कई देशों में मशहूर है मेरठ की कैंचियां

Update: 2019-11-05 11:32 GMT

मेरठ (उत्तर प्रदेश)। जब भी कैंचियों की बात आती है मेरठ का नाम जरूर आता है, जहां की कैंचियां देश ही विदेशों तक मशहूर हैं। लेकिन कम लोगों को ही पता होगा कि इन कैंचियों को देश-विदेश तक पहुंचाने में एक शख्स रईसुद्दीन 'रईस मियां' का हाथ है।

कई साल पहले पहले मेरठ के छोटे से मोहल्ले की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों और इक्का- दुक्का दुकानों में कैंची बनाने का काम शुरू हुआ। कैंची बनाने का यह काम वक्त के साथ-साथ नित नए मुकाम हासिल करता चला गया इस काम को पहचान दी हाजी रईसउद्दीन जैसे नायाब हुनरमंद दस्तकारों ने। जिन्होंने इस छोटे से लेकिन जरूरी औजारों को अलग-अलग जरुरतों और मौके के हिसाब से तैयार किया। रईस मियां के खानदान में यह काम उनके दादा हाजी खुदा बख्श ने शुरु किया था इसे आगे बढ़ाया उनके पिता सेठ मौला बख्श ने पिता से मिले इस हुनर को रईस मियां ने और मांजा। उन्होंने दशकों से चली आ रही पुरानी कैंची को मॉर्डन लुक देते हुए इसमें कई छोटे-बड़े बदलाव किए और इसे आरामदायक और ज्यादा तेज बनाया।

आज रईस मियां के परिवार की सातवीं पीढ़ी काम कर रही है। रईस मियां की गल्तेदार कैंची की धूम अमेरिका और जापान जैसे विकसित देशों तक है विभिन्न उपयोग के लिए बनाई गई उनकी दर्जनों तरह की कैंचियों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान भी दिलाया है। पिछले तीन सदियों से मेरठ की कैची अपनी खूबियों के चलते देश विदेश में अलग पहचान रखती है।

कोई दूसरा नहीं बना पाया ऐसी कैंची

रईस के बेटे अनीस बताते है, "कभी परदादा आना दो आना में कैंची बेचा करते थ , आज यही कैंची 200 से 700 रुपए तक बेची जा रही है। देश- विदेशों में महशूर है कई देशों से प्रशंसा पत्र आ चुके हैं। इनके डिजाइन की कैंची तो कोई दूसरा बना ही नहीं पाया करीब पांच दशक से गल्तेदार कैंची बना रहे हैं रईस सीज़र्स के नाम से फर्म चला रहे हैं।" छठवीं पीढ़ी में उनके छोटे बेटे अनीस इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं।

मेरठ की कैंची के मुरीद है सऊदी भी

कैंची की तेज धार का डंका देश नहीं विदेशों में भी बज रहा है उनकी कारीगरी के दीवानों की संख्या कम नहीं है। तीन साल पहले सऊदी अरब के टेलर के पास गई कैंचियों को मेरठ फिर से धार लगवाने के लिए भेजा गया।


हाथ से बनाई जाती है आज भी कैंचियां, नहीं है कोई मशीन

अनीस बताते हैं, "आज भी हाथ से कैंचियां बनाई जाती है कोई भी मशीन द्वारा काम नहीं किया जाता। हमारा सीमित संसाधनों में ही काम करते है लोग करोड़ों रूपये की मशीन लगाते हैं हमारा काम हजारों रुपए में हो जाता है, उनकी कैंचियों को हमारी कैंची मात देती हैं।

सन 1700 ई. से होता चला आ रहा है काम, देखा-देख बस गया कैंची बाज़ार

अनीस बताते हैं, "हमारा खानदानी काम है मेरे परदादा काम किया करते थे उसके बाद दादा ने फैक्ट्री खोली कई लोगों को रोजगार दिया कई कारीगर तैयार किए। उसके बाद हमारे वलीद साहब रईस मियां ने काम संभाला कईं तरह की कैंचियां बनाई आज हम उस काम को संभाल रहे हैं। देखते ही देखते सब कारीगर या काम करने वालो ने आज खुद का काम कर लिया है आज ये केन्चियांन मोहल्ले के नाम से जाना जाता है।

बड़े-बड़े नेताओं व दिग्गजों के कपड़े भी काटे जाते हैं इनकी कैंचियों से

अनीस बताते हैं, "हमारी कैंची से दिल्ली में बड़े ट्रेलर जो नेताओ व अभिनेताओं के कपड़े सिलाई करते हैं वो लोग हमारी कैंची ही काम मे लाते हैं वो दावा करते है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के कपड़े जो ट्रेलर तैयार करते हैं। उनकी कैंची वो काम मे लाते हैं हम अच्छा लगता है जब हमारे दादा , परदादा या वालिद साहब को याद किया जाता है ।

कपड़ा काटने या चमड़ा काटने पर नहीं पड़ते निशान

रईस मियां ने दस्तकारी के मामले में अपने सीमित संसाधनों से मेरठ शहर को देश - विदेश में नई पहचान दी। अनीस बताते हैं, "हाजी खुदा बख़्श को भी नहीं मालूम था कि उनके जमाने की कैंचियां भी मेरठ के इतिहास बनेंगी। कुछ ऐसा भी हुनर था रईस मियां के हाथों में गल्तेदार कैची की खासियत यह है इसके है उसके हैंडिल में सभी उंगलियां आराम से जमी रहती हैं। कोई दर्जी चाहे जितना भी कपड़ा काटे अंगूठे या उंगलियों पर किसी तरह के निशान नहीं बनते रईस मियां की गल्तेदार कैंचियों की यही पहचान है। 

Full View

Similar News