बनारसी साड़ी के बुनकर ने कहा- 'पहले की कमाई से कम से कम जी खा लेते थे, लॉकडाउन ने वह भी बंद करा दिया'

लॉकडाउन के कारण बनारसी साड़ी को प्रतिदिन के लगभग 24 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। सालाना कारोबार पांच अरब रुपए से ज्यादा का है। इस कुटीर उद्योग से लगभग छह लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।

Update: 2020-06-11 12:30 GMT

"लगभग ढाई महीने से काम बंद है। तो सोचा कि आज सफाई कर देता हूं। अब काम फिर कब शुरू होगा यह तो पता नहीं।" लगभग 50 साल से बनारसी साड़ी की बुनाई करने वाले 63 साल के अब्दुल अली वाहिद कहते हैं।

वाराणसी के मदनपुरा से सटे गौरीगंज के एक छोटे से घर में जब हम पहुंचे तो वे अपने हैंडलूम की सफाई कर रहे थे।

कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में लगाये गये लॉकडाउन के प्रभाव से उत्तर प्रदेश के वाराणसी का विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ी का करोबार भी नहीं बच पाया। इससे जुड़े लगभग छह लाख बुनकर और उनके परिवार संकट में हैं। यह पूरा कारोबार कब शुरू होगा, इसको लेकर भी संशय है।

अब्दुल अली वाहिद कहते हैं, "पिछले दो महीने से हमारे पास कोई काम नहीं है। लॉकडाउन से पहले से 12 घंटे काम करने पर 100 से 150 रुपए तक मिल जाते थे। इससे हमारी कमाई पहले भी बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन जी-खा लेते थे। इसीलिए तो बच्चों को ये काम नहीं सिखाया।"

"लॉकडाउन में जो नुकसान हुआ, उसके बदले हमें कोई मदद नहीं मिली। हमें कैश मिल जाता तो कम से कम इधर-उधर से जो पैसे लेकर खर्च चला रहा हूं, उसे तो चुका दूंगा। लोग कह रहे हैं कि सरकार मदद कर रही है, लेकिन हमारे पास तो कोई मदद नहीं पहुंची।" वे आगे कहते हैं।

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बनारसी वस्त्र उद्योग एसोसिएशन के अनुसार लॉकडाउन के दौरान बनारसी साड़ी को प्रतिदिन लगभग 24 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। सालाना कारोबार पांच अरब रुपए से ज्यादा का है। इस कुटीर उद्योग से लगभग छह लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।

अब्दुल अली वाहिद।

सरैया, जलालीपुरा, अमरपुर बटलोहिया, कोनिया, शक्करतालाब, नक्की घाट, जैतपुरा, अलईपुरा, बड़ी बाजार, पीलीकोठी, छित्तनपुरा, काजीसादुल्लापुरा, जमालुद्दीनपुरा, कटेहर, खोजापुरा, कमलगड़हा, पुरानापुल, बलुआबीर, नाटीईमली जैसे बनारस में कई क्षेत्र हैं जहां लाखों बुनकर बनारसी बिनकारी का काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद से सब लॉक है। पहले से संकट से जूझ रहे बनारसी साड़ी के बुनकरों पर कोरोना बड़ा संकट बनकर टूटा है।

अलईपुरा में रहने वालीं रेशमा पहले बनारसी साड़ी में टिक्की लगाती थीं। इससे जो कमाई होती है उससे वे अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाती हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद से सब बंद हो गया है। अब न तो उनके पास काम है और न ही पैसे बचे हैं। वे कहती हैं, "अब तो पता नहीं काम कब शुरू होगा। हम तो घरों में काम करते थे, हमें तो काम मिलते रहना चाहिए था। टिक्की स्टोन लगाकर मैं घर के खर्च में थोड़ी मदद कर पाती थी।"

लॉकडाउन के कारण बुनकरों का काम बंद तो हुआ ही है, व्यापारियों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

रिजवान अहमद वाराणसी के मदनपुरा के पुराने बनारसी साड़ी के कारोबारी हैं और खुद साड़ी बनवाते भी हैं। जब हम उनके शो रूम में पहुंचे तो चारों ओर साड़ियों बिखरी पड़ी थीं। देखकर लग रहा था कि यहां बहुत दिनों से कोई आया नहीं है। रिजवान कहते हैं, "काम का समय यही था। मार्च से जून तक। यह शादियों का समय था। खूब बिक्री होती थी। यहां (शोरूम में) पैर रखने की भी जगह नहीं होती थी। कारखाना भी बंद है। बहुत से कारीगर अपने घर चले गये हैं। कच्चे माल की भी दिक्कत आयेगी। ऐसे में लग नहीं रहा कि यह काम इस साल हो भी पायेगा।"

बनारसी साड़ी का काम कुटिर उद्योग में आता है। महिलाएं भी बड़ी संख्या में इस काम से जुड़ी हुई हैं।

बनारसी साड़ियों में लगने वाला रेशम ज्यादातर चीन से आता था। चीन में फरवरी से ही कोरोना का कहर शुरू हो गया था। ऐसे में कच्चे माल की कमी फरवरी से ही है। व्यापारी अब इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि काम दोबारा शुरू होगा तो इसे पटरी में कैसे लाया जायेगा।

बनारस में सिल्क, कॉटन, बूटीदार, जंगला, जामदानी, जामावार, कटवर्क, सिफान, तनछुई, कोरांगजा, मसलिन, नीलांबरी, पीतांबरी, श्वेतांबरी और रक्तांबरी साड़ियां बनाई जाती हैं जिनका श्रीलंका, स्वीटजरलैंड, कनाडा, मारीशस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल समेत दूसरे देशों में निर्यात भी होता है।

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बनारसी वस्त्र उद्योग एसोसिएशन के संरक्षक और बनारसी साड़ियों के कारोबारी अशोक धवन कहते हैं, "बनारसी साड़ी उद्योग से बनारस में ही एक लाख से ज्यादा परिवार ऐसे जुड़े हुए हैं जिनकी आजीविका इसी पर आधारित है। इसीलिए यदि साड़ी कारोबार पर कोई प्रभाव पड़ता है तो उसका असर अन्य चीजों पर भी दिखता है। चाइनीज रेशम के आयात पर लगी रोक का असर साड़ी उद्योग पर दिखने लगा है। ज्यादातर बनारसी साड़ी और ड्रेस मैटेरियल में इस्तेमाल होने वाला रेशम चीन से ही आता है। साड़ी उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है।"


वे यह भी कहते हैं कि अभी तक जो नुकसान हुआ है उससे उबरने में हमें एक साल तक का समय लग जायेगा। व्यापारी सरकार से क्या चाहते है, इस बारे में अशोक धवन कहते हैं, "हमें सरकार से किसी भी तरह की सब्सिडी नहीं चाहिए। हम तो बस यह चाहते हैं कि सरकार बनारसी साड़ियों का खूब प्रचार-प्रसार करे। इस पूरे कारोबार को उबारने के लिए बस एक यही रास्ता है। क्योंकि काम पूरी तरह से ठप है और नुकसान बहुत ज्यादा हो चुका है। अगर कुछ प्रभावी कदम नहीं उठाये गये तो बनारसी साड़ी का काम हमेशा के लिए बंदी की कगार पर पहुंच जायेगा।"

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