ग्रामीण पुलिस चौकियों में बनें महिला डेस्क

Update: 2015-12-05 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

लखनऊ। उन्नाव जिले से लगभग आठ किमी दूर मगरवारा गाँव की रहने वाली गिरजा देवी बताती हैं,''हमारे गाँव में आए दिन कुछ दबंग लोग शराब पीकर नशे में गाँव की औरतों के साथ अभद्रता करते रहते हैं। हम जब अपनी दिक्कत घर में अपने पति से बताते हैं तो वे लोग भूल जाने को कहते हैं, जिसके कारण हम लोगों का शाम के समय घर से निकलना दूभर हो गया है।" गाँव कनेक्शन के रिपोर्टर ने जब यह पूंछा की आप लोग पुलिस के पास अपनी शिकायत लेकर क्यों नहीं जातीं हैं तो उन्होंने कहा, ''एक तो घर का कोई सदस्य पुलिस चौकी पर साथ नहीं जाता है और दूसरी तरफ पुलिस चौकी में हमारी हिम्मत नहीं होती की किसी पुलिसकर्मी से अपनी समस्या सुनाएं।" 

महिला थानों की स्थिति में हो सुधार

प्रदेश सरकार ने जिलों में महिला थानों का निर्माण तो करा दिया है, लेकिन उनकी स्थिति को देखने वाला कोई नहीं है। महिला थानों में आज भी मूलभूत सुविधाओं का टोटा है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में महिला थाने में आज भी बैरक नहीं बनी है। बैरक के साथ-साथ महिला थाना एक छोटे से कमरे से संचालित हो रहा है, जिसमें इतनी भी जगह नहीं है कि उसमें बैठकर अधिकारी महिलाओं से जुड़ी समस्याओं को सुन पाए। महिलाओं की समस्याओं को सुनने के लिए बाहर बरामदे में टीनशेड के नीचे एक बेंच डालकर सुनवाई होती है। महिला पुलिसकर्मियों के साथ-साथ फरियादियों के लिए न तो पीने के पानी और न ही प्रशाधन उपलब्ध है। पानी की टोटियां तो लगी हैं लेकिन उनमें पानी नहीं आता है। महिला अधिकारियों को साधन की भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

पुलिस चौकियों में महिला डेस्क का हो निर्माण

प्रदेश में लगातार बढऩे वाले महिला हिंसा और अपराध के मामलों में लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार ने पिछले वर्ष हर थाने में एक महिला डेस्क बनाने की घोषणा की थी। इसी तरह ग्रामीण पुलिस चौकियों में भी महिला डेस्क बनाई जाए क्योंकि ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं दूर होने की वजह से पुलिस थानों में नहीं जाती हैं। महिला डेस्क बनने से महिलाएं पुलिस चौकियों में जाने से घबराएंगी नहीं और अपनी बात को महिला पुलिसकर्मी से बता पाएंगी।

महिला पुलिसकर्मियों की कमी हो पूरी

जहां एक ओर लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ  हिंसा कम नहीं हो रही, वहीं दूसरी ओर पीडि़त महिलाएं थानों में जाने में हिचकती हैं, इसका कारण यह है कि उत्तर प्रदेश के थानों में पर्याप्त महिला पुलिसकर्मी नहीं तैनात हैं। केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 1.74 लाख पुलिसकर्मियों में मात्र 2,586 महिला पुलिसकर्मी, 1.5 प्रतिशत हैं जबकि सभी राज्यों में कुल पुलिस फ़ोर्स का मात्र 5.33 प्रतिशत ही महिला पुलिसकर्मी हैं।

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