ज्ञानी चाचा और भतीजा के इस भाग में देखिए कैसे बनाएं वर्मी कम्पोस्ट 

Update: 2019-06-13 05:25 GMT

ज्ञानी चाचा के इस भाग में वर्मी कम्पोस्ट बनाने के विधि और उसके प्रयोग के सही तरीके के बारे में बताया जा रहा है।

अच्छी फसल की पैदावार के लिए जैविक खेती करनी चाहिए, जिससे फसल की लागत भी कम हो जाएगी और उत्पादन भी अधिक होगा। ऐसे में किसान वर्मी कम्पोस्ट बनाकर अपने फसल का उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

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गोबर को पोषण का सर्वाधिक श्रेष्ठ विकल्प माना जाता हैं जिसमे पौधों के लिए आवश्यक सभी सूक्ष्म तत्व संतुलित मात्रा में उपलब्ध रहते हैं। इन सूक्ष्म तत्वों को पौधे या फसलें बड़ी आसानी से अवशोषित कर लेती हैं। गोबर में उपस्थित सूक्ष्मजीव मृदा में उपस्थित जैव-भार के विघटन का भी कार्य करते हैं। खाद बनाने के लिए आजकल कई विधियां प्रचलन में हैं इनमे से कम्पोस्ट, नाडेप या वर्मी कम्पोस्ट प्रमुख हैं।


वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि

वर्मी कम्पोस्ट विधि का प्रचलन अन्य विधियों की तुलना में कही अधिक है। इस विधि में खाद का निर्माण अपेक्षाकृत कम समय में हो जाता है। इस विधि से प्राप्त खाद की गुणवत्ता भी अधिक होती है।

बेड विधि: छायादार जगह पर जमीन के ऊपर तीन-चार फिट की चौड़ाई और अपनी आवश्यकता के अनुरूप लम्बाई के बेड बनाए जाते हैं। इन बेड़ों का निर्माण गाय-भैंस के गोबर, जानवरों के नीचे बिछाए गए घासफूस-खरपतवार के अवशेष आदि से किया जाता है। ढेर की ऊंचाई लगभग लगभग एक फुट तक रखी जाती है। बेड के ऊपर पुवाल और घास डालकर ढक दिया जाता है। एक बेड का निर्माण हो जाने पर उसके बगल में दूसरे उसके बाद तीसरे बेड बनाते हुए जरूरत के अनुसार कई बेड बनाये जा सकते हैं।

शुरूआत में पहले बेड में केंचुए डालने होते हैं जोकि उस बेड में उपस्थित गोबर और जैव-भार को खाद में परिवर्तित कर देते हैं। एक बेड का खाद बन जाने के बाद केंचुए स्वतः ही दूसरे बेड में पहुंच जाते हैं। इसके बाद पहले बेड से वर्मी कम्पोस्ट अलग करके छानकर भंडारित कर लिया जाता है और पुनः इस पर गोबर आदि का ढ़ेर लगाकर बेड बना लेते हैं। वर्मी कम्पोस्ट विधि से प्राप्त खाद का भण्डारण भी आसानी से हो जाता है।

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