बुखार के रोगियों की पहचान करने, टीकाकरण और टीबी के मरीजों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए यूपी में डोर टू डोर सर्वे

उत्तर प्रदेश में डेंगू, मलेरिया और अन्य वेक्टर बॉर्न बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके चलते राज्य ने अपनी ग्रामीण आबादी में बुखार, टीबी और अन्य रोगों की जांच के लिए घर-घर जाकर सर्वे करने का काम शुरू किया है। कोविड टीकाकरण को लेकर भी जानकारी जुटाई जा रही है। हालांकि, आशा कार्यकर्ताओं ने इस अतिरिक्त काम के लिए उचित भुगतान नहीं किए जाने की शिकायत की है।

Update: 2021-09-10 07:24 GMT

उत्तर प्रदेश में वायरल बुखार, डेंगू, मलेरिया और इंसेफेलाइटिस जैसी कई वेक्टर जनित बीमारियां तेजी से अपने पैर पसार रही हैं। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने बुखार और अन्य लक्षणों वाले मरीजों की पहचान करने और उन्हें समय पर इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्रों में भेजने के लिए घर-घर जाकर सर्वे करने और जागरूकता अभियान की शुरूआत की है। सप्ताह भर चलने वाला यह अभियान 8 सितंबर से 16 सितंबर तक चलेगा।

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने बताया, "राज्य में वायरल बुखार के प्रसार को रोकने के लिए हम हर संभव कदम उठा रहे हैं। घर-घर जाकर सर्वे किया जाएगा और बच्चों को दवाएं भी मुहैया कराई जाएंगी।"

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद, मथुरा और आगरा जिले में डेंगू (जिसे पहले रहस्यमयी बुखार कहा जा रहा था), के बढ़ते मामलों के कारण पिछले एक हफ्ते से अधिक समय से चर्चा में हैं। डेंगू से अब तक कम से कम 100 लोगों की मौत हो चुकी है। मरने वालों में ज्यादातर बच्चे बताए जा रहे हैं। साथ ही, उत्तर प्रदेश के कुछ अन्य जिलों जैसे सीतापुर और बदायूं से भी मलेरिया फैलने की खबरें आ रही हैं। गांव कनेक्शन फिरोजाबाद में डेंगू और सीतापुर के गांवों में मलेरिया के बढ़ते मामलों पर रिपोर्टिंग करता रहा है।

सर्वेक्षण सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक किया जाता है, जिसके बाद सभी एकत्रित डेटा को जिला बुलेटिन में फीड किया जाता है और हर दिन अपडेट किया जाता है। फोटो: वीरेंद्र सिंह 

घर-घर जाकर सर्वे

घर-घर जाकर सर्वे करने के लिए बाराबंकी जिले ने 1,114 सदस्यों की टीम बनाई है। बाराबंकी के सहायक मुख्य चिकित्सा अधिकारी डी. के. श्रीवास्तव ने गांव कनेक्शन को बताया

"इस टीम के साथ हम हर दिन 111,400 घरों का सर्वे कर सकते हैं। अभी तक जिले में कुल छह डेंगू और 10 एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) के मरीज सामने आए हैं।"

एक आशा कार्यकर्ता ने निवासियों को वेक्टर जनित बीमारियों के प्रति सावधानी बरतने का निर्देश दिया। फोटो: वीरेंद्र सिंह 

घर-घर जाकर जांच करने के इस अभियान के अंतर्गत, आशा/एएनएम की हर एक टीम का लक्ष्य एक दिन में लगभग 65 घरों की जांच करने का है। सर्वे सुबह नौ बजे से दोपहर एक बजे तक किया जाता है। इसके बाद दिनभर में इक्ट्ठा किए डेटा को जिला बुलेटिन में फीड करते हैं और रोजाना इसे अपडेट भी किया जाता है।

शादाब आलम एक लैब्रटॉरी असिस्टेंट हैं। इन्हें बाराबंकी जिले के फतेहपुर ब्लॉक के बेलहारा शहर में डोर-टू-डोर सर्वे की देखरेख का काम सौंपा गया है। राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 60 किलोमीटर दूर इस शहर की आबादी 25 हजार है।

आलम ने गांव कनेक्शन को बताया, "घर-घर जाकर सर्वे करने के लिए दो सदस्यों की एक टीम बनाई गई है। वे सदस्य आशा, एएनएम या आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कोई भी हो सकते हैं। इस टीम का मुख्य काम बुखार से पीड़ित लोगों की पहचान करना है।" वह आगे कहते हैं, "सर्वे में खांसी, जुखाम या सांस लेने में परेशानी की भी जांच की जा रही है ताकि कोविड -19 लक्षणों वाले रोगियों की पहचान की जा सके। अगर ऐसा कोई मामला सामने आता है तो हम इसकी सूचना सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) को देते हैं। और फिर उसका इलाज शुरु कर दिया जाता है।

आलम के अनुसार, आमतौर पर स्वास्थ्य कार्यकर्ता ग्रामीणों से सवाल करती हैं कि उन्हें बुखार या शरीर में दर्द जैसी कोई परेशानी तो नहीं है। और उनसे जो भी जवाब मिलता है हमें उस पर भरोसा करना पड़ता है।

अभियान के पहले दिन पूरे जिले में स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा कुल 59,617 घरों का सर्वेक्षण किया गया।

बाराबंकी के जिला मजिस्ट्रेट आदर्श सिंह ने 8 सितंबर को संवाददाताओं से कहा, "यह सच है कि कई जिलों में डेंगू के मामले बढ़े हैं। हमारा जिला भी संवेदनशील है और यहां पहले भी एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) और जेई (जापानी इंसेफेलाइटिस) के मामले सामने आ चुके हैं। हम इसे रोकने के लिए तत्काल सख्त कदम उठा रहे हैं।" उन्होंने बताया, "हमने ऐसे मामलों की जांच के लिए जिले में एक सर्वे अभियान शुरू किया है और इसके लिए एहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं।"

बुखार के अलावा, कोविड-19 टीकाकरण और तपेदिक की जानकारी भी ली जा रही है

घर-घर जाकर सर्वे करने वाली स्वास्थ्य टीमें बुखार के लक्षणों के लिए ग्रामीण आबादी की जांच और पहचान तो कर ही रही है साथ ही तपेदिक (टीबी) के रोगियों की पहचान, नवजात शिशुओं और बच्चों को टीके लगे हैं या नहीं और कोविड-19 टीकाकरण की स्थिति पर भी महत्वपूर्ण जानकारी इक्ट्ठा की जा रही है।

बाराबंकी के बेलहारा में स्वास्थ्य पर्यवेक्षक सुमन मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताया, "बेलहारा में 11 स्वास्थ्य दल काम कर रहे हैं। वे घर-घर जाते हैं और ग्रामीणों से पूछते हैं कि क्या उन्हें बुखार, खांसी या सर्दी जैसी कोई परेशानी तो नहीं है। दूसरा, 45 साल से ऊपर के सभी परिवार के सदस्यों को कोविड का टीका लगाया गया है या नहीं, वे इसके बारे में पता करते हैं, और तीसरा, वे यह भी देखते हैं कि दो साल तक के बच्चों का टीकाकरण किया गया है या नहीं। "

मिश्रा आगे बताती हैं, "स्वास्थ्य दल ग्रामीण लोगों को टीबी के लक्षणों के बारे में जानकारी देते हैं। टीबी रोगियों की पहचान कर उन्हें पीएचसी या सीएचसी जाने की सलाह दी जाती है। "

घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने वाली स्वास्थ्य टीमें भी कोविड-19 टीकाकरण की स्थिति, तपेदिक (टीबी) के रोगियों की पहचान और नवजात शिशुओं और बच्चों के टीकाकरण की स्थिति पर महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र कर रही हैं। 

सीतापुर जिले के बाराबंकी से लगभग 100 किलोमीटर दूर, जांच के दौरान पांच लोगों में कोविड-19, दो में टीबी और 14 व्यक्तियों में मलेरिया के लक्षण पाए गए। अभियान के पहले दिन 8 सितंबर को स्वास्थ्य कर्मियों ने पूरे जिले में कुल 59,617 घरों का सर्वे किया था। जिला स्वास्थ्य बुलेटिन ने इसकी सूचना दी है।


आशा कार्यकर्ताओं को अब भी भुगतान का इंतजार

यह पहली बार नहीं है जब राज्य सरकार ने अपनी पूरी ग्रामीण आबादी का घर-घर जाकर सर्वे करवाया है। इस साल मई में, महामारी की दूसरी लहर के दौरान भी यूपी सरकार ने कोविड लक्षणों की जांच के लिए पांच दिवसीय अभियान शुरू किया था। इस सर्वे के लिए भी आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं को लगाया गया था। उन्होंने सुरक्षा के लिए जरुरी उपकरणों की कमी और अतिरिक्त कार्य के लिए भुगतान न किए जाने की शिकायत की थी।

बाराबंकी के फतेहपुर प्रखंड के भटवा मऊ गांव की एक आशा कार्यकर्ता रिंकी देवी ने कहा कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि आशा को सर्वेक्षण के लिए कोई अतिरिक्त भुगतान मिलेगा या नहीं।

इस बार राज्य में एक बार फिर से डोर-टू-डोर सर्वे के लिए आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं को लगाया गया है। और ये फ्रंटलाइन कार्यकर्ता शिकायत करते हैं कि उन्हें न तो थर्मामीटर जैसा कोई स्क्रीनिंग उपकरण मिला है और न ही सर्वे करने के लिए कोई ट्रेनिंग दी गई।

सीतापुर जिले के कसमांडा प्रखंड के दरियापुर गांव की आशा कार्यकर्ता मीना यादव ने गांव कनेक्शन को बताया कि उन्हें प्रशासन से सर्वे करने का आदेश मिला है। वह कहती हैं, "सर्वे करने के बाद हम घरों पर चॉक से निशान लगाने होते हैं। सरकार की तरफ से चॉक तक नहीं मिली है। बुखार की जांच करने के लिए थर्मामीटर तक नहीं दिया गया है। सर्वे के दौरान लोगों को बुखार है या नहीं या फिर उन्हें कोई और परेशानी तो नहीं है, इसके लिए हमें उनसे मिली जानकारी पर ही विश्वास करना पड़ता है।"

रिंकी देवी बाराबंकी के फतेहपुर प्रखंड के भटवा मऊ गांव की एक आशा कार्यकर्ता हैं। सप्ताह भर चलने वाले इस सर्वे के लिए वह रोजाना 65 घरों का दौरा करती हैं। वह कहती हैं कि उन्हें नहीं है पता कि इसके लिए उन्हें अलग से पैसा दिया जाएगा या नहीं।

बाराबंकी की आशा गांव कनेक्शन को बताती हैं, "मैं सुबह नौ बजे से सर्वे करने के लिए निकलती हूं। और दोपहर एक बजे तक यह काम चलता रहता है। हमें इस काम के लिए भुगतान कैसे किया जाएगा, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। मई में कोरोना के दौरान किए गए सर्वे में भी मैंने काम किया था लेकिन उसका पैसा अभी तक नहीं मिला है।"

डी2 डेंगू सामान्य डेंगू से ज्यादा घातक होता है क्योंकि मरीज की हालत तेजी से बिगड़ती है।

बाराबंकी की एक आशा कार्यकर्ताओं सोना में डेंगू के लक्ष्ण दिखने के बाद जिला प्रशासन में खलबली मच गई थी। स्वास्थ्य अधिकारियों को सिरौलीगौसपुर ब्लॉक के रामसहाय गांव भेजा गया था, जहां स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने सोना की जांच की। जांच में कार्यकर्ता की रिपोर्ट पॉजेटिव आई थी।

सिरौलीगौसपुर सीएचसी प्रभारी संतोष सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि संक्रमित आशा कार्यकर्ता का अभी डेंगू का इलाज चल रहा है।

रहस्यमयी बुखार की पहचान D2 डेंगू वैरिएंट के रुप में हुई

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को फिरोजाबाद जिले में 'रहस्यमय बुखार' की जांच का काम सौंपा गया था। इस बुखार से यहां कम से कम 57 लोग की मौत हुई हैं। तैयार की गई अंतिम रिपोर्ट के अनुसार, बीमारी की पहचान डी2 डेंगू वैरिएंट के रुप में हुई है। आईसीएमआर ने कहा है कि यह स्ट्रेन सामान्य डेंगू की तुलना में जानलेवा है और अक्सर रक्तस्राव (आंतरिक रक्तस्राव) का कारण बनता है। जिसके कारण प्लेटलेट काउंट में अचानक गिरावट आती है और पीड़ित व्यक्ति की मौत हो जाती है।


आईसीएमआर प्रमुख बलराम भार्गव ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, "डेंगू भी एक जानलेवा बीमारी है। मच्छरों को पनपने से रोकना होगा। तभी हम इसकी रोकथाम कर पाएंगे।" केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा कि उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद, मथुरा और आगरा से डेंगू के बढ़ते मामलों की खबरें आ रही हैं, जबकि मच्छरों से होने वाली बीमारियां पूरे देश में बढ़ रही हैं।

नीति आयोग के अध्यक्ष वीके पॉल ने कहा "किसी भी बुखार को हल्के में न लें। चाहे वह मलेरिया हो, डेंगू हो या फिर कोविड। हमारा ध्यान कोविड से नहीं हटना चाहिए। लेकिन डेंगू भी जानलेवा हो सकता है और इसका कोई टीका भी नहीं है। यह बताना मुश्किल है कि डेंगू का असर किस पर ज्यादा पड़ेगा या फिर इसके प्रति कौन ज्यादा संवेदनशील है।"

सीतापुर से मोहित शुक्ला के इनपुट के साथ

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