बरेली। ओमवती जब 52 वर्ष की उम्र में अपनी दोनों बहुओं को साथ लेकर पढ़ाई करने निकलीं तो गाँव वालों ने उनका खूब मजाक बनाया। लोगों की परवाह न करते अब तीनों एक साथ पढ़ाई तो करती ही हैं साथ ही फोन और योजनाओं को समझाने में भी सहयोग करती हैं।
“सारे काम निपटाने के बाद हम अपनी दोनों बहुओं को लेकर पढ़ने जाते हैं। जो सीख कर आते हैं उसको घर पर साथ बैठकर दोहराते हैं। पढ़ाई के कारण ही हमारे रिश्ते में प्यार तो बढ़ा ही है, दोस्ती भी हो गयी है।” मुस्कुराते हुए सास ओमवती (52 वर्ष) बताती हैं।
बरेली के ज़िला मुख्यालय के उत्तर-पूर्व में 12 किमी दूर मुख्यधारा से कटे पीतमपुरा गाँव में संचालित हो रहे ज्योति साक्षरता केंद्र में पढ़ाई से वंचित रह गईं हर उम्र-वर्ग की महिलाओं-बच्चियों को पढ़ाने का काम कर रही हैं युवा सामाजिक कार्यकर्ता मीरा देवी। ओमवती की बड़ी बहू रामबेटी (40 वर्ष) बताती हैं, “पति गार्ड हैं, रात में जब नौकरी पर जाते हैं तब हम सेंटर से जो पढ़कर आते हैं, सास और देवरानी के साथ लोहे के बड़े बक्से पर लिख-लिख कर पढ़ते हैं। दोपहर में जब पति सोते हैं और ससुर व देवर खेत पर चले जाते हैं तो हम तीनों काम निपटा कर सेंटर पर पढ़ाई करने आ जाते हैं।”
छोटी बहू सर्वेश (35 वर्ष) कहती हैं, “पढ़ाई में अपनी सास और जेठानी से आगे निकलने के लिए ज्यादा मेहनत करती हूं। वह जब सो जाती हैं या कोई काम कर रही होती हैं, तो मैं चुपके से पढ़ने बैठ जाती हूं। बच्चे हंसी उड़ाते हैं, पूछते हैं क्या पढ़ा तो मैं उनको वह सब सुना देती हूं जो पढ़कर आती हूं, बच्चे भी खुश होते हैं।”
इतना ही नहीं है, सास बहुएं आपस में बैठकर घर के पुरुषों को उन योजनाओं के बारे में बताती है जिसकी जानकारी उनको सेंटर पर मिलती है। जरूरत पड़ने पर वह प्रधान से बात भी कर लेती हैं।
सास बहुओं की यह अकेली जोड़ी नहीं है जो एक उम्र के इस पढ़ाव में बिना शर्माये हुए साथ पढ़ने जाती हैं। मीरा के केंद्र में पढ़ने वाली इन्दरवती भी अपनी बहू यशोदा के साथ सेंटर पर पढ़ने आती हैं। “पहले मुझे मोबाइल चलाना नहीं आता था लेकिन अब स्मार्टफोन चलाते हैं, व्हाट्सऐप चलाते हैं।”
इन्दरवती (50 वर्ष) बताती हैं। शारदा (37 वर्ष) बताती हैं, “सेंटर मेरे यहां ही चलता है। पढ़ाई की आवाजें आती थीं तो उनको सुनते-सुनते मेरा मन भी पढ़ने का करने लगा था तो मैं अपने बच्चों को लेकर पढ़ने बैठ जाती थी। काफी कुछ पढ़ने-लिखने लगी। मुझे देखकर अम्मा का भी मन हुआ तो वह भी पढ़ने लगीं। अब हम साथ बैठकर एक साथ पढ़ते हैं।”
इनके साथ ही माँ-बेटी भी एक साथ पढ़ाई करने में यहां शर्माती नहीं हैं। अतरकली अपनी बेटी बबली के साथ पढ़ने सेंटर जाती हैं। बबली (19 वर्ष) बताती हैं, “जब पहले अम्मा के साथ पढ़ने जाते थे तो शर्म आती थी। लोग हंसते थे हम लोगों पर। लेकिन अब आदत हो गयी और अब किसी की परवाह नहीं करते हैं। बबली मुस्कुराते हुए कहती हैं, “हमें अम्मा से ज्यादा समझ में आता है इसलिए रात को उनसे होमवर्क करवाते हैं। हमको तो पहले ही हस्ताक्षर करना, फोन चलाना किताबें पढ़ना आ गया था, अब अम्मा को घर पर भी इस सबका अभ्यास करवा रहे हैं।”