प्लास्टिक की बोतलों से बनाया घर : भूकंप और गोली भी बेअसर

Update: 2019-03-15 06:30 GMT

सतीश मिश्रा/ ज्ञानेश शर्मा

अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)। तालों के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश के शहर अलीगढ़ की एक आर्कीटेक्ट ने प्लास्टिक की बेकार बोतलों के सदुपयोग की चाबी खोज निकाली है। उन्होंने एक विशेष कमरा तैयार कराया है, जो पानी की खाली बोतलों और राख और मिट्टी से बनाया गया है।

"मैंने एक बार एक ख़बर पढ़ी थी की दिल्ली के गाजीपुर में एक कचरे का ढेर है जो कुतुबमिनार से भी ऊंचा होने वाला है। जब से मेरे दिमाग में ये घूम रहा था कि कैसे इसका सदुपयोग हो। प्लास्टिक तो पर्यावरण को बहुत नुकसान है। इसीलिए मैंने इसका सदुपयोग कमरा बनाने में किया।" पेशे से आर्कीटेक्ट आशना मित्तल बताती हैं।


उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ जिले में रामघाट रोड निवासी आशना अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्याल से अपनी डिग्री ली और सिडनी के यूएनएसड्ब्ल्यू से मास्टर की पढ़ाई कर रही हैं। उनके पिता भी आर्कीटेक्ट थे, आशना के मुताबिक आर्टीटेक्ट में इनका रुझान पापा के चलते हुआ।

आशना ने अपने घर में पहले तो आसपास की खाली बोतलों को इकट्टा कराया फिर उनमें राख और मिट्टी भरी, जिसके बाद 4500 बोतलों को जोड़कर 10 गुणा 12 फीट का एक कमरा तैयार हुआ है। आशना बताती हैं, मिट्टी और राख भरने के बाद बोतलें ईंटे जैसी ही मजबूत हो जाती हैं। इन्हें एक के ऊपर एक जोड़कर निर्माण किया जाता है। काम इनता आसान नहीं था, पहले तो कोई राजगीर मिस्त्री नहीं तैयार हो रहा था। किसी तरह उसे तैयार किया।"

आशना आगे बताती हैं, "बोतलों से तैयार हम मौसम के लिहाज से बेहतर हैं। इसमें न ज्यादा सर्दी लगेगी न गर्मी। इसकी सबसे बड़ी खूबी ये है कि ये 9 रिक्टर स्केल का भूंकप में भी सुरक्षित रहेगा। ऐसे में ये पहाड़ों और भूकंप ज्यादा आने वालों इलाकों के लिए बहुत अच्छा है।"


आशना की ये प्लास्टिक के खिलाफ ये मुहिम अगर रंग लाती है तो पर्यावरण के लिहाज से काफी फायदेमंद साबित होगी। दुनिया में प्रदूषण बीमारियों की बड़ी वजह है। हर साल लाखों इसकी वजह से जान गंवाते हैं। डब्लुएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में लगभग 15 वर्ष से नीचे की उम्र के करीब छह लाख बच्चों को वायु प्रदूषण से होने वाली स्वास नली के संक्रमण से जान गंवानी पड़ी थी। इन मौतों में भारत सबसे ऊपर था।

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"प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण सारी हदें पार कर चुका है। दुनिया में 2.5 बिलियन प्लास्टिक टन का सालाना उत्पादन होता है। ये वही प्लास्टिक है जो सड़ने में 1000 से ज्यादा साल लेती है। प्लास्टिक बोतल के जरिए निर्माण से हम इस प्रदूषण पर काबू पा सकते हैं।" वो बताती हैं। आशना के मुताबिक ये निर्माण गोली से भी बेअसर होते हैं।

लोगों से प्लास्टिक के उपयोग कम करने और पर्यावरण के प्रति जागरुक होने की अपील के साथ वो कहती हैं, "आर्कीटेक्ट की सात साल की यात्रा में हमें एक बड़ी चीज ये समझ आई कि हमें पर्यावरण के साथ मिलकर निर्माण करनी चाहिए। एक आर्कीटेक्ट के रुप में हमारे पर शक्ति और कर्तव्य दोनों हैं कि हम बेहतर निर्माण करें।" 

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