अगर आप देश के किसी भी कोने में चले जाएं, आपको उस स्थान से जुड़ी हुई हस्तकला ज़रूर देखने को मिलेगी। वो चाहे अखरोट की लकड़ी के बना कश्मीरी फर्नीचर हो या राजस्थानी बंधनी वस्त्र या फिर तमिलनाडु की कांजीवरम साड़ियां। देश के कई हिस्सों में अलग-अलग तरह के हस्तशिल्प और हस्तकलाएं मशहूर हैं, जो अपनी अलग पहचान भी रखती हैं। आइये जानते हैं इन हस्तशिल्प कलाओं को और करीब से। आज बात बनारस, उत्तर प्रदेश की मशहूर काष्ठ-कला की ।
काष्ठ-कला -
अगर आप कभी काशी ( बनारस) गए होंगे, तो वहां से लकड़ी की बनी रेल गाड़ी, गुड़िया और सजावटी सामान ज़रूर खरीद कर लाए होंगे। बनारस की काष्ठ-कला (लकड़ी से बनी मूर्तियां ) पूरी दुनिया में मशहूर है। बनारस में बने लकड़ी के खिलौनों का आज इंटीरियर डेकोरेशन में भी काफी प्रयोग हो रहा है। यहां की काष्ठ कला ने दुनिया में बनारस को एक अलग पहचान दी है। जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) टैग मिलने के बाद बनारस का लकड़ी कारोबार 30 प्रतिशत बढ़ा है।
वाराणसी के कश्मीरीगंज, खोजवां इलाके में बड़े स्तर पर लकड़ी के खिलौने बनाए जाते हैं। बनारस का कश्मीरीगंज इलाका लकड़ी के खिलौने बनाने का प्रमुख केंद्र माना जाता है। लकड़ी के खिलौने बनाने वाली खराद की मशीनें नवापुरा, जगतगंज, बड़ागाँव, हरहुआ, लक्सा, दारानगर में भी चलती हैं। बनारस में दो हज़ार से अधिक कारीगर से जंगली लकड़ी 'कोरैया' से कई प्रकार के खिलौने तैयार करते हैं ।
पांच साल पहले यह कला अपने अंतिम दौर में थी, लेकिन भारत सरकार और विदेशों में बढ़ रही मांग के कारण यह कला फिर से पसंद की जाने लगी है। समय के साथ साथ डिज़ाइन और स्वरूप बदलने से बनारस के लकड़ी उत्पादों का व्यवसाय बढ़ रहा है। काष्ठ-कला से घर की सजावट के लिए सामान भी तैयार किए जा रहे हैं।
इंटरनेट से जुड़कर उद्योग को मिली रफ़्तार-
बढ़ती टेक्नोलॉजी ने बनारस के डूबते काष्ठ व्यवसाय को काफी हद तक बढ़ाया है। बाजार के लिए तरस रहे बनारस के खिलौनों ने अब इंटरनेट के माध्यम से दुनिया में रंग जमाना शुरू कर दिया है। थोक कारोबारियों के आर्डर पर अब इस काम से जुड़े कारीगरों को काम मिलने लगा है, जिससे खत्म होती यह कला दोबारा जीवित होते हए दिख रही है।