताव है वहां के गांव की महिलाएं शराब के विरोध में बहुत पहले से ही अभियान चलाती रही हैं। इसके लिए बलरामपुर महिला विकास संगठन का गठन भी किया गया है। ये संगठन गांव-गांव में जाकर लोगों को शराब के खिलाफ जागरूक करता है। इस संगठन की अध्यक्ष और बलरामपुर की रहवासी बबिता पात्रे भी इस बियर फैक्ट्री के विरोध में शामिल हैं। बबिता कहती हैं, ''बियर फैक्ट्री से गांव के गांव खराब हो जाएंगे। जिस मध (शराब) का हम विरोध कर रहे हैं उसी की फैक्ट्री यहां कैसे लगने दें? बियर फैक्ट्री से हमारा बहुत नुकसान है। हमारे संगठन से जुड़ी 200 महिलाएं गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करती रहीं और हमारे ही गांव में बियर फैक्ट्री लगने जा रही है, ये गलत है न।'' बलरामपुर की रहने वाली सरोजनी भी बबिता की बात का समर्थन करती हैं।
''मध (शराब) से बहुत नुकसान है। फैक्ट्री क्यों लगाना है, हम लोग नहीं चाहते कि फैक्ट्री लगे। जंगल को नष्ट न किया जाए। हम इस जंगल को बचा कर रहेंगे।''- सरोजनी कहती हैं
ग्राम समिति के कानूनी सलाहकार शंकर प्रसाद पानी कहते हैं, ''वन संरक्षण अधिनियम 1980 से लागू हुआ था। भारत सरकार ने वनों के संरक्षण तथा वनों के विकास के लिए वन संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इस मामले में 1980 के बाद केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना जंगल का स्वरूप बदला गया। इस तरह से ये सीधे तौर पर वन संरक्षण अधिनियम के धारा 2 का उल्लंघन है। इस धारा के अनुसार राज्य सरकार बिना भारत सरकार के पूर्वानुमति के वनों का गैर वानिकी प्रयोग नहीं कर सकती है।''
इस मामले पर ढेंकनाल के जिलाधिकारी निखिल पवन कलयान कहते हैं, ''वो फॉरेस्ट लैंड नहीं है, IDCO की जमीन है। इस इलाके में फॉरेस्ट लैंड में जितने पेड़ होते हैं उतने पेड़ भी नहीं हैं। इस लिए वहां काम हो रहा है। ऐसे में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। वहां ठीक ठाक काम चल रहा है। आप कहीं भी खाली जमीन छोड़िएगा तो वहां ऐसे ही पेड़ उग जाएंगे। तो मुझे नहीं लगता इसमें कोई पेरशानी है।''
बता दें, बलरामपुर गांव के विजय कुमार माझी की 18 अक्टूबर 2017 की शिकायत को संज्ञान लेते हुए ओडिशा सरकार के पर्यावरण और वन विभाग के विशेष सचिव ने 7 नवंबर 2017 को ढेंकनाल के वन अधिकारी को इस मामले की फील्ड जांच सौंपी थी। लेकिन अभी तक इस मामले में कोई जांच नहीं की गई है। हमने ढेंकनाल के वन अधिकारी सुदर्शन पात्रा से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी। उनका बयान मिलते ही हम अपडेट करेंगे। फिलहाल बलरामपुर गांव के रहने वाले लोग बियर फैक्ट्री के विरोध में हर दिन प्रदर्शन कर रहे हैं। कभी पेड़ों से चिपकर तो कभी शासन प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन करके। वहीं, प्रशासन भी नियम के तहत इलाके में कंपनी को काम करने में सहयोग कर रहा है।