उत्तर प्रदेश के इन गाँवों में पिछले साल नौ किसानों ने अपनी जान दे दी

Update: 2018-06-21 10:20 GMT

उत्तर प्रदेश के कुछ गाँवों में पिछले साल नौ किसानों ने अपनी जान दे दी, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें मेंथा की पेराई के दौरान अपना काम बेहतर करने की जानकारी नहीं दी गयी थी। ऐसी कई घटनाएं मेंथा की पेराई के दौरान देखने को मिली हैं।

फतेहपुर, बाराबंकी के निवासी दिनेश चंद्र वर्मा और पुजारी पुत्र श्रीपाल वर्मा मेंथा आयल की टंकी में मेंथा की पेराई कर रहे थे। वहां मजदूरी पर एक मजदूर ठाकुर प्रसाद काम कर रहा था उसी दौरान टंकी के ऊपर भाप निकलने लगी। अभिषेक (22 वर्ष) टंकी के ऊपर चढ़ कर टंकी का ढक्कन ठीक करने लगा और टंकी का निचला हिस्सा जोरदार आवाज से फट गया, जिससे काम कर रहे मजदूरों के ऊपर पानी और राख सहित आग आकर गिर गई। गांव का एक मजदूर राम दुलारे (40 वर्ष) पुत्र ठाकुर प्रसाद बुरी तरह झुलस गया। हादसे के घायलों को लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया।

गुणवत्ता वाली टंकियां की हर जगह उपलब्धता न होने की वजह से कई किसानों ने मेंथा की पेराई के दौरान अपनी जान गंवा दी है। आपकी दवाइयों से लेकर माउथ फ्रेशनर बनाने तक में काम आने वाले मेंथा की पेराई इन किसानों को महंगी पड़ रही है। ढाई लाख की ये टंकियां आर्थिक रूप से कमजोर किसानों के लिए एक महंगा सौदा है। सरकारी नीतियां कैसे इन किसानों को आर्थिक रूप से मदद दे सकती है, कुछ किसान इससे अंजान रह जाते हैं। 

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