कश्मीर की नर्स फ़िरदौसा जान की क्यों हो रही है वाहवाही

फ़िरदौसा जान बिना पिता के पली-बढ़ीं और उनके घर में एकमात्र कमाने वाली सदस्य उनकी किसान माँ थीं। उनकी माँ का सपना था कि वे एक स्वास्थ्यकर्मी बनें। कश्मीर की फ़िरदौसा को प्रतिष्ठित राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

Update: 2023-09-18 07:12 GMT

श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर। कश्मीर में स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर योगदान के लिए श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर में एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता फ़िरदौसा जान को जून 2023 में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

फ़िरदौसा ने कहा कि यह उनके लिए बेहद ख़ास है, क्योंकि उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचने के लिए कठिन रास्ता तय किया।

“मैं बिना पिता के बड़ी हुई और मेरी माँ परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य थीं। जहाँ हमारे पास सेब के कुछ पेड़ थे, मेरी माँ हमारी थोड़ी सी जमीन में खेती करती थीं।" फ़िरदौसा ने गाँव कनेक्शन को बताया।

फ़िरदौसा ने कश्मीर के बडगाम जिले के चरार-ए-शरीफ के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। वे बताती हैं कि उन्हें कई बार सहपाठियों से किताबें उधार लेनी पड़ती थीं, क्योंकि वो ख़ुद किताबें नहीं खरीद सकती थीं। लेकिन उनकी माँ हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं। उन्होंने कहा, "यह मेरी माँ की कोशिशों का नतीजा है कि मैं आज नर्स हूँ।"


राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार केंद्र सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से साल 1973 से नर्सों और नर्सिंग पेशेवरों को उनके बेहतरीन काम के लिए दिया जाता हैं। ये फ्लोरेंस नाइटिंगेल के सम्मान में दिए जाता है, जिन्हें आधुनिक नर्सिंग के संस्थापक के रूप में जाना जाता है।

गाँव कनेक्शन से बात करते हुए, फ़िरदौसा ने कहा, "मेरी माँ ने जोर देकर कहा कि मैं चिकित्सा में अपना करियर बनाऊँ और मुझे नर्सिंग की पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि लोगों का ख़याल रखना और इलाज करना एक महान पेशा है। जबकि पहले मैं अस्पतालों से डरती थी, लेकिन मैं आगे बढ़ती गई।"

“मैं मानती था कि नर्सिंग का मतलब केवल मरीजों को दवाएँ या इंजेक्शन देना है। बाद में मुझे पता चला कि इससे आगे भी बहुत कुछ होता है। मरीजों के आँसू और आभार मुझे हर दिन याद दिलाते हैं कि मैंने यह पेशा क्यों चुना, और मैं इसे क्यों जारी रख रही हूँ, ''उन्होंने आगे कहा।

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फ़िरदौसा ने शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसकेआईएमएस) से नर्सिंग और मिडवाइफरी में डिप्लोमा हासिल किया और 2002 में बीएससी नर्सिंग के साथ ही एमएससी भी की है। वह अब अपनी पीएचडी पूरी करने का इंतज़ार कर रही हैं।

अपनी मास्टर डिग्री के दौरान, फ़िरदौसा को श्रीनगर में एक नशा मुक्ति केंद्र में नियुक्त किया गया, जहाँ उन्होंने मनोरोग नर्सिंग पर ध्यान केंद्रित किया। वह उन छात्रों से मिलीं जो ड्रग्स का शिकार थे और वह देखना चाहती थीं कि एक नर्स के रूप में वह उनकी कैसे मदद कर सकती हैं।

उन्होंने कहा, "मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलने और लोगों को ड्रग्स लेने के लिए मजबूर करने के बारे में और जानने की जरूरत है।"


फ़िरदौसा ने छात्रों को इसकी मुश्किलों को समझने में मदद करने के लिए दो मैनुअल, पैलिएटिव केयर और ऑपरेटिंग रूम लिखे। उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य और मनोचिकित्सक नर्सिंग पर कई शोध पत्र और विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल विषयों पर निबंध भी लिखे, जिनमें से कई स्थानीय मीडिया आउटलेट्स में प्रकाशित हुए थे। उन्होंने ड्रग्स के सेवन पर कई जागरूकता शिविर आयोजित किए हैं और किशोरों को नियमित रूप से सलाह देती हैं।

फ़िरदौसा को कुछ साल पहले सऊदी अरब में नर्स की नौकरी करने का मौका मिल रहा था, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। हालाँकि वह इस प्रस्ताव को स्वीकार कर सकती थी और अपने पति के पास जा सकती थीं जो वहाँ एक डॉक्टर हैं। “मैं अपने देश की सेवा करना चाहती थी। ” फ़िरदौसा ने सरलता से कहा। इसलिए, उन्होंने अपने दो बच्चों के साथ भारत में ही रहने का फैसला किया।


कोविड-19 महामारी के बारे में बात करते हुए, फिरदौसा ने कहा कि इससे निपटना मुश्किल था। “कोविड से बचने के लिए पहने जाने वाले कपड़े से परेशानी होती थी। मुझे जो पहला 24-घंटे का आइसोलेशन असाइनमेंट करना था वह कठिन था। मैं अपने बच्चों के साथ ईद नहीं मना पाई, जिन्हें मेरे पड़ोसी के यहाँ छोड़ दिया गया था, ''उन्होंने उस पल को याद करते हुए कहा।

लेकिन इससे वह स्वास्थ्य देखभाल के अपने मिशन से पीछे नहीं हटी। कोविड के बाद, जब वह ऑफ-ड्यूटी थी, तो उसने एक साल तक गैर-लाभकारी संस्था के साथ काम किया। उन्होंने विभिन्न झुग्गी बस्तियों का दौरा किया जहाँ लोग वैक्सीन नहीं लगवाना चाह रहे है। उन्होंने कहा, "मैंने उन्हें समझाया कि वैक्सीन उनके लिए फायदेमंद है।"

वर्तमान में, फिरदौसा श्रीनगर के मदर-ए-मेहरबान इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग साइंसेज एंड रिसर्च में ट्यूटर हैं। उन्होंने इसी इंस्टीट्यूट से ख़ुद भी पढ़ाई की।


“फ़िरदौसा जान 1990 के दशक में हमारे कॉलेज की छात्रा थीं। वो यहाँ पर अच्छे से पढ़ाई करती थीं, ”एमएमआईएनएसआर की प्रिंसिपल मुनीरा काचरू ने गाँव कनेक्शन को बताया।

“उन्होंने फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार जीतकर हमें गौरवान्वित किया है। हमें उन पर गर्व है। जम्मू-कश्मीर और कॉलेज के लिए गर्व की बात है, ”काचरू ने आगे कहा।

फ़िरदौसा के लिए एक नर्स बनना न सिर्फ उनके लिए बेहतर ज़िन्दगी साबित हुई बल्कि साथी महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन रहीं हैं। "उन सभी लोगों से, जो मानते हैं कि महिलाएँ केवल गृहिणी ही हो सकती हैं, मैं उनसे कहती हूँ, महिलाएँ घर से बाहर सम्मान और विनम्रता के साथ काम कर सकती हैं।"

“मुझे अपने काम में बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिसमें लोगों से बात करना भी था। लेकिन मैंने यह साबित करने की ठान ली थी कि एक महिला क्या करने में सक्षम है। मैं अपनी बात पर डिगी रही और अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया। आज, मुझे जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने पर गर्व है, ''उन्होंने आखिर में कहा।

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